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नए अंदाज में आगाज

सफलता नए विचारों से इतर भी कई चीजों में निहित है। कुछ सफल उद्यमियों का सफर आैर अनुभव पेश है
नए अंदाज में आगाज

'भारत में उद्यमी बनने का यही सर्वोत्तम समय है।’ इस बयान को सुनते-सुनते हर कोई थक चुका है लेकिन पुराने समय के जिन स्वार्थी लोगों ने भी कई सारे बुलबुले देखे हैं, वे भी जोर देकर कहते हैं कि अब समय बदल चुका है। वाकई भारत में उद्यमी बनना फैशनेबल होने का अहसास देने लगा है। स्वतंत्र सोच रखने वाला तकरीबन 20 साल काएक संस्थापक प्रशंसा और धन दोनों बटोर लेता है। वह किसी बड़े कॉरपोरेट की कार्यसंस्कृति को मात देता है। व्यापक संदर्भ में देखें तो यह बैकऑफिस ठप्पे से छुटकारा पाने के लिए बड़ी उपलब्धि है।

 

     स्टार्ट-अप संस्थापकों की औसत आयु घट रही है (सन 2010 से जिन 3100 लोगों ने उद्योग शुरू किए हैं उनमें से कमोबेश आधे से ज्यादा उद्यमियों की उम्र 26 से 35 साल के बीच ही है)। यह दर्शाता है कि इनमें से कई उद्यमियों को कार्यक्षेत्र का वास्तविक अनुभव भी नहीं होगा। लेकिन जैसाकि आपको बार-बार याद दिलाया जाता है, ये सभी कोई भी चीज बड़ी तेजी से सीख लेते हैं। इसके अलावा एक संपूर्ण समर्थन प्रणाली उपलब्‍ध है जिसका आप लाभ उठा सकते हैं। जानकारों का कहना है कि कुछ बाधाएं (कुछ तो नियम-कायदों से जुड़े हैं जिनसे शुरुआती चरण के वित्तपोषण, लेन-देन और निर्गमन प्रभावित होते हैं) हैं, जिनसे भारत में नव-उद्यमियों के लिए माहौल विकसित नहीं हो पाता जबकि सच तो यह है कि भारत में निवेशक समुदाय अब तक परिपक्व नहीं हो पाया है। कभी न कभी कोई तो सवाल करेगा ही कि कोई बुलबुला बढ़ रहा है। इसके बावजूद यही सच है कि अनुभवी लोगों के साथ समझौते करने, रणनीतियां बनाने और उन्हें रोजगार देने वाले बहुत सारे लोग अब रौबदार पोशाक और पके बाल वाले नहीं रह गए हैं।

 

अत: कोई कंपनी स्थापित करने के लिए कौन-कौन से नियम मायने रखते हैं? आप तत्काल उद्यमशीलता का कखग कैसे सीख सकते हैं? संस्थापक कैसे लड़खड़ा जाते हैं? अलग-अलग वर्गों के लोगों से बात करने के बाद हमने एक कारोबार शुरू करने और उद्योग स्थापित करने के दस सामान्य नियम तय किए हैं:

 

1. यह बहुत बुनियादी नियम है लेकिन आपको असल समस्या हल करने की जरूरत है

कोई उद्यम शुरू करने की बत्ती जब आपके दिमाग में जलती है तो आप हमेशा सर्किट-ब्रेकर (दायरे से बाहर निकलने वाला) बनने की जरूरत होती है। सही है कि आपके मन में किसी अद्भुत उत्पाद का विचार आया हो। लेकिन क्या आपने बड़े सवाल पर विचार किया है: समस्या क्या थी जिसे मुझे सुलझा लेना चाहिए था और क्या कोई ग्राहक इसका इंतजार कर रहा है? कारोबार की ज्यादातर तरकीबें कई बार प्रयास करने लायक बनाने से पहले बदल जाती हैं।

 

