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बाबाओं के झोले से निकला कॉरपोरेट

धर्मगुरुओं ने अपने विभिन्न उत्पाद बाजार में उतार दिए हैं।
बाबाओं के झोले से निकला कॉरपोरेट

उद्योग जगत में धर्मगुरुओं की धमक होने लगी है। योगगुरु बाबा रामदेव और उनकी संस्था पतंजलि ही नहीं, अनेक धर्मगुरुओं ने अपने विभिन्न उत्पाद बाजार में उतार दिए हैं। उनके माल के दाम बाजार से कई गुना अधिक होने के बावजूद बिक्री ख़ूब हो रही है। हालांकि बाबाओं के माल के ग्राहक अधिकांशत: उनके भक्तगण ही होते हैंं। ऐसे भक्तों की संख्या भी करोड़ों में है। अधिकांश धर्मगुरु पहले केवल धार्मिक पुस्तकें, पत्रिकाएं, कैसेट, सीडी, डीवीडी और अपनी तस्वीरें ही बेचते थे। अब उनके आश्रमों पर दवाएं, सौंदर्य प्रसाधन, रसोई का सामान, खाने-पीने की चीजें, कपड़े, पूजा की सामग्री, घरेलू साज-सज्जा की वस्तुएं, योग संबंधी सामान और यहां तक कि बच्चों के लिए खेल-खिलौने और स्कूल बैग तक मिलने लगे हैं।

कोयंबटूर में सद्गुरु के नाम से विख्यात जग्गी वासुदेव की संस्था ईशा फाउंडेशन का मुख्यालय है। वहां भी अब तरह-तरह के सामान स्टोर में बेचे जाते हैं। यही नहीं, सद्गुरु द्वारा इस्तेमाल की गई वस्तुएं भी बाद में बिक्री के लिए वहां रख दी जाती हैं। उनकी पुरानी गाडिय़ां तो बेशकीमती हो जाती हैं और उनके भक्त मुंह मांगे दामों पर उन्हें खरीद लेते हैं। उधर, घरेलू उत्पाद की बिक्री में विवादित धर्मगुरु आसाराम बापू सबसे आगे हैं। हालांकि इन दिनों वह जोधपुर जेल में हैं, मगर देशभर में 400 से अधिक उनके आश्रम निर्बाध रूप से संचालित हो रहे हैं। श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के दुनिया भर में केंद्र हैं जहां योग एवं साधना की क्रियाओं के साथ-साथ विभिन्न सामानों की भी बिक्री होती है। कॉरपोरेट जगत की तरह धर्मगुरुओं की संस्थाओं के बिक्री केंद्र भी पूर्णत व्यावसायिक ढंग से ही संचालित होते हैं। इसके लिए बकायदा वेबसाइट और मोबाइल एप्लिकेशन हैं। सामान की शिपिंग और गारंटी पीरियड में उसकी वापसी के साथ-साथ मासिक किस्तों तक की व्यवस्था बाबाओं द्वारा की गई है।

ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कुछ वस्तुओं के दाम बेहद कम रखे जाते हैं, जबकि अनेक चीजों के दाम बाजार से कई गुना अधिक होते हैं। मिसाल के तौर पर देखें तो आसाराम बापू के आश्रमों में तुलसी अर्क 75 रुपये का बिकता है, जबकि बाजार में चर्चित ब्रांड इसको 30 से 35 रुपये में बेचते हैं। गुलाब शरबत आसाराम के आश्रमों में 75 रुपये का है बाजार में भी लगभग इसी दाम पर आपको यह मिल जाएगा। आश्रम वज्र रसायन के नाम से गोलियों का एक पैकेट 343 रुपये का देता है जबकि वज्र रसायन की बाजार में कीमत बहुत ही कम है।

श्री श्री रविशंकर के आश्रमों में भी सैकड़ों तरह के सामान हैं। यहां बादाम और शहद का साबुन 35 रुपये  और बादाम के तेल के कैप्सूल 195 रुपये, विटामिन की गोलियां 90, त्रिफला चूर्ण 150 रुपये में मिलता है । श्री श्री रविशंकर की संस्था 'आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन’ के दुनिया भर के केंद्रों में आंवला केंडी 160 रुपये में और अमृत वटी के नाम से कुछ गोलियों का पैकेट 150 रुपये में मिलता है।

बाजार से अधिक दाम वसूलने में जग्गी वासुदेव सबसे आगे हैं। उनके यहां उत्पाद भी नए-नए हैं। यहां बंद गले की बनियान 950 रुपये, साधारण शॉल 555 रुपये, तांबे की पांच चूड़ियां 350, पूरी बाजू की टीशर्ट 650, तांबे की चेन 355 रुपये और इसका सेट 2,365 रुपये का है। बाबाओं का माल इतना क्यों बिक रहा है, यह समझने को सद्ग़ुरु के एक भक्त महेंद्र नागर का बयान काफी है। श्री नागर बताते हैं कि आश्रम की  सभी वस्तुओं पर सद्गुरु की छाप होती है अत: हम भक्त लोग किसी भी कीमत पर वह सामान खरीद लेते हैं। आसाराम बापू के आश्रम में स्टोर पर बैठे मनीष कुमार बताते हैं कि बापू की अनुपस्थिति में भी सभी आश्रमों में सत्संग होते हैं और भक्तगण स्टॉल से सामान भी खरीदते हैं। आश्रम में आयुर्वेदिक चिकित्सक बैठते हैं और उनके द्वारा सुझाए गई दवाएं ही ग्राहकों को दी जाती हैं। बापू के च्यवनप्राश के मुरीद ललित कुमार नाम के एक व्यवसायी की मानें तो आसाराम बापू के च्यवनप्राश को खाने के बाद यौन उत्प्रेरक दवा वाइग्रा की जरूरत ही नहीं है। उधर, आयुर्वेदाचार्य स्वरूप शर्मा आरोप लगाते हैं कि अधिकांश धर्मगुरुओं के केंद्रों में प्रशिक्षित चिकित्सकों का अभाव होता है और ऐसे में वहां की दवा से बीमार व्यक्ति के सेहत से खिलवाड़ का खतरा बना रहता है। 

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