सूत्र बताते हैं कि बलराम ने कई बार गुलशन सेन से मुलाकात थी। दिल्ली से पकड़ा गया सेन एक कोचिंग सेंटर का संचालक था। एटीएस को पता लगा है कि गुलशन ने ही मप्र, दिल्ली, महाराष्ट्र, उप्र, आंध्र तेलंगाना और ओड़िशा में एक हजार सिम बॉक्स किराए पर दिए थे। बलराम ने माना है कि वो समानांतर टेलीफोन एक्सचेंज चलाने के लिए हाईप्रोफाइल युवाओं को चुनता था, क्योंकि इसके लिए मिली भारी रकम से उनकी मौजूदा लाइफस्टाइल में बदलाव नहीं आता था। वो शक के दायरे में नहीं आते थे।
जासूसी का भंडाफोड़ होने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या आईएसआई इसका उपयोग आंतरिक सुरक्षा में सेंध लगाने के लिए कर रहा था। दरअसल पिछले साल पुलिस मुख्यालय सहित जेल महकमे के अधिकारियों को भी अज्ञात नंबरों से फोन आ रहे थे, जिन्हें आज तक ट्रेस नहीं किया जा सका।
अज्ञात कॉल आने का सिलसिला जून 2016 में रीवा जेल से शुरू हुआ। फिर सतना जेल में भी फोन आए। यहां कॉल करने वाला जेल में सुरक्षा प्रहरियों के बारे में जानकारी लेता था व उचाधिकारी बनकर निर्देश भी देता था। जेल मुख्यालय में सबसे पहले तत्कालीन एडीजी सुशोभन बैनर्जी को कॉल आया। कॉलर उनसे रीवा जेल से फरार हुए कुख्यात आरोपी बालिंदर को लेकर चल रही पड़ताल की जानकारी लेता था।
इस कॉलर ने प्रधान सचिव जेल विनोद सेमवाल व तत्कालीन स्पेशल डीजी जेल विजय कुमार सिंह को भी कॉल किए थे। जिसके बाद राजधानी के जहांगीराबाद थाने में शिकायत भी दर्ज करवाई थी।
वर्ष 2016 में 30 व 31 अक्टूबर के दौरान रात भोपाल सेंट्रल जेल से फरार हुए सिमी आतंकियों के मददगारों का पता भी आज तक पुलिस नहीं लगा पाई है। तफ्तीश में यह तो पता चला था कि जेल के अंदर सिमी आतंकियों ने मोबाइल फोन इस्तेमाल किया गया। लेकिन जिन नंबरों पर उन्होंने बात की या जिन नंबरों से उन्हें कॉल आए उनके बारे में भी कोई सुराग नहीं लग पाया है।