मीरा कुमार बिहार के आरा जिले की हैं और भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी रह चुकी हैं। राजनीति में भी उन्होंने अच्छी पारी खेली है और पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी हैं। नीतीश का तर्क यही था कि कोविंद दलित हैं और राज्यपाल के नाते बिहार से जुड़े रहे हैं। मीरा कुमार इन दोनों ही कसौटियों पर कोविंद से आगे हैं। यही नहीं कोविंद का संबंध भाजपा और आरएसएस से रहा है जबकि मीरा कुमार की छवि सेक्यूलर रही है। इसी तर्क के आधार पर बिजनौर में कभी मीरा कुमार से लोकसभा का चुनाव हार चुकी मायावती ने भी उन्हें अपना समर्थन दे दिया है। मायावती के सामने भी शायद यह धर्मसंकट रहा होगा क्योंकि कोविंद दलित होने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के भी रहने वाले हैं। लेकिन मायावती ने पहले ही साफ कर दिया था कि विपक्ष अगर कोई ज्यादा योग्य दलित उम्मीदवार उतारता है तो उनका साथ उसे ही मिलेगा।
इसके अलावा एक राजनैतिक समीकरण यह भी है कि भाजपा दलितों में कुछ मजबूत स्थिति वाली जातियों और पिछड़ी दलित जातियों में एक टकराव पैदा करना चाहती है। जिससे उसे राजनैतिक लाभ मिल सके। अब विपक्षी दलों के सामने यह सवाल भी होना चाहिए कि क्या वे इस तरह जातियों, उपजातियों में दलितों की खेमेबंदी का समर्थन करेगा। बहरहाल सवाल बड़ा है लेकिन अपने अपने राजनैतिक हितों और समीकरणों के आधार पर ही सभी अपना पक्ष तय करेंगे।