वेंचरनर्सरी के रवि किरण को अक्सर युवा संस्थापकों (इनमें उनसे प्रशिक्षित एक कारोबारी भी था जो अपना उत्पाद बेचने के लिए तैयार कर चुका था और लगभग दो महीनों के दौरान 50-60 ग्राहकों से मिल चुका था।रवि का मानना है कि वह सिर्फ किसी उचित समस्या का स्वरूप देखना शुरू कर रहे हैं।) के इस सवाल का सामना करना पड़ता है, 'क्या आपने कभी कॉफी शॉप में बैठकर इस समस्या को पहचाना है या आपको कभी असली और क्षमतावान ग्राहक मिले हैं।’ किसी व्यक्ति की उबर सेवा की नकल असल में कारगर नहीं होती यानी अन्य सेक्टरों में टैक्सी सेवा के ऐप मॉडल का क्लोन बनाने की कोशिश को नया कारोबार नहीं कहा जा सकता। आईआईएम बेंगलूरू में एन. एस. राघवन सेंटर फॉर आंत्रप्रेन्योरिल लर्निंग (एनएसआरसीईएल) में पारिवारिक व्यवसाय और उद्यमिता के मुख्य प्रोफेसर के. कुमार लोगों की तीन सरल धारणाएं गिना सकते हैं: 'मेरे पास सटीक उत्पाद है। मेरी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। बाजार में इसकी व्यापक संभावना है।’

 

2. यदि किसी को अपनी क्षमता पर भरोसा है तो यह कभी विचार नहीं हो सकता

आपसे आगे निकलने वाला प्रत्येक संस्थापक (जो विचार, उत्पादों और ग्राहकों से संपन्न हो) इस छोटी-सी साधारण समझ को खंडित कर देगा: 'व्यवसाय पूरी तरह कार्यान्वयन से जुड़ा है।’ इतना ही नहीं: भारत में ऐसा करना कहीं ज्यादा मुश्किल है। लिहाजा आप अपने विचार से कितना जुड़े हैं, मायने रखता है और यही ऐसी चीज है जिस पर आपके समर्थक बाजी लगा सकते हैं। प्रौद्योगिकी के माध्यम से बच्चों में साक्षरता सुधारने के मकसद से एक गैर-लाभकारी मुहिम एकस्टेप शुरू करने के लिए हाल ही में नंदन और रोहिणी नीलेकणी के साथ जुड़ने वाले निवेशक और संरक्षक शंकर मरूवाडा कहते हैं, 'एक नेक दूत (गैर-व्यावसायिक दुनिया का एक संरक्षक) यह प्रदर्शित करने की कोशिश करता है कि कैसे उद्यमी बना जाए।’

 

दूसरा किसी सह-संस्थापक को तलाशें। मित्र और परिवार, पति और पत्नी, कोई भी हो सकता है। कोई नियम नहीं है कि किसके साथ मिलकर काम शुरू किया जाए, जब तक कि उपक्रम में कोई बखेड़ा न खड़ा हो जाए। लेकिन अकेले शुरुआत करना कोई अच्छा विचार नहीं है क्योंकि पूरक गुणों वाले किसी भागीदार से मदद ही मिलती है। और कम से कम दस साल तक मिलकर काम करने के बारे में सोचें। मॉल जैसे सार्वजनिक स्थलों पर पार्किंग की जगह आरक्षित करने के मकसद से वाहन मालिकों को मदद करने वाला मोबाइल ऐप पीपार्क बनाने के लिए अपने पति प्रीतम के साथ काम कर रही शंपा गांगुली कहती हैं, 'पति-पत्नी दोनों के कारोबार को पारिवारिक व्यवसाय बताने की मानसिकता रही है। हमारे बीच दृष्टिकोण स्पष्ट हैं और हम काम बांटकर करते हैं।’ दोनों की मुलाकात कॉलेज में हुई थी और दोनों ने नया उपक्रम शुरू करने का फैसला करने से पहले एक दशक तक विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) के साथ काम किया था।

 

3. आत्मसंतुष्टि का मुगालता छोड़ें: वित्तपोषण का मतलब सफलता नहीं है

इसे बार-बार पढ़ें। कई कारणों से यह एक आसान गलती है। कारोबार शुरू करने वाले जिन संस्थापकों ने उपक्रम पूंजी के लिए लाखों डॉलर जुटाए हैं, वे आज सफल उद्यमी हैं। लिहाजा, यह एक उचित और साहसी कार्य है कि लोगों को नकद राशि के साथ भागीदारी के लिए तैयार किया जाए। लेकिन अपने व्यावसायिक मॉडल पर किए गए कठिन परिश्रम को साबित करने के लिए धन शायद ही कोई मायने रखता है।

 

