सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बुधवार को कहा कि कॉलेजियम ने नवंबर, 2013 में राज्य न्यायिक सेवा के एक सदस्य को पटना उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी। लेकिन सरकार ने तब फाइल कॉलेजियम को लौटाकर उससे फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। सरकार का कदम आईबी की रिपोर्ट पर आधारित था।
इस बीच जब फाइल सरकार के पास लंबित थी, 13 अप्रैल, 2015 को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम अधिसूचित किया गया। लेकिन जब कॉलेजियम प्रणाली को निष्प्रभावी करने वाले नये कानून को उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 16 अक्तूबर को रद्द कर दिया था तो इसके साथ शीर्ष अदालत तथा 24 उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति की पुरानी व्यवस्था वापस आ गयी। कॉलेजियम प्रणाली की वापसी के बाद कानून मंत्रालय ने कॉलेजियम द्वारा की गयी पुरानी सिफारिशों पर विचार करने का फैसला किया। तब कॉलेजियम की सिफारिश की फाइल मार्च, 2016 में सीजेआई को वापस भेजने का फैसला किया गया और उससे फैसले पर एक बार फिर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया। लेकिन कॉलेजियम ने अप्रैल में एक बार फिर सिफारिश को दोहराया।
मौजूदा व्यवस्था के तहत अगर कॉलेजियम अपनी सिफारिश को दोहराता है तो सरकार को नियुक्ति करनी होगी। लेकिन उसी समय सरकार फाइल को जितना समय चाहे रोककर रखने के लिए और नियुक्ति में देरी के लिए स्वतंत्र है, क्योंकि कोई निर्धारित समयसीमा नहीं है।