न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने दिल्ली विश्वविद्यालय को राहत प्रदान की और आरटीआई आवेदक नीरज कुमार को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा। विश्वविद्यालय ने सीआईसी के 21 दिसंबर, 2016 के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी और राहत मांगी थी।
अदालत इस मामले में अब 27 अप्रैल को सुनवाई करेगा। नीरज कुमार को इस याचिका पर उस समय तक अपना जवाब दाखिल करना है। विश्वविद्यालय ने यह दावा करते हुए याचिका दायर की है कि सीआईसी का आदेश मनमानापूर्ण है और कानून के तहत असंगत है क्योंकि जिस सूचना का खुलासा करने की मांग की गयी है वह तीसरे पक्ष की सूचना है।
अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता और केंद्र सरकार के स्थायी वकील अरूण भारद्वाज ने अदालत में कहा कि सीआईसी के आदेश के याचिकाकर्ता और देश के सभी विश्वविद्यालयों पर दूरगामी प्रतिकूल नतीजे होंगे जो कानूनी विश्वास के तहत करोड़ों लोगों की डिग्रियां संभाल कर रखते हैं।
विश्वविद्यालय ने कहा कि उसके पास कानूनी विश्वास के तहत उपलब्ध सूचना का खुलासा करने का सीआईसी द्वारा उसे निर्देश देना पूर्णत: गैर कानूनी है, खासकर तब जब ऐसे खुलासे से व्यापक जनहित की कोई दरकार नहीं है।
सीआईसी ने विश्वविद्यालय को परीक्षा परिणाम दिखाने का आदेश दिया था। उसने विश्वविद्यालय के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी की यह दलील खारिज कर दी थी कि यह तीसरे पक्ष की सूचना है। सीआईसी ने कहा था कि केंद्रीय जन सूचना अधिकारी की दलील में न तो दम है और न ही कानूनी वैधता।
उसने विश्वविद्यालय को उस प्रासंगिक रजिस्टर को दिखाने में सहयोग का निर्देश दिया था जिनमें 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम शामिल है। उसने विश्वविद्यालय को रजिस्टर में दर्ज विद्यार्थियों के क्रमांक, उनके नाम, उनके पिता के नाम, प्राप्तांक आदि मुफ्त उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया था।
सीआईसी ने कहा था कि जहां तक इस बात का सवाल है कि क्या ऐसी पहचान संबंधी सूचना के खुलासे से निजता का उल्लंघन होता है या नहीं या फिर क्या यह निजता का अवांछनीय हमला है या नहीं, तो जन सूचना अधिकारी ने यह दर्शाने के लिए कोई सबूत नहीं दिया या संभावना की व्याख्या नहीं की कि डिग्री संबंधी सूचना के खुलासे से निजता का उल्लंघन होता है या निजता पर अवांछनीय हमला है। भाषा