अनुभवी निवेशक हरेश चावला कहते हैं, 'वित्तपोषण किसी भी सूरत में सफलता से बराबरी नहीं कर सकता है। लोग यही एकमात्र सबसे बड़ी गलती कर बैठते हैं। उन्हें लगता है कि इससे उनका व्यावसायिक मॉडल प्रामाणिक होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। वित्तपोषण का मतलब यही है कि निवेशक काम शुरू करने और इसे आजमाने को कह रहे हैं।’ इस मामले में, किसी रियायती योजना का मतलब यह नहीं कि आपका मॉडल किसी तरह काम कर रहा है। 'आप सड़क पर खड़े होकर 100 रुपये का नोट गिराकर देख सकते हैं कि कोई उसे उठा लेगा। आप देखें कि वे आपके पास आकर आपसे यह पूछते हैं यानहीं कि वह नोट आपका तो नहीं गिरा है।’

 

फिर आप धन जुटाने के लिए कब निकल रहे हैं? जानकारों का कहना है कि कारोबार शुरू करने का आदर्श तरीका अपने धन (पुरस्कार राशि, बचत आदि) से न्यूनतम उत्पाद तैयार करना होगा। इसके बाद ही आप पहले निवेशक से मिलने जाएं। हाउसिंग डॉट कॉम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ऋषभ गुप्ता कहते हैं, 'जब धन की वजह से आपकी कंपनी का विकास और प्रदर्शन अवरुद्ध होने लगे तो यही धन जुटाने का उचित वक्त होता है। किसी निवेशक को चुनना एक पत्नी को चुनने जितना ही जटिल कार्य होता है।’ हाउसिंग डॉट कॉम के संस्थापक राहुल यादव के बारे में बाद में बताया जाएगा। 

 

4. शर्माए बगैर विशेषज्ञों से मदद लें

पिछले साल किसी वक्त 22 साल के हर्षित श्रीवास्तव ने आईआईटी, खड़गपुर से अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ने का फैसला किया और एक ऐसे व्यवसाय का विचार लेकर बेंगलूरू पहुंच गए, जो पूरी तरह उनका नहीं था। जब तक उन्होंने अपना उपक्रम नहीं शुरू कर लिया, अपने कुछ वरिष्ठ सहयोगियों (जो अपना-अपना कारोबार शुरू करने जा रहे थे) के साथ ही रहे। आईआईटी नेटवर्क एक अत्यंत मजबूत गठजोड़ (दरअसल, हर्षित को आरंभ में सहयोग करने वाले चार मित्रों में से एक, हर्ष चिताले फिलिप्स लाइटिंग सॉल्यूशंस में दक्षिण एशिया के प्रमुख थे और आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र थे) हो सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि सिर्फ एकल संस्थापकों को ही मदद की जरूरत होती है और वे ही सहयोग प्रणाली के साथ जुड़ पाते हैं। इनमोबी को अब भारत में सबसे दिलचस्पी के साथ देखे जाने वाले शुरुआती उपक्रमों में से एक माना जाता है, जिसमें नंदन नीलेकणी भी एक संरक्षक माने जाते हैं। इस नव-उद्यमी ने किसी समय उनके समझदारी भरे विचार के लिए उनसे संपर्क किया होगा।

महज पांच साल पहले भारत के कई दिग्गज नव-उद्यमी अपने पांव जमाने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि आज फ्लिपकार्ट के सचिन बंसल, स्नैपडील के कुणाल बहल, पेटीएम के विजय शंकर शर्मा तथा जोमाटो के दीपेंदर गोयल खुद के सलाहकार बन चुके हैं। अत: नियम लोगों से मिलते-जुलते रहने का ही है। सामान्य सलाह है, 'सवाल करने में बेशर्म हो जाएं।’ आखिरी महत्वपूर्ण बात कि देश में तकरीबन 80 से ज्यादा नव-उद्यमी हैं और करीब 550 नेक निवेशक हैं। अपनी बात को फैलाएं और जोखिम की संभावना टटोलें- ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बनाएं और हर दृष्टिकोण से बात करें। लिहाजा विशेषज्ञों का खास टीम में उद्यमी, वित्तपोषक, मार्केटिंग से जुड़े लोगों, मीडिया के जानकारों (जी हां, ये भी अहम होते हैं) तथा कभी-कभी पुराने अनुभवी को भी रखें जो यह सब देख चुका है। अनुभव मायने रखता है।

