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पाक की साजिशों को 1961 में पहले ही भांप लिए थे दीनदयाल उपाध्‍याय

भाजपा की विचारधारा पर अमिट छाप छोड़ने वाले अमर विचारक दीनदयाल उपाध्याय ने 1961 में ही पाकिस्तान की नीयत को भांप लिया था। उन्होंने उस समय कहा था कि अधिक जमीन और पानी की पाकिस्तान की मांगों को स्वीकार कर भारत रणनीतिक तौर पर युद्ध हार रहा है। इससे भविष्य में दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत के सीमावर्ती इलाकों में ऐसे लोग नहीं होने चाहिए जिनकी 'ईमानदारी पर शक हो' और 'भारत की सीमा के कम से कम 15 मील के क्षेत्र में ऐसे लोग होने चाहिए जिन पर भरोसा किया जा सके।'
पाक की साजिशों को 1961 में पहले ही भांप लिए थे दीनदयाल उपाध्‍याय

उपाध्याय ने 1961 में कॉलम में लिखा था, फिरोजपुर में सतलुज के किनारों पर पाकिस्तानी कब्जे या भारतीय क्षेत्र से बहने वाली इचामती नदी के इस्तेमाल की अनुमति देने से हम न केवल रणनीतिक तौर पर युद्ध हारे हैं,बल्कि भविष्य में अनिश्चितताओं के लिए गुंजाइश भी बना दी है।

रेडक्लिफ कमीशन के सामने कभी विवाद का मुद्दा नहीं रही बेरुबरी यूनियन के आधे हिस्से को ट्रांसफर करने की सहमति देने से, हमने पाकिस्तान के लिए नए दावे करने और नए विवाद उठाने का एक नुकसान पहुंचाने वाला उदाहरण स्थापित कर दिया है।'

भारत की सीमा नीति पर उपाध्याय के लेख उनके 15 वॉल्यूम वाले संपूर्ण लेखन- दीनदयाल संपूर्ण वांग्मय का हिस्सा हैं, जिसका विमोचन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 9 अक्टूबर को उनकी वर्षगांठ पर करेंगे। उपाध्याय ने पाकिस्तान, चीन, भारतीय अर्थव्यवस्था, भगवान श्रीकृष्ण, बौद्ध धर्म, तकनीक, भारतीय महिलाओं और भारतीय संस्कृति पर लिखा था। इन्हें एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष महेश चंद्र शर्मा ने संकलित और संपादित किया है। 
उपाध्याय का कहना था कि सीमाओं की सुरक्षा केवल सेना पर नहीं, बल्कि सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों के पक्के इरादों पर भी निर्भर करती है। वह एक मजबूत विदेश नीति के साथ ही भारत के लिए अपनी टेक्नोलॉजी की जरूरत के भी पक्षधर थे। उनका कहना था कि देश को विकास के विदेशी मॉडल्स पर निर्भर नहीं होना चाहिए।

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