27 वर्षीय फारूक अहमद ने बताया कि 9 अप्रैल को उसे उटीगांम में तैनात सेना की 35 आरआर यूनिट ने उठाया था। उसके साथ जो हुआ, वह बेहद खौफनाक था। शरीर पर पड़ी चोटों की वजह से वह चलने-फिरने मेें असमर्थ हैं। फ्रैक्चर के कारण उसके एक हाथ में पट्टी बांधी है।
फारूक के मुताबिक, "9 अप्रैल को मैं अपने भाई अब्दुल कादिर और एक अन्य व्यक्ति के साथ अपने रिश्तेदार के घर जा रहा था। हम दो बाइक पर सवार थे। वह अपनी बाइक पर अकेला था। तव्य से कुछ किलोमीटर दूर गम्पोरा में संघर्ष चल रहा था। रास्ते में सेना के जवानों ने मुझे पकड़ लिया। लात-घूंसों और बंदूक की बट से बुरी तरह मारने लगे। मैं उलझन में था कि क्या हो रहा था। करीब 15 जवान मेरे ऊपर टूट पड़े थे।"
फारूक आगे बताता है कि जब वह तकरीबन बेहोश हो गया तो उसे सड़क की तरफ ले गए और बर्फीले ठंडे पानी में डूबाते रहे। इस दौरान चाराेेंं तरफ से गोलियों की आवाजेें आ रही थीं। इसके बाद सैनिकों ने उसे जीप के बोनट से बांधा दिया और इलाके में घूमाया।
इस दौरान स्थानीय लोगों ने पहचान लिया और उसके भाइयों तक खबर पहुंचाई। गांव के सरपंच और परिजनों के गुहार लगाने के बाद शाम करीब 7 बजे उसे रिहा किया गया। इस वीडियो के सामने आने के बाद सेेेेना के तौर-तरीकों और कश्मीर के हालात को लेकर बहस तेज हो गई है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्तती ने इस मामले का संज्ञान लेेते हुए रिपोर्ट मांगी है।
'मेरे साथ कुछ भी कर सकते हैं'
खबरों के मुताबिक, तीन दिनो तक फारूक अपने शरीर में गंभीर दर्द के कारण सो नहीं सका। वह अपनी 70 वर्षीय मां के साथ चिल ब्रास गांव में एक उजडे घर में रहता है। वह इतना डरा हुआ है उन्होंने सेना के सैनिकों के खिलाफ मामला दर्ज करने का विचार नहीं किया है। उसका कहना है, "मैं एक गरीब आदमी हूं। मेरे साथ मेरी बूढ़ी मां है जो बेहद डरी हुई है। अगर मैं सेना के खिलाफ केस करता हूं तो वे कुछ भी कर सकते हैं। रात में आकर मुझे मार भी सकते हैं।"