 

5. अपने नव-उद्यम सपने को न कि उपक्रम पूंजी को जिंदा रखें

धन के पीछे नहीं भागें। विवेकपूर्ण सलाह पर चलने के बजाय अपने विचार को जिंदा रखें। एनएसआरसीईएल के प्रोफेसर कुमार कहते हैं कि लेकिन यदि आप नव-उद्यम के बारे में बात करते हैं तो लोग समझते हैं कि आपको किसी पेशेवर निवेशक से धन जुटाने की दरकार है। जरूरत पड़ने पर जब आपके पास धन नहीं होगा तो आपका कारोबार ठप पड़ सकता है लेकिन आपको कोई व्यावसायिक मॉडल साबित करने के लिए कभी पूंजी की जरूरत नहीं पड़ती।

 

हाल ही में बाजार नियामक सेबी ने नव-उद्यमियों को शेयर बाजार में शामिल करने और धन जुटाने के लिए कुछ आसान नियम बनाते हुए उन्हें राहत दी है। लेकिन जानकार इसे नव-उद्यम शुरू करने में मदद के लिए सिर्फ पहला कदम मानते हैं और इसी तरह के कुछ अन्य उपायों की उम्मीद करते हैं।

 

वेंचरनर्सरी के रवि किरण कहते हैं, 'जिस क्षण आप नव-उद्यमिता की जगह उद्यमशीलता शब्द का इस्तेमाल करते हैं लोगों को इसका मतलब उपक्रम पूंजी कोष और धन जुटाने की उपलब्धियों के अर्थ में लगने लगता है। मैंने इसमें व्यापक गफलत देखी है, खासकर भारत के युवाओं में, जो नव-उद्यम और छोटे कारोबार के बीच अंतर नहीं देख पाते हैं। और इसी तरह उन्हें पूंजी उपक्रम और ग्राहकों के धन में कोई अंतर नजर नहीं आता।’ उन्होंने दुनिया के कई और व्यवसायों के बारे में बताया जो पुराने पूंजी प्रवाह से मूर्त हुए हैं।

 

6. सबसे पुरानी तरकीब: सतर्क रहें, शुरुआत करने से पहले अच्छी तरह सोचें, फिर आगे बढ़ें

हर कोई सहमत है कि नव-उद्यम का परिचालन कब शुरू किया जाए, यह ग्राहकों की प्रतिक्रिया और इसकी नकद राशि पर निर्भर करता है। लेकिन हर किसी को सतर्क रहना होगा कि यह पेचीदा होता है। क्या आप एक यात्रा से ज्यादा शहरों में या पहली ही बार में एक ही शहर की खाक छान लेते हैं, आप चाहे जितनी तेज प्रौद्योगिकी खरीद लें, लेकिन क्या आपकी प्रौद्योगिकी अधोसंरचना इसे संभाल पाती है?  दुनियाभर में किए गए अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि 70 प्रतिशत कंपनियां अपरिपक्वता के साथ आगे बढ़ने के कारण ही विफल हुई हैं?

 

टैक्सीफॉरश्योर (राधाकृष्ण और उसके सहयोगी जी. रघुनंदन ने मार्च में 20 करोड़ डॉलर में अपने प्रतिद्वंद्वी कंपनी ओला के हाथों कंपनी बेची) के सह-संस्थापक अपरामेय राधाकृष्ण बताते हैं कि कई बार तरक्की के सिवा कोई विकल्प नहीं मिलता है। उन्होंने कहा, 'साढ़े तीन वर्षों तक हमने टैक्सीफॉरश्योर चलाई, उस दौर में हम प्रतिस्पर्धा में आगे रहे। हम और ज्यादा आक्रामक हो सकते थे लेकिन हम नहीं हुए। हमने इस गलती से सबक लिया। अत: अगली बार जब हमें मौका मिला तो हमने गैस के क्षेत्र में कदम बढ़ाया।’

 

