प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया कि 16 मार्च को पूर्वान्ह 11 बजे विधानसभा का सत्र बुलाया जाए। इसने यह स्पष्ट किया कि सदस्यों की शपथ के बाद उस दिन सदन का एकमात्र कामकाज शक्ति परीक्षण कराना होगा।
पीठ में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल भी शामिल थे। इसने निर्देश दिया कि चुनाव आयोग से संबंधित औपचारिकताओं सहित शक्ति परीक्षण कराने के लिए सभी जरूरी चीजें बुधवार तक पूरी हो जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कांग्रेस की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें उठाए गए सभी मुद्दों का समाधान शक्ति परीक्षण कराने के सामान्य निर्देश से हो सकता है।
कांग्रेस ने पर्रिकर को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने के राज्यपाल मृदुला सिन्हा के फैसले को चुनौती दी थी। पीठ ने राज्यपाल से शक्ति परीक्षण के लिए सदन बुलाने का आग्रह भी किया।
इसने कहा कि कांग्रेस दो क्षेत्रीय दलों- महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी :एमजीपी: और गोवा फॉरवर्ड पार्टी :जीएफपी: के किसी भी निर्वाचित विधायक या किसी निर्दलीय विधायक के समर्थन का संकेत देने वाला हलफनामा लाने में विफल रही है।
इसने उस पत्रा का भी संज्ञान लिया जिसमें एमजीपी के तीन, जीएफपी के तीन और दो निर्दलीय विधायकों ने भाजपा को समर्थन देने की बात कही है। इससे 40 सदस्यीय सदन में भाजपा के पाले में सदस्यों की संख्या 21 हो जाती है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, आपके :कांग्रेस: पास संख्या नहीं है और इसीलिए आपने राज्यपाल के समक्ष सरकार बनाने का दावा नहीं किया। आपने राज्यपाल के समक्ष यह नहीं दर्शाया कि संख्या आपके पक्ष में है।
न्यायालय ने कांग्रेस से कहा कि पार्टी को न्यायालय के समक्ष तर्क रखने की जगह राज्यपाल के समक्ष ऐसा करना चाहिए था।
पीठ ने यह भी कहा कि कांग्रेस नेता की दलीलें उचित नहीं हैं क्योंकि उन्होंने सरकार बनाने के लिए आमंत्रिात किए गए मनोहर पर्रिकर को आवश्यक पक्ष नहीं बनाया है।
इसने कहा, आप :कांग्रेस: उनका :पर्रिकर: नाम जानते हैं। वह देश के रक्षा मंत्री रहे हैं। आपने यहां तक कि मुख्यमंत्री को पक्ष नहीं बनाया है। आपके पास सदस्यों के हलफनामे नहीं हैं जो आपका समर्थन कर रहे हों। इसलिए मामला संवेदनशील है और आप कुछ नहीं करते।
पीठ ने गोवा कांग्रेस विधायक दल के नेता चंद्रकांत कावलेकर के आवेदन को अस्वीकार कर दिया। उनके वकील अभिषेक सिंघवी मुख्यमंत्री के रूप में पर्रिकर के शपथ लेने से पहले समग्र शक्ति परीक्षण चाहते थे।
कांग्रेस की ओर से दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि यदि आपके पास विधायकों की पर्याप्त संख्या थी तो आपको समर्थन करने वाले विधायकों का हलफनामा पेश करना था लेकिन आपकी ओर से ऐसा नहीं किया गया। अदालत ने कहा कि सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना विधायकों की संख्या से जुड़ा हुआ है। आपने राज्यपाल के समक्ष या अपनी याचिका में इस बात का कभी जिक्र नहीं किया कि आपके पास जरूरी समर्थन है। इस मामले में अदालत ने 16 मार्च को सुबह 11 बजे पर्रिकर को विश्वास मत हासिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने दोनों पार्टियों को प्रोटेम स्पीकर का नाम देने को भी कहा है। मामले में सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और कांग्रेस की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखा।
कोर्ट ने दोटूक कहा कि यदि आपके पास बहुमत था तो आपको राज्यपाल के आवास के बाहर धरना देकर अपने विधायकों की संख्या के बारे में बताना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया। दूसरी ओर, कांग्रेस की ओर से कहा गया कि राज्यपाल को कांग्रेस विधायक दल के नेता को फोन पर 'संख्या' के बारे में बात करनी चाहिए थी और राज्यपाल का फैसला अवैध है। पार्टी ने कहा कि उसके पास सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या है और सदन में शक्ति परीक्षण करा लें।
गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी ने गोवा के राज्यपाल की ओर से मनोहर पर्रिकर को मुख्यमंत्री नियुक्त किए जाने के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर के आवास पर शनिवार शाम याचिका दायर की गई। इस सिलसिले में विशेष पीठ का गठन किया गया था क्योंकि शीर्ष अदालत होली पर एक सप्ताह के अवकाश पर है।