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जस्टिस जोसेफ की पदोन्नति पर सियासत गरम, सरकार ने बताई नामंजूरी की वजह

केंद्र सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर...
जस्टिस जोसेफ की पदोन्नति पर सियासत गरम, सरकार ने बताई नामंजूरी की वजह

केंद्र सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर पदोन्नति की सिफारिश को नामंजूर कर दिया है। जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जोसेफ और मल्होत्रा दोनों के नाम की सिफारिश की थी। जस्टिस जोसेफ के नाम को वापस लौटाने से विपक्ष को सरकार के खिलाफ एक और मुद्दा मिल गया है। जोसेफ वही जज हैं जिन्होंने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र सरकार के फैसले को पलट दिया था। केंद्र का यह कदम न्यायपालिका से उसके रिश्ते पर असर डाल सकता है।

जस्टिस जोसेफ की नियुक्ति को लेकर कांग्रेस ने आज सरकार पर खूब हमला बोला। कांग्रेस के नेता और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार अपने पसंदीदा जजों को ही नियुक्त करना चाहती है। जबकि कानून कहता है कि जिसे कॉलिजियम कहे उसी की नियुक्ति होगी।

उधर, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पत्र लिखकर जस्टिस जोसेफ ने नाम पर पुनर्विचार करने को कहा है। इस पत्र में उन्होंने जस्टिस जोसेफ के नाम को मंजूरी न देने के कई कारण गिनाए। केंद्र का कहना है कि अगर जोसफ को पदोन्नति दी गई तो अन्य हाई कोर्टों के वरिष्ठ जजों के साथ न्याय नहीं होगा।

रविशंकर प्रसाद के मुताबिक, जोसेफ की पदोन्नति को मंजूरी न देने का फैसला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की सहमति से लिया गया। केंद्र का कहना है कि हाईकोर्ट के जजों की वरिष्ठता सूची में जस्टिस जोसेफ का नंबर 42वां है। फिलहाल विभिन्न हाईकोर्ट के 11 चीफ जस्टिस उनसे वरिष्ठ हैं। सुप्रीम कोर्ट में जोसेफ की नियुक्ति अन्य वरिष्ठ व काबिल जजों के साथ न्यायोचित नहीं होगी। यह सर्वोच्च अदालत द्वारा तय मानदंडों के भी अनुरूप नहीं है। 

केंद्र सरकार का कहना है कलकत्ता, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और कई हाईकोर्ट के अलावा सिक्किम, मणिपुर, मेघालय का इस समय सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व नहीं है। जोसेफ केरल से आते हैं, अभी केरल के दो जज सुप्रीम कोर्ट में हैं। अगर केरल से ही एक और जज की नियुक्ति की जाती है तो यह सही नहीं होगा। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में एससी/एसटी का भी प्रतिनिधित्व नहीं है।

पीटीआई के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और कॉलेजियम के प्रमुख दीपक मिश्रा ने सरकार द्वारा एक नाम को मंजूरी देने और दूसरे को वापस भेजने को सरकार के अधिकार क्षेत्र में बताया है। 

इस बीच, इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति पर रोक लगाने की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी है। 

कांग्रेस का आरोप, खतरे में न्यायपालिका की आज़ादी 

कांग्रेस इस मामले को न्यायपालिका पर नियंत्रण की सरकार की कोशिश और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन निरस्त करने के फैसले से जोड़कर देख रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने ट्वीट किया, “खुश हूं कि इंदु मल्‍होत्रा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगी। निराश हूं कि जस्‍ट‍िस केएम जोसेफ की नियुक्ति अभी भी रोकी गई है। केएम जोसेफ की नियुक्ति आखिर क्‍यों रोकी गई है? क्‍या इसके लिए उनका राज्‍य, उनका धर्म या उत्‍तराखंड केस में उनका फैसला लेना कारण है?”

चिदंबरम ने आगे लिखा कि कानून के मुताबिक, जज नियुक्‍त करने में कॉलेजियम की सिफारिश ही अंतिम है। क्‍या मोदी सरकार कानून से ऊपर हो गई है?

क्या है उत्तराखंड का मामला?

उत्तराखंड में केंद्र के राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को 21 मार्च 2016 को चीफ जस्टिस जोसेफ की बेंच ने पलट दिया था। इसके कारण हरीश रावत एक बार फिर उत्‍तराखंड के मुख्‍यमंत्री बन गए थे। 

पिछले साल वर्ष फरवरी में न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने पदोन्नति की सूची में जोसफ का नाम नहीं होने पर भी सवाल उठाया था। इस साल जनवरी में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति के लिए जोसफ के नाम की सिफारिश की थी।

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