हाउसिंग के गुप्ता ने कहा, 'भारत में प्रदर्शन करना सबसे बड़ी चुनौती है और आसपास की हर चीज आपको इसे करने से रोकेगी। अपने विचारों का आक्रामक प्रदर्शन निरंतर तरक्की सुनिश्चित करने का एक सिद्ध तरीका है।’ वह आगे बताते हैं कि कंपनियों को प्रत्येक बारीकी का संपूर्ण प्रदर्शन करने और तेजी से प्रदर्शित करने की जरूरत है। जब हमारी 'प्रमाणित सूची’ की अवधारणा हमारे ग्राहकों के लिए बड़ी कामयाबी साबित हो गई तो हमने भौगोलिक स्तर पर विस्तार का फैसला किया, हम तीन महीने से भी कम समय में प्रथम दर्जे के दस शहरों से शुरुआत की (मई में हाउसिंग डॉट कॉम के 26 वर्षीय संस्थापक राहुल यादव ने मुंबई की रियल एस्टेट से जुड़ी नव-उद्यमी कंपनी को अचानक छोड़ दिया। उन्हें कुशाग्र, सनकी और अपरिपक्व के रूप में संबोधित किया जाने लगा। मशहूर नव-उद्यमियों में से एक राहुल की निवेशकों के साथ असहमति स्पष्ट रूप से परिचालन शुरू करने के तौर-तरीकों को लेकर ही थी)।

 

7. कर्मचारियों का सही दल बनाएं

 नव-उद्यम के लिए नियुक्तियां किसी बड़ी और स्थापित कंपनियों की नियुक्ति जैसी नहीं होती हैं। नकदी के संकट वाले कई नव-उद्यमों को उपयुक्त के चयन में दिक्कत आती है। लेकिन वैसे उद्यम भी बड़ी संख्या में नियुक्तियां कर लेते हैं, जिनके पास धन होते हैं। दस राज्यों में पवनचक्कियों का संचालन करने वाली और अब तक लगभग 50 करोड़ डॉलर का वित्तपोषण जुटा चुकी कंपनी रीन्यू पावर के संस्थापक और सीईओ सुमंत सिन्हा कहते हैं, 'हमने जब शुरुआत की थी तो हमारे यहां बिल्कुल अलग कार्य संस्कृति थी क्योंकि तब हमारी बहुत छोटी कंपनी थी। और उस समय प्रतिरोध का स्तर बहुत निम्न था। लेकिन जैसे ही हम तेजी से आगे बढ़े, हमने पहले जिन लोगों को नियुक्त किया था, वे अब कंपनी के लिए उपयुक्त नहीं रह गए थे और इसलिए मनमुटाव भी बढ़ता गया। आते-जाते कर्मचारियों से कामकाज का बहुत अच्छा माहौल नहीं रह जाता है।’

 

तो फिर नियुक्ति के वक्त किन बातों का खयाल रखना चाहिए? बेंगलूरू स्थित मोबाइल विज्ञापन टेक्नोलॉजी की स्टार्ट-अप कंपनी में मुख्य राजस्व अधिकारी रह चुके अतुल सतीजा कहते हैं, 'हमने यह मॉडल इनमोबी से अपनाया था जिसे हमने किक-ऐस नियुक्ति मॉडल करार दिया था।’ इसमें हावभाव, चपलता और दक्षता को जरूरत के मुताबिक क्रमबद्ध किया गया था। वह बताते हैं, 'इसका मतलब है कि आपको हमेशा हावभाव देखकर पहले नियुक्ति करनी चाहिए।’ उनका कहना था कि सबसे पहले दक्षता को महत्व देने की गलती अमूमन सभी उद्यमी कर बैठते हैं। उनके मुताबिक, इससे आपके समूह में अचानक बहुत कम लोग रह जाएंगे और वे हतोत्साहित हो जाएंगे। कई वर्षों तक गूगल में काम कर चुके अतुल सतीजा कहते हैं कि इनमोबी में रहते हुए अपने पांच साल के दौरान उन्होंने बहुत कुछ सीखा है।

 

8. अपने संकट में घड़ी में इसकी अनदेखी करें: प्राथमिकता तय करना सीखें

नव-उद्यम शुरू करने का मतलब है कि एक ही समय पर किसी भी जगह सैकड़ों समस्याओं से जूझना। अक्सर उद्यमियों के लिए इस लिहाज से किसी समस्या की प्राथमिकता तय करने में मुश्किल हो जाती है कि कंपनी के हित में सर्वश्रेष्ठ क्या होगा। लेकिन आप किसी ऐसी कंपनी में कैसे समस्याओं की प्राथमिकता तय करेंगे, यदि वह बिल्कुल नई हो?

