अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि एेसे देशों में नवजात बच्चों के उपचार में कई तरह की बाधाएं आती हैं, जिसके चलते दीर्घकालिक विरूपण जैसी कई अन्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इस कारण बच्चों को समाज में हीन नजरिये से देखा जाता है। साथ ही इस कारण बोलने और खाने में दिक्कत हो सकती है, जिससे कुपोषण की समस्या हो सकती है। इस कारण मौत भी संभव है। उन्होंने बताया कि समय पर सुरक्षित और प्रभावी सर्जरी से अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं।
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के बार्कले टी स्टीवर्ट और उनके साथियों ने भारत में राज्य स्तर पर एेसी समस्याओं के आकलन के लिए 12 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में चलाये जा रहे आॅपरेशन स्माइल के आंकड़ों का उपयोग किया। उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर अनुसंधानकर्ताओं का आकलन है कि देश के 29 में से 28 राज्यों में कटे होंठ या तालु के लगभग 72,637 मामले हैं, जिन्हें अब तक ठीक नहीं किया जा सका है।
परिणामों के अनुसार केरल और गोवा में प्रति एक लाख की आबादी पर 3.5 से भी कम मामले देखे गये जबकि बिहार में आंकड़ा सर्वाधिक रहा, जहां ये दर इतनी ही आबादी पर 10.9 रही। इस अध्ययन का प्रकाशन जेएएमए फेसियल प्लास्टिक सर्जरी में किया गया है।