जांच समिति ने 199 पेज की रिपोर्ट में पूर्व सेना प्रमुख जनरल एन सी विज (2002-2005) और दीपक कपूर (2007-2010) के अलावा तीन लेफ्टिनेंट जनरल, चार मेजर जनरल और दर्जन भर सेना के अफसरों के साथ-साथ डिफेंस एस्टेट ऑफिस के अफसरों की संलिप्तता का खुलासा किया है और सरकार से उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की सिफारिश की है।
जांच में जिन अधिकारियों के नाम सामने आए हैं, उनमें से अधिकांश के आदर्श कॉपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में फ्लैट हैं। कोलांबा में 31 मंजिली यह इमारत मिलिट्री स्टेशन हेलीपैड के काफी करीब बनी है जो सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। आरोपियों में शामिल तीन रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल में जी एस सिहोता, तेजिन्दर सिंह और शांतनु चौधरी के नाम हैं, जबकि मेजर जनरल्स में ए आर कुमार, वी एस यादव, टी के कौल और आर के हुड्डा शामिल हैं। इससे पहले 2011 में रक्षा मंत्रालय को सौंपी गई सैना की आंतरिक जांच रिपोर्ट में भी ये नाम शामिल थे।
रिपोर्ट में पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल माधवेन्द्र सिंह का भी नाम है जिन्हें हाउसिंग सोसायटी में एक फ्लैट आवंटित किया गया है। भले ही वह घोटाले में संलिप्त नहीं थे लेकिन हाउसिंग सोसायटी का सदस्य बनने के लिए वह अयोग्य थे क्योंकि उन्होंने गलत हलफनामा दिया कि मुंबई में उनका कोई घर नहीं है। जांच रिपोर्ट के मुताबिक घोटाले में दोषी पाए गए लगभग सभी सेना के अफसरों को परिसर में फ्लैट दिए गए थे। तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने नौ दिसम्बर 2010 को सीबीआई जांच के आदेश दिए थे ताकि घोटाले में रक्षा बल और रक्षा संपत्ति अधिकारियों की जवाबदेही तय की जा सके।
कारगिल के शहीदों के लिए थे अपार्टमेंट
मुंबई में बनाए गए यह अपार्टमेंट कारगिल के नायकों के परिजनों के लिए थे लेकिन नियमों का उल्लंघन कर सैन्य के अफसरों, नेताओं और नौकरशाहों को कथित तौर पर फ्लैटों के आवंटन कर दिया गया। वर्ष 2010 में जब इसका पता चला तो बवाल मचा। घोटाले के कारण महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को इस्तीफा देना तक देना पड़ गया। भारतीय नौसेना ने सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर की थी क्योंकि भवन से इसके कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान सीधे नजर आते थे। भवन परिसर का निर्माण रक्षा मंत्रालय की जमीन पर किया गया था।
जनरल विज ने नहीं उठाए सवाल
जांच के मुताबिक, लगता है कि जनरल विज ने जांच के दायरे में आए जमीन के लिए किसी भी चरण में कोई सवाल नहीं उठाए, न ही उन्होंने सालाना सुरक्षा समीक्षा के दौरान सुरक्षा पर कोई चिंता जाहिर की। यह पता चला कि उनका इस मामले में 'निहित स्वार्थ' था। रिपोर्ट में कहा गया है कि जनरल कपूर भले ही मामले में सीधे जुड़े हुए नहीं थे लेकिन सोसायटी की सदस्यता हासिल करने में उन्हें 'ठीक से सलाह' नहीं दी गई। जिसमें कहा गया है कि परिसर में फ्लैट लेने के नतीजे पर उन्होंने गहनता से विचार नहीं किया।
कोर्ट ने कटघरे में किया था खड़ा
मुंबई हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष अपने आदेश में हाउसिंग सोसायटी के सदस्यों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि ये लोग उच्च पदस्थ नौकरशाहों या नेताओं या मंत्रियों के निकट रिश्तेदार हैं और षड्यंत्र कर जमीन हासिल की गई है।