 

खाद्य पदार्थ वितरित करने वाली कंपनी फूडपांडा ने हाल ही में बिजनेस अखबार मिंट की एक पड़ताल पर गौर किया है जिसमें बताया गया है कि इसके परिचालन में कई सारी विसंगतियां हैं जिस वजह से इसे राजस्व नुकसान हो रहा है। उल्लेखनीय है कि इस पड़ताल में कंपनी की उन त्रुटियों का भी जिक्र है जिनकी बदौलत कुछ ग्राहकों नेे लगभग मुफ्त में ऑनलाइन फूड ऑर्डर किया। इसमें फर्जी ऑर्डर का भी आरोप लगाया है- कि फूडपांडा की सूची में कई रेस्तराओं का अस्तित्व ही नहीं है और इसके लेन-देन की प्रक्रिया पर्याप्त रूप से सख्त नहीं है।

 

फूडपांडा के सीईओ सौरभ कोचर ने आउटलुक को बताया कि नव-उद्यमिता में कई मुद्दों से निपटना पड़ता है, हालांकि उन्होंने विशेष आरोपों पर चर्चा नहीं की। उन्होंने कहा, 'व्यवस्था में अब भी कुछ समस्याएं हैं और हम उन्हें सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हम उनकी प्राथमिकता तय कर रहे हैं कि किस पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिए।’ कई नव-उद्यमों से इतर फूडपांडा की शुरुआत पेशेवर संस्थापकों द्वारा की गई थी जिनसे निवेशकों ने ही संपर्क कर इस कारोबार को शुरू करने के लिए निवेश की पहल की थी। वह कहते हैं, 'इस तरह का कोई मॉडल शुरू में एक बार ही चलता है। एक-एक चीज की बारीकियां समझने और धन की मांग करने के बजाय आपको वित्तीय समर्थन का वचन लेना पड़ता है। आप कई तरह के प्रयोग कर सकते हैं।’ नवउद्यमियों को मीडिया की सुर्खियों पर भी नजर रखनी चाहिए। मीडिया उसके बारे में क्या सोचता है या किसी अन्य नवउद्यम के बारे में उसकी क्या राय है, यह जानना और अपना मूल्यांकन करना नए कारोबारियों के लिए जरूरी है।

 

अक्सर प्राथमिकता का मतलब जवाबदेही सौंपना भी होता है, जिसे ज्यादातर संस्थापक चौकन्ने रहते हैं। रीन्यू पावर के सिन्हा कहते हैं, 'जैसे ही कंपनी विकसित होती है, आप समझने लग जाते हैं कि आप हर चीज पर नजर नहीं रख सकते। हर काम में हाथ डालने से अक्सर काम अपर्याप्त रह जाते हैं। जिम्मेदारियों की सुपुर्दगी बड़े, अक्सर दबावकारी, मुद्दों पर ध्यान देने का वक्त देती है।’

 

9. ऐसा बार-बार होता रहा है: पारदर्शी, खुला और स्पष्टवादी बनें

फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने हाल ही में जब मेनलो पार्क, कैलिफोर्निया में कंपनी का नया कार्यालय का एक वीडियो पोस्ट किया था तो कहा था: 'फेसबुक में किसी के पास कार्यालय नहीं है। हर किसी के पास डेस्क है, कंपनी चलाने वाले लोगों के पास भी, क्या‌ेंकि एक ऐसी खुली और पारदर्शी संस्कृति बनाने का विचार रखा गया था जहां हर कोई देख सकता हो कि दूसरा कोई क्या कर रहा है।’ नव-उद्यमों को कई बदलावों से गुजरना पड़ता है। कई बार आपको अपनी योजना में थोड़ा-बहुत फेरबदल भी करना पड़ सकता है। इसके अलावा धन खर्च करने के कई रास्ते निकल आते हैं। यह टीम के अंदर और भागीदारों के साथ भी चीजों के खुलेपन की कीमत होती है। माइक्रोसॉफ्ट वेंचर्स इंडिया के निदेशक रवि नारायण बताते हैं, 'शुरुआत से ही सुनिश्चित कर लें कि आपके पास पारदर्शी प्रणाली है। आपके अंशधारकों को सतर्क रहना होगा कि व्यावसायिक स्तर पर चीजें कहां टिकती हैं, ताकि भविष्य में कोई अप्रिय घटना से चकित न होना पड़े।’

