सरकार के सूत्रों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट और 24 हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया के दस्तावेज मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) के संशोधित मसौदे में सरकार ने इस मांग को स्वीकार किया है। इसके तहत कितनी ही संख्या में अब वकीलों और न्यायविदों को जज नियुक्त किया जा सकेगा। मार्च में भारत के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर को भेजे गए एमओपी के मसौदे में संशोधन को सरकार ने स्वीकार कर लिया है।
मार्च के मसौदे में कहा गया था कि अच्छे रिकार्ड वाले बार के प्रख्यात सदस्यों और अहम न्यायविदों में से अधिकतम तीन जजों को ही सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया जा सकता है। लेकिन, कोलेजियम का कहना था कि इस अधिकतम सीमा को हटाया जाना चाहिए। सरकार कोलेजियम के इस प्रस्ताव पर अब राजी हो गई है। तीन अगस्त को ही सीजेआइ ठाकुर को भेजे गए पत्र में सरकार ने उच्चतम स्तर पर अपना पक्ष साफ कर दिया था। सरकार ने इस बात पर भी अपनी सहमति जता दी कि प्रोन्नति का मुख्य आधार वरिष्ठता होगा। इससे पहले के मसौदे में सरकार ने वरिष्ठता के साथ-साथ मेरिट को भी प्रोन्नति के लिए जरूरी बताया था। हालांकि, संशोधित मसौदे में सरकार इस बात पर कायम है कि उसके पास कोलेजियम की सिफारिश के किसी भी नाम को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ और ‘जनहित’ के आधार पर खारिज करने का अधिकार होगा।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले मई में ही कोलेजियम ने सरकार के इस अधिकार को खारिज करते हुए कहा था कि इससे न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में दखलअंदाजी बढ़ेगी। जबकि मई के महीने में सरकार ने कोलेजियम को यह अधिकार देने से मना किया था कि नाम खारिज करने के बाद भी कोलेजियम बार-बार वही नाम भेज सकेगा। लेकिन, नए मसौदे के अनुसार सरकार अब कोलेजियम को सिफारिश खारिज करने की वजह बताएगी। गौर हो कि एक तरफ सरकार और न्यायपालिका एमओपी को अंतिम रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को कहा था कि न्यायिक व्यवस्था विफल हो रही है। साथ ही मुख्य हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों की नियुक्त और स्थानांतरण के कोलेजियम के फैसले को ना मानने पर केंद्र सरकार को कड़ा संदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि वह न्यायपालिका का कामकाज ठप कराने को बर्दाश्त नहीं करेगा और जवाबदेही तय करने के लिए मामले में हस्तक्षेप करेगा।