कैग के अनुसार सेना द्वारा खुद कराए गए सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि 68 प्रतिशत जवान उनकों परोसे जा रहे खाने को संतोषजनक या फिर निम्न-स्तर का मानते हैं। सैनिकों को निम्न-गुणवता का मांस और सब्जी खाने को दी जाती है। इसके अलावा, राशन की मात्रा भी कम दी जाती है और जो राशन दिया जाता है वो स्वाद अनुसार भी नहीं होता है। पूर्वी कमांड के सैनिकों को सबसे ज्यादा परेशानी है।
कैग की रिपोर्ट कहती है कि सेना मुख्यालय द्वारा तैयार किए गए राशन-अनुमान को रक्षा मंत्रालय ने 20-23 प्रतिशत तक कम कर दिया। जबकि सेना ने ये राशन फिल्ड-एरिया में तैनात बटालियन और रेजीमेंट्स की वास्तविक खाद खाद्य क्षमता और उपलब्ध स्टॉक के आधार पर तैयार किया था। यही नहीं सेना के कमांड मुख्यालय और डायेरक्टर जनरल ऑफ सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट यानि डीजीएसटी के आंकडों में भी काफी अंतर पाया गया। जिसके चलते सैनिकों के राशन में गड़बड़ी की आशंका है।
रिपोर्ट में उदाहरण के तौर पर कहा गया है कि जहां कमांड मुख्यालयों ने 2013-14 में मात्र 3199 मैट्रिक टन चाय की पत्ती की मांग की थी, डीजीएसटी ने उस मांग को खुद बढ़ाकर 2500 मैट्रिक टन कर दिया। वहीं, कमांड्स ने जब 2014-15 में करीब 46 हजार मैट्रिक टन (45,752) दाल की मांग की थी, तो डीजीएसटी ने उसे घटाकर 37 हजार मैट्रिक टन कर दिया।
इससे पहले 2010 में भी सैनिकों को मिल रहे कम और निम्न-स्तर के खाने का उल्लेख किया गया था। उस रिपोर्ट के आधार पर 2013 में संसद की पब्लिक एकाउंट्स कमेटी यानि पीएसी ने रक्षा मंत्रालय को 15 प्रस्ताव दिए थे। लेकिन मौजूदा सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, उसमें से रक्षा मंत्रालय ने मात्र दो (02) प्रस्तावों को ही मंजूर किया है।