 

वह एक और कंपनी यूनिस्टॉल डाट आईओ के परामर्शदाता हैं। इसके संस्थापकों ने जैसे ही उत्पाद की रूपरेखा में बदलाव को लेकर खुलापन प्रदर्शित किया, उनके पास ज्यादा ग्राहक जुटने लगे तथा अब यह कंपनी सभी मोर्चों पर सही दिशा में जा रही है। इस नवउद्यम ने विकासकों को यह ढूंढ़ने में मदद की कि उपभोक्ता उनके मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करना क्याें बंद कर रहे हैं और इसके बाद उन्होंने यूनिस्टॉल की दरें कम कर दीं। सुमंत सिन्हा कहते हैं, 'निवेशकों के लिए उद्यमी की उद्देश्य के प्रति ईमानदारी और निष्ठा देखना जरूरी है। उन्होंने कंपनी में निवेश किया है और इसलिए उनके नीति निर्धारण में इतना कहना तो जरूरी है कि हम उनके साथ पारदर्शिता बरत रहे हैं।’

 

10. विफलता बुरी चीज नहीं है

यदि भारत के नव-उद्यम की तेजी में बदलाव का प्रतीक बताया जाए तो यह बड़ी संख्या में उन युवाओं की इच्छाशक्ति ही है जिन्होंने जोखिम होने के बावजूद उद्यमशीलता में हाथ आजमाने की कोशिश की। यदि चीजें आपके अनुकूल नहीं हो रही हों तो इसी आत्मविश्वास के साथ आप हमेशा एक नौकरी तलाश सकते हैं। शंकर मरूवाडा कहते हैं, 'जिस उद्यमी का उपक्रम विफल हो जाता है तो उसे उस वक्त आजमाना आपके लिए बेहतर होगा जब आप किसी को नियुक्त करना चाह रहे हों।’

 

ऐसा नहीं है कि विफलता से सिर्फ नुकसान ही उठाना पड़ता है, इसके अनुभव कई मोर्चों पर काम आते हैं। सफलता की मंजिल असफलताओं की सीढ़ियां चढ़ते हुए ही पार की जाती है। ऐसे विरले ही होते हैं जिन्हें पहली बार में कामयाबी मिल गई हो। संस्थापकों के मामले में ही सिर्फ ऐसा नहीं है। अक्सर उनकी मुख्य टीम के सदस्य भी हो सकते हैं जो बड़ी कंपनियों के वरिष्ठ पदों से इस्तीफा दे देते हैं। अपरामेय राधाकृष्ण कहते हैं, 'कुछ लोग जहां भी काम करते हैं, वहां अति जुनूनी हो जाना चाहते हैं और समाज पर बड़ा प्रभाव छोड़ना चाहते हैं। इस प्रकार के लोग नव-उद्यमों के साथ काम करना पसंद करते हैं। मैंने बहुत सारे ऐसे लोग देखे हैं जिन्होंने बड़ी कंपनियों के लिए काम किया है, उस कंपनी के साथ शुरुआती दौर से जुड़े रहे और कभी लौटना नहीं चाहा।’ ऐसे लोगों की जमात बढ़ती रहे, हमारी यही शुभकामना है।

 

 कविल रामचंद्रन

बी-स्कूलों में उद्यमिता शिक्षा पर

भारत में उद्यमिता की शिक्षा पर और अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। उद्यमियों की नई पौध में कई नव प्रवर्तक नहीं हैं। हम उच्च विचार, उच्च विकास की बातें करते हैं मगर फेसबुक जैसा प्रोजेक्ट भारत में नहीं बनता। अधिकांश आईआईटी-आईआईएम में उच्च दक्षता के उत्प्रेरक नहीं है। अधिकांश बी-स्कूलों में खुद अनुभव रखने वाले उद्यमी शिक्षक नहीं हैं। उद्यमिता का लंबी अवधि का विचार तो स्कूलों से ही शुरू हो जाना चाहिए। इसके साथ ही परिवार का समर्थन भी होना चाहिए। बड़ी कंपनियों को आगे आकर एक फंड तैयार करना चाहिए और नई तकनीक लानी चाहिए ताकि छात्रों में उद्यमिता की भावना बढ़े।

