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कोटा : आत्महत्याएं कैसे रुकें

देश में प्राथमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा से लेकर तकनीकी शिक्षा पद्धति के विरोधाभास एवं दुविधा की स्थिति के बीच एक बेहतर कल की आस में कोचिंग संस्थाओं के जंजाल में फंसे छात्रों द्वारा आत्महत्या का सिलसिला बदस्तूर जारी है, ऐसे में कोचिंग संस्थानों के नियमन के लिए एक केंद्रीय कानून बनाने की मांग तेज हो गई है।
कोटा : आत्महत्याएं कैसे रुकें

देश में कोचिंग संस्थानों पर नियंत्रण के लिए कोई बहुत स्पष्ट और बाध्यकारी कानून भी नहीं हैं। इस विषय के संपूर्ण आयाम पर विचार करते हुए पिछले वर्ष नवंबर में आईआईटी रूड़की के प्रो. अशोक मिश्रा के नेतृत्व वाली विशेषज्ञ समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में ऑल इंडिया काउंसिल फॉर कोचिंग फॉर इंट्रेंस एक्जाम गठित किए जाने का सुझाव दिया था जो फीस का नियमन करने के साथ कोचिंग के संबंध में श्रेष्ठ पहल और स्वस्थ माहौल सुनिश्चित करने का काम करे।

कोटा में पिछले कुछ वर्षों में छात्रों की आत्महत्याओं के विषय को देखते हुए शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठने लगे है। संसद सत्र के दौरान लोकसभा में कई सदस्यों ने कोटा समेत देश की कोचिंग संस्थाओं में छात्रों की समस्याओं को उठाया है।

भाजपा सांसद सुमेधा नंद सरस्वती ने भाषा से कहा कि शिक्षा का अर्थ केवल नौकरी पाना या दिलाना नहीं है। शिक्षा का संबंध व्यक्ति के संपूर्ण विकास से होता है। ऐसे में न तो माता पिता को अपने बच्चों पर अपनी आकांक्षा थोपनी चाहिए और न ही दुनियावी प्रतिस्पर्धा का दबाव डालना चाहिए। बच्चों को कोचिंग संस्थाओं के जाल से भी बचाने की जरूरत है।

शिक्षाविद एन श्रीनिवासन का कहना है कि कोटा से पहले दक्षिण भारत प्रतियोगिता परीक्षाओं का एकमात्र गढ़ था। वहां से भी आत्महत्याओं की खबरें आती थीं। समय के साथ आज राजस्थान स्थित कोटा इंजीनियरिंग, मेडिकल प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी का गढ़ बन गया है। इन संस्थानों का हाल यह है कि इन्हें बेहतर परीक्षा परिणाम लाने पर ही ढेर सारे छात्र मिलते हैं और इसके लिए ये अच्छे से अच्छे अध्यापकों को मोटा वेतन देकर लाते हैं। ऐसे में छात्रों पर अनावश्यक दबाव रहता है।

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