मजेदार बात तो यह है कि 65 हजार से अधिक मकान पिछले पांच साल से बनकर तैयार हैं लेकिन दिल्ली में पहले कांग्रेस की सरकार और अब आम आदमी पार्टी की सरकार इन आवासों का आवंटन नहीं कर पाई। मकानों का आवंटन नहीं होने से उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन जर्जर होती जा रही है।
द्वारका इलाके में रहने वाले अरविंद कुमार ने बताया कि साल 2010 में राजीव रत्न आवास योजना के तहत उन्हें मकान आवंटित करने की बात कही गई थी। अरविंद रसीद दिखाते हुए कहते हैं कि यह रसीद केवल हमारे लिए कागजी बन गई है क्योंकि सरकार ने 72 हजार रुपये तो जमा करा लिया लेकिन मकान के आवंटन की स्थिति साफ नहीं हो पाई। अरविंद के मुताबिक जिस समय यह मकान बनकर तैयार हुए थे उस समय दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने यह भरोसा दिलाया था कि शीघ्र ही मकानों का आवंटन कर दिया जाएगा। लेकिन मामला अधर में रहा। आम आदमी पार्टी ने इसी को मुद्दा बनाकर विधानसभा चुनाव में झुग्गीवासियों को इस बात के लिए आश्वस्त किया कि अगर उनकी सरकार आती है तो सबसे पहले आवास आवंटित किए जाएंगे।
पहले अल्पकालीन सरकार का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कुछ नहीं किया। दूसरी बार सत्ता में आए अरविंद केजरीवाल की सरकार के एक साल पूरे हो गए लेकिन मकानों का आवंटन की स्थिति जस की तस बनी हुई हैं। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कहती हैं कि जिस समय राजीव रत्न आवास योजना की शुरुआत हुई थी उसके बाद मकान बनने में समय लगा इसलिए आवंटन नहीं हो पाया। अब शीला दीक्षित मकानों के आवंटन नहीं हो पाने के लिए केजरीवाल सरकार को दोषी ठहराती हैं। जबकि अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि दिल्ली सरकार झुग्गीवासियों के लिए स्थायी प्रबंध करना चाहती है इसलिए आवास के आवंटन में देरी हो रही है।
रोचक तथ्य यह है कि आवास के आवंटन के नाम पर जो धनराशि वसूली गई उसको लेकर कोई अधिकारी बात करने को तैयार नहीं है। दिल्ली में अलग-अलग इलाकों में बने आवासों के लिए अलग-अलग कीमत तय की गई है। मसलन द्वारका, बापरोला इलाके में बने आवासों के लिए 72 हजार रुपये तो बवाना, भोरगढ़ आदि इलाकों में बने मकानों के लिए 68 हजार रुपये।
मकानों के आवंटन का फैसला दिल्ली सरकार को करना है। क्योंकि दिल्ली में गरीबों के लिए आवास बनाने का जिक्वमा दिल्ली नगर निगम, डीएसआईआईडीसी, दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, दिल्ली विकास प्राधिकरण के जिम्मे हैं। आउटलुक के पास उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि डीएसआईआईडीसी ने सर्वाधिक मकान बनाने का जिम्मा लिया और बनाया भी लेकिन सरकारी नीतियों के कारण मकान आवंटित नहीं हो पाए।
तीन दशक से अधिक समय से दिल्ली के झुग्गीवासियों के लिए संघर्ष कर रहे दिल्ली झुग्गी झोपड़ी एकता मंच के अध्यक्ष जवाहर सिंह बताते हैं कि लंबे समय से छोटे घर का सपना संजोए लोगों की उम्मीदे अब टूटने लगी हैं। गरीब झुग्गी वालों ने अपनी जमा पूंजी भी मकान के नाम पर लगा दी लेकिन सरकारी खामियों के चलते मकान नहीं मिल पा रहे हैं। सिंह के मुताबिक दिल्ली में 1982 में जब एशियाई खेल हुए थे उस समय ही यह नीति बनी थी कि दिल्ली को झुग्गीमुक्त किया जाए। लेकिन किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
साल 1998 में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार बनी और बड़े-बड़े वादे किए गए। लेकिन 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद भी कांग्रेस ने झुग्गीबस्तियों को उजाडऩे के सिवा कुछ नहीं किया। नई सरकार आने के बाद झुग्गीवासियों की उम्मीद बढ़ी कि शायद जल्द ही उन्हें आवास मिल जाए। लेकिन एक साल के बाद निराशा ही हाथ लगी। दिल्ली में झुग्गीवासियों की समस्या आज से नहीं बल्कि दशकों पुरानी हैं। साल 1976-77 में दिल्ली में 46 पुनर्वास कॉलोनियां बसाने का श्रेय संजय गांधी को जाता है। जिनके प्रयासों से दिल्ली झुग्गीमुक्त हो गई थी। लेकिन बाद में वोट बैंक की राजनीति के चलते झुग्गियों की संख्या बढ़ती गई जिससे निपटारा आज तक नहीं हो पाया। कुछ झुग्गियों का पुनर्वास कर दिया गया लेकिन बाद में झुग्गीवासियों के लिए जो आवास का सपना दिखाया गया वह केवल बातों में उलझ कर रह गया।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जोर-शोर से यह कहते हैं कि दिल्ली में कोई झुग्गी-झोपड़ी नहीं उजाड़ी जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि झुग्गीवासियों के लिए जो मकान बनाए गए उनका आवंटन क्यों नहीं हो पा रहा है। जवाहर सिंह कहते हैं कि सरकारों की नीति और नियत में बड़ा अंतर है। दिल्ली में भाजपा, कांग्रेस और अब आम आदमी पार्टी की सरकार है लेकिन झुग्गीवासियों के प्रति किसी भी सरकार ने अभी तक दरियादिली नहीं दिखाई है।