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आध्यात्म से जेल तक साध्वी प्रज्ञा का सफर

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मालेगांव धमाका केस में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जमानत दे दी है। हालांकि, इसी मामले में अभियुक्त लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित की जमानत याचिका खारिज कर दी गई है।
आध्यात्म से जेल तक साध्वी प्रज्ञा का सफर

गत जनवरी में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कहा था कि मालेगांव मामले की मुख्य अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जमानत देने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है। एनआईए के इस रुख के बाद ही साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बड़ी राहत मिल सकती है। 

जिस मोटर साइकिल की वजह से साध्वी को आरोपी बनाया गया है वह उनके नाम पर दर्ज थी, लेकिन धमाके से पहले से फरार आरोपी राम जी कालसांगरा उसे इस्तेमाल कर रहा था। इस मामले की शुरुआती जांच महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते ने की थी, जो बाद में एनआईए को सौंपी गई थी।

गौरतलब है कि 29 सितंबर 2008 को नासिक जिले के मालेगांव शहर में एक बाइक में बम लगाकर विस्फोट किया गया था। इसमें आठ लोगों की मौत हुई थी और करीब 100 लोग जख्मी हो गए थे। इस मामले में साध्वी प्रज्ञा और पुरोहित को 2008 में गिरफ्तार किया गया था। तब से वे जेल में हैं। कैंसर से पीडित साध्वी का मध्य प्रदेश के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है जबकि पुरोहित महाराष्ट्र के तलोजा जेल में है।

हिंदुत्‍व की अलख जगाने के फेर में जेल की सलाखों के पीछे पहुंची प्रज्ञा सिंह का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है। प्रज्ञा सिंह ठाकुर का जन्म मध्य प्रदेश के कछवाहाघर इलाके में ठाकुर चन्द्रपाल सिंह के घर हुआ था। 40 वर्षीय प्रज्ञा के अभिभावक बाद में सूरत गुजरात आकर बस गये। आध्यात्मिक जगत की और लगातार बढ़ते रुझान के कारण प्रज्ञा ने 2007 में संन्यास ले लिया था।

संन्यास ग्रहण करने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने हिंदुत्व की अलख जगानी शुरू कर दी। कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए सरकार के दौर में मालेगांव धमाके में प्रचाा को आरोपी बनाए जाने के बाद भगवा आतंकवाद का मुद्दा बड़े जोर-शोर से उछला था। प्रज्ञा पर मकोका अधिनियम की विभिन्न धाराएं भी लगाई गई थीं। 

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