(प्रोफेसर रामचंद्रन आईएसबी में शिक्षक कार्य करते हैं)

 

 सुमंत सिन्हा

फंडिंग में जादुई गोली की कमी के बारे में

आपको सही क्षेत्र के चयन और यह जानने की जरूरत है आप उस क्षेत्र में काम करने योग्य हैं। हर क्षेत्र के कुछ मूलभूत कारोबारी सत्य होते हैं और यदि आप उन्हें समझते हैं तो आप एक कारोबार आरंभ करने की सही स्थिति में हैं। जब आप कारोबार शुरू कर देते हैं जो समझ आपने बनाई और वह क्षेत्र आगे जो रुख लेता है और आपने जो उम्मीद लगा रखी है हो सकता है उसमें कुछ अंतर हो जाए। आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं आपको बिजनेस को और विस्तृत करना होता है। आप सिर्फ अगले एक से दो वर्ष की योजना बनाएं न कि बहुत लंबे समय के लक्ष्य तय करें। जहां तक बात आती है निवेश की, इसके लिए कोई जादू की गोली नहीं है। आप जितने दरवाजे खटखटा सकते हैं खटखटाएं। यह महत्वपूर्ण है कि आपका निवेशक आपके आइडिया को समझे और आप जो करना चाहते हैं उसका आपको मौका दे। कारोबार में आक्रामक होना या हद से अधिक वादे कर देना किसी उद्यमी द्वारा की जाने वाली बड़ी गलतियों में है।

(सिन्हा रीन्यू पावर लिमिटेड के संस्थापक एवं सीईओ हैं)

 

 रमन रॉय

उपभोक्ताओं की जरूरतों की प्रामाणिकता पर

एक दशक पहले तक, यदि आप किसी कारोबारी घराने से नहीं हैं तो अपना खुद का कारोबार शुरू करने को विफलता की निशानी माना जाता था। आज मैं जिन युवा उद्यमियों से मिलता हूं वह अपने काम को लेकर जुनूनी हैं। इससे भी बेहतर, आज इंक्यूबेटर्स हैं जो ऐसे युवाओं की मदद और समर्थन करते हैं। देश में आज निवेश की तलाश करना मुश्किल नहीं है मगर उन्हें हासिल करते समय किसी स्टार्ट अप के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जिस ग्राहक वर्ग को वह लक्षित कर रहा है उसका प्रमाणीकरण करें। किसी कारोबार को शुरू करते समय दूसरी  महत्वपूर्ण चीज है सही लोगों को जोडऩा। किसी कारोबार को चलाने में नकदी का प्रवाह अब मुख्य भूमिका नहीं निभाता। निवेशक उस कारोबार को भी समर्थन देते हैं जो शुरुआत के पांच साल के बाद भी घाटे में हो।

(रॉय इंडियन एंजेल नेटवर्क के संस्थापक और बीपीओ उद्योग के पुरोधा हैं)

 

हर्ष चावला

उद्यमियों द्वारा झेले जाने वाले दबाव के बारे में

असली बात है: क्या आपके सह संस्थापक योग्य हैं? आपको यह अकेले नहीं करना चाहिए इसलिए आपको सह संस्थापकों की तलाश करनी चाहिए क्याेंकि मिलकर बहुत भारी दबाव से जूझना है। और क्या वे संपूरक हैं? यही शुरुआती बिंदु है। मेरा रुख यह है कि आपको पीछे हटने के लिए तैयार रहना चाहिए और आप एक आसान राह की उम्मीद नहीं कर सकते। आपको एक लंबे-लंबे समय तक जूते का फीता बंधा रखने के लिए तैयार रहना चाहिए। मेरा सुझाव है कि आपको न्यूनतम व्यावहार्य उत्पाद तैयार करना चाहिए और इसके लिए अपने दोस्तों और परिवार से पैसे की मदद लेनी चाहिए क्यों‌कि पैसा जुटाने में आपका लंबा समय खर्च होता है और आप अपने उत्पाद की कुछ मूलभूत जांच भी नहीं कर पाते हैं। यहां पैसे की कमी मसला नहीं है मसला अच्छे आइडिया की कमी का है।

ज्यादा ध्यान आइडिया पर होना चाहिए।

(इंडिया वैल्यू फंड एडवाइजर्स के साझेदार और नेटवर्क18 के पूर्व सीईओ)

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