इस बात की आशंका भोजन के अधिकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से उठा रहे थे। केंद्र सरकार ने 10 फरवरी को इस बाबत एक पत्र भेजा है, जिसमें तमाम केंद्र शासित क्षेत्र और राज्यों के कुछ जिलों में इसे पायलेट आधार पर किया जाएगा।
केंद्र सरकार का यह कदम सरासर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के खिलाफ खड़ा होता है, जिसका अभी ठीक से क्रियान्वन भी शुरू नहीं हुआ है। बजट से पहले इस तरह का पत्र लिखना 28 फरवरी को पेश होने वाले बजट में खाद्य सुरक्षा कानून के मद में कटौती के संकेत हैं।
यह कदम उठा कर केंद्र सरकार ने एक संकेत और दिया है कि वह शांता कुमार रिपोर्ट की विवादास्पद सिफारिशों को लागू करने जा रही है। इस रिपोर्ट में राशन में मिलने वाले अनाज की जगह सीधे लाभ हस्तांतरण योजना के तहत नकद भुगतान करने की सिफारिश की गई है। खाद्य मंत्रालय ने तमाम केंद्र शासित राज्यों को पत्र लिख ऐसा ही करने का निर्देश दिया है। कई राज्यों के कुछ शहरी इलाकों में इसे पायलेट आधार पर शुरू करने की तैयारी है।
गौरतलब है कि भारतीय खाद्य निगम के प्रबंधन पर रिपोर्ट देने के लिए बनाई गई शांता कुमार समिति ने अपनी निर्धारित परिधि से बहुत आगे बढ़कर यह सिफारिश की कि सरकार को धीरे-धीरे अनाज वितरण से बाहर आकर नकद भुगतान की ओर बढ़ना चाहिए। समिति ने यह भी सिफारिश की कि अनाज पर सब्सिडी को अधिकतम 40 फीसदी आबादी तक ही देना चाहिए। ऐसा इस समिति ने तब कहा जब देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत इस समय न्यूनतम 67 फीसदी आबादी को खाद्य सुरक्षा देने की गांरटी दी गई है।
केंद्र सरकार ने शांता कुमार सिफारिशों पर बहुत सोची-समझी चुप्पी जरूर साध रखी है, लेकिन भीतर ही भीतर यह सहमति बन रही है कि 40 फीसदी से अधिक आबादी को खाद्य सुरक्षा देने की जरूरत नहीं है। मंत्रालय से गया यह पत्र इस बात का सबूत है कि इस तरह की योजना बजट में दिखाई देगी। सवाल यह है कि ये किस तरह से क्रियान्वित किया जाएगा। इशमें एक तरीका यह विचारार्थ है कि लाभार्थियों के खाते में सीधे पैसे हस्तांतरित हो जाएंगे, जिससे वे बाजार में अनाज खरीद सकते हैं।
दूसरा यह है लाभार्थियों से दुकान से राशन खरीदने को कहा जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार भाव में अंतर को उनके खातों में जमा करा दिया जाए। जहां राशन दिया जाएगा वहां भी आधार और इल्क्ट्रॉनिक डाटा बेस के आधार को अनिवार्य़ बनाया जाएगा। हालांकि सर्वोच्च अदालत यह फैसला दे चुकी है कि किसी को भी आधार न होने के चलते किसी को भी जरूरी सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता।
केंद्र सरकार ने अभी अपने इस कदम को जानबूझकर केंद्र शासित राज्यों औऱ शहरी इलाकों तक केंद्रित रखा है क्योंकि राज्य सरकारों की मंजूरी के बिना खाद्यान्न वितरण में दखल देना संभव नहीं है। साथ ही इसका जमकर विरोध होने की भी संभावना है।
गरीबों को अनाज के बदले पैसा देने से उन्के भोजन के अधिकार के रास्ते में इसलिए भी अंड़ंगा लगेगा क्योंकि वह पैसे को अऩाज के बदले कहीं और भी ख़र्च कर सकते हैं। गरीब भारतीय परिवारों में आम तौर पर पुरुष ही मुखिया की भूमिका निभाते हैं और वह पैसे का इस्तेमाल अपनी शराब की लत के लिए भी कर सकते हैंं। गरीबोें को अनाज के बदले पैसा देने सेे किसानों को भी नुक़सान उठाना पड़ेगा। सरकार किसानों को अनाज देने के लिए किसानों से खरीदारी करती है। सीधा पैसा देने से वह किसानों से अनाज खरीदना कम कर देगी और उन्हें समर्थन मूल्य देने से भी बचेगी।
भोजन के अधिकार आंदोलन और पीयूसीएल इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी कर रहे हैं। खबर है कि 19-20 मार्च को जनसंगठनों की तरफ से इस मुद्दे पर बड़ी पहल ली जाएगी।