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एम्स का चरित्र बदलने की तैयारी, इलाज होगा महंगा

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), यानी भारत के गरीब और आम बीमार आदमी का मक्का-मदीना। देश भर के गरीबों के लिए बड़ी से बड़ी बीमारियों से लड़ने का आखिरी मुकाम। अक्सर यह बड़े नेताओं के इलाज करवाने की वजह से भी चर्चा में रहता है। एक बार फिर इसका चरित्र बदलने की कवायद चल रही है। एक बार फिर इसे रईसों, सुविधा संपन्न बीमारों के लिए चमचमाने की कोशिश हो रही है। यह पूछने की जरूरत नहीं है कि ऐसा आम मरीजों के इलाज और विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए आने वाले पैसे से ही करने की तैयारी है।
एम्स का चरित्र बदलने की तैयारी, इलाज होगा महंगा

एम्स में 20 से 30 फीसदी इलाज महंगा करने का प्रस्ताव संस्थान की स्थायी वित्तीय समिति में आ चुका है। जनरल वार्ड की सख्त कमी है, लेकिन पिछले 10-15 सालों से नए जनरल वार्ड नहीं बने हैं। इस समय एक बार फिर प्राइवेट वार्ड बन रहा है। एम्स के एक वरिष्ठ संकाय सदस्य ने बताया कि अभी संस्थान को सख्त जरूरत है जनरल वार्डस की। गरीब, मध्य वर्ग से आने वाले हजारों मरीजों के लिए हम कोई सुविधा बढ़ाने को तैयार नहीं होते, लेकिन चुने हुए सुविधा संपन्न तबके को चमचमाती सुविधा देने के लिए तमाम नियमों का उल्लघंन करते हुए प्राइवेट वार्डस बनाए जा रहे हैं। जबकि एक प्राइवेट वार्ड की जगह अगर जनरल वार्ड बनता तो कम से कम 500-600 ज्यादा मरीजों को इलाज कराने की जगह मिल जाती। एक बात और गौर करने की है कि एक्वस में इस तरह के तमाम कामों के लिए जिस प्रक्रिया के तहत मंजूरी मिलनी चाहिए उसका उल्लंघन किया जा रहा है। आधिकारिक मंजूरी बाद में मिलती है और निर्माण कार्य पहले शुरू हो जाता है। प्राइवेट वार्ड बनाने का ठेका इरा इन्फ्रा इंजीनियरिंग कंपनी को 92.04 करोड़ रुपये में दिया गया है। इसकी मंजूरी वार्डस की वित्त समिति से पोस्ट फैक्टो यानी काम शुरू होने के बाद ली गई। इसके कागजात आउटलुक के पास हैं। इस बैठक के नोट में इस बात का भी उल्लेख है कि पहले मौजूदा प्राइवेट वार्ड को गिराकर 113 कमरों वाला नौ मंजिला ब्लॉक बनाने की योजना थी। लेकिन बाद में इसे स्थगित कर दिया गया और फिर बाद में इसे शुरू किया गया।

 

नियमों की अनदेखी 

अब सवाल यह उठता है कि ऐसी कौन सी जल्दी थी कि इस नई इमारत के लिए कायदे से बैठक नहीं की गई और इसकी मंजूरी पोस्ट फैक्टो यानी निर्माण शुरू कराने के बाद लेनी पड़ी। संकाय के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि एम्स प्रशासन के कामकाज का तरीका ही इस तरह का हो गया है कि पारदर्शिता का सरासर अभाव है। पिछले साल भी इसी तरह एक इमारत को तोड़ कर इस प्राइवेट वार्ड का काम शुरू किया गया था, लेकिन संस्थान के कई सदस्यों द्वारा इसका विरोध करने और इसे गरीब विरोधी कदम बताने के बाद रोक दिया गया था। अब कुछ समय बाद फिर तमाम नियमों का उल्लघंन करके इसका निर्माण नई जगह पर किया जा रहा है। जबकि इसके बजाय जनरल वार्ड को एक-दो मंजिल बढ़ाकर सैकड़ों मरीजों का बेहतर इलाज हो सकता था। 

 

इलाज खर्च बढ़ाने का प्रस्‍ताव 

इस निर्माण को जिस वित्‍तीय समिति में मंजूरी मिली उसी में इलाज को महंगा करने का प्रस्ताव रखा गया। इस बारे में एम्स के प्रवक्ता डॉ. अमित गुप्ता ने बताया कि दिल का ऑपरेशन सहित विभिन्न प्रकार की जांचों तथा ऑपरेशनों की दरों में 20-30 फीसदी वृद्धि करने का प्रस्ताव है। इसके अनुसार जन्म के साथ होने वाले एट्रियल सेपटेल डिफेक्ट का इलाज के लिए जनरल वार्ड में भर्ती व्यक्ति को 46,000 रुपये खर्च करने पड़ेंगे, जिसपर अभी उसे सिर्फ 40,000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसी इलाज के लिए प्राइवेट वार्ड में भर्ती मरीज को 70,000 रुपये देने पड़ेंगे जबकि अभी उसे 57,000 रुपये ही देने पड़ते है। डॉ. अमित गुप्ता का कहना है कि इस वृद्धि के पीछे सोच यही है कि जो पैसा दे सकते हैं, उनसे लिया जाए। वैसे भी हम बाजार दर से बहुत कम ले रहे हैं। इस कदम का विरोध शुरू हो गया है। एक फैकल्टी सदस्य का कहना है कि यह बहुत खतरनाक प्रयास है क्योंकि यह एम्स के निजीकरण के लिए रास्ता खोलता है। एम्स का गठन मुनाफे के लिए नहीं हुआ है। यह कम से कम दाम में बेहतरीन इलाज करने और मेडिकल के छात्रों को उच्चस्तरीय शिक्षा मुहैया कराने के लिए बनाया गया था। जनता को बेहतर स्वास्थ्य मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है और उससे वह भाग रही है। प्राइवेट वार्ड, भारी इलाज दरों से यही संकेत मिलते हैं। गौरतलब है कि एम्स को आत्मनिर्भर या मुनाफा आधारित संस्थान बनाने की कोशिशें इससे पहले वर्ष 2005 और 2010 में हो चुकी हैं, लेकिन सांसदों और संस्थान के डॉक्टरों ने इसे विफल कर दिया था।

 

प्राइवेट वार्ड के खर्च पर उठे सवाल 

एम्स में एक तरफ जहां आम मरीज वार्ड के लिए धक्के खाने और महीनों-महीनों इंतजार करने के लिए मजबूर हो रहा है, वहीं प्राइवेट वार्ड के लिए इतना पैसा खर्च करना, उसके मकसद को विफल करने जैसा है। इस बारे में सेवानिवृत्त वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के.बी. सक्सेना ने आउटलुक को बताया कि एम्स में इलाज कराने वालों को यहां के संस्थान की, डॉक्टरों की सेवानिष्ठा पर भरोसा होता है, उनका ध्यान रखना संस्थान की प्राथमिकता होनी चाहिए। आम जनता को ध्यान में रख योजना, वार्ड बनाने चाहिए। जिनके पास पैसा है, उनकी चिंता करने के लिए पांच सितारा अस्पतालों की कमी नहीं है। एम्स में जनता का पैसा है, उसे जनकल्याण में जाना चाहिए।

 

 

 

 

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