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पानी-पानी मुंबई, दोषी कौन

शुक्रवार को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की सारी गतिविधियां अचानक से रुक गईं। लगातार 24 घंटे की भारी बारिश और समुद्र में उठे ज्वार ने मुंबई की सड़कों और लोकल ट्रेन की पटरियों में इतना पानी भर दिया कि पूरे शहर में बाढ़ के हालात बन गए। लोकल के पहिये तो तत्काल थम ही गए, सड़कों पर भी गाड़ियां जहां-तहां खड़ी हो गईं। इसके साथ ही यह सवाल एक बार फिर से पूछा जाने लगा कि अगर शहर मानसून की पहली बारिश भी नहीं झेल पाया तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है।
पानी-पानी मुंबई, दोषी कौन

शिवसेना-भाजपा के प्रभुत्व वाली बृहनमुंबई महानगर निगम (बीएमसी) का दावा है कि पिछले एक साल में शहर के नालों की सफाई, उनके मरम्मत और सड़कों के गड्ढे भरने में उसने करीब 2 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यही नहीं शहर में पानी भरने से महज दो दिन पहले बीएमसी ने शहर के दो अलग-अलग इलाकों में दो विशाल पंपिंग स्टेशन बड़ी धूम-धाम से शुरू किए। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के हाथों इनकी शुरुआत हुई और दावा किया गया कि इन पंपिंग स्टेशनों से प्रति सेकेंड 6 हजार लीटर पानी हटाया जा सकेगा। इन स्टेशनों के निर्माण की लागत करीब 250 करोड़ रुपये बताई गई है। इसके बावजूद जब मुंबई पर संकट आया तो ये पंपिंग स्टेशन शहर की कोई मदद नहीं कर पाए।

कहने को बीएमसी ने ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन ईकाई बना रखी है मगर मगर शुक्रवार को यह ईकाई भी सफेद हाथी ही साबित हुई। जब नेताओं को स्थिति की गंभीरता का अहसास हुआ तो राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे तथा अन्य मंत्री और पार्षद वहां दिन भर पहुंचकर हालात का जायजा लेते रहे मगर इससे स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आया। इस हालत के लिए राज्य की विपक्षी पार्टियों कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने बीएमसी की सत्ता पर पिछले दो दशक से काबिज शिवसेना और भाजपा को जिम्मदार ठहराया है वहीं भाजपा ने भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए बीएमसी में अपनी सीनियर सहयोगी पार्टी शिवसेना के सिर सारी जिम्मेदारी डाल दी है। इन सभी पार्टियों का आरोप है कि शहर के नाले साफ करने के सारे दावे कागजी हैं क्योंकि पहली बारिश में ही इन नालों से पानी बाहर निकलने की बजाय वापस शहर में लौटने लगा। इसके लिए नालों में भरी गंदगी को मुख्य कारण बताया जा रहा है। दरअसल यह एक खुली बात है कि मुंबई में ठेकेदार, बीएमसी अधिकारी और स्‍थानीय पार्षदों का एक गठजोड़ है जो स्‍थानीय ठेकों को कागज पर पूरा दिखाकर पैसों का बड़ा हिस्सा खुद डकार जाता है। वैसे भी नाला सफाई के सारे ठेके मानसून से पहले तक पूरे करने की शर्त होती है और ठेकेदार बारिश का इंतजार करते रहते हैं ताकि गंदगी पानी से खुद साफ हो जाए, हालांकि ऐसा होता नहीं है। शहर की पानी निकासी में एक बड़ा रोड़ा मुंबई शहर में कचरा निस्तारण की उचित व्यवस्‍था का न होना भी है। कचरापेटियों की भारी कमी के कारण मुंबई के निवासी ठोस कचरा अकसर सड़कों पर डालते हैं जो कि अंत-पंत नालों में पहुंचता है और उन्हें जाम कर देता है। नालों की सफाई न होने के कारण मानसून में इसकी सजा मुंबईकरों को ही भुगतनी पड़ती है।

विरोधी भले ही शिवसेना के सिर ठीकरा फोड़ने में जुटे हों मगर खुद शिवसेना इस मामले में रक्षात्मक नहीं है। दक्षिण मुंबई से पार्टी के सांसद अरविंद सावंत का कहना है कि मुंबई में 15 दिनों में जितनी बारिश होती है उतनी महज 24 घंटों में हो गई। इतना ही नहीं ठीक इसी दौरान समुद्र में ज्वार भी उठ गया जिसने शहर में और पानी भर दिया। ऐसे में हम कुछ कर ही नहीं सकते थे। यही बात बीएमसी के अतिरिक्त म्युनिसिपल कमिश्नर और आपदा प्रबंधन के प्रभारी संजय देशमुख ने भी कही। उन्होंने कहा कि गुरुवार की रात लगातार बारिश होती रही और इसी दौरान समुद्र में करीब 4 मीटर ऊंची लहरे उठीं। चूंकि मुंबई के नालों का पानी समुद्र में ही गिरता है और समुद्र पहले से ही चढ़ा हुआ था इसलिए नालों का पानी वापस आने लगा।

दावे जो भी हों मगर यह एक सच्चाई है कि हर वर्ष मानसून में मुंबईवासियों का सामना किसी नर्क से होता है। एक वैश्विक शहर होने के दावे पर यह शर्मनाक स्थिति भारी पड़ती है। एशिया के सबसे अमीर नगर निगम (बीएमसी का सालाना बजट 33 हजार करोड़ रुपये से अधिक है) में रहने वाले निश्चित रूप से इससे बेहतर जिंदगी के हकदार हैं। 

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