नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर छिड़ी राष्ट्रीय बहस के बीच मुआवजे के लिए दर-दर भटकते एक किसान का मामला सामने आया है। दिल्ली में 77 साल का एक किसान पिछले 37 साल से मुअावजे के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है। मुआवजा मिलना तो दूर उसे इस बारे में जानकारी तक नहीं मिल पा रही है। आखिरकार उसे केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाना पड़ा। इस मामले पर आयोग को कहना पड़ा कि दिल्ली विकास प्राधिकरण, भूमि अधिग्रहण करने वाले कलेक्टर और भवन विभाग मुआवजा देने के मामले में जमीन मालिकों का उत्पीड़न कर रहे हैं।
सीआईसी ने आदेश दिया कि लाजिंदर के प्रश्नों और मुआवजे के संबंध में भू-स्वामियों के समक्ष आ रहीं और उनके द्वारा उठाई गईं समस्याओं पर व्यापक नोट तैयार किया जाए। आचार्युलू ने भूमि एवं भवन विभाग को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों न उसके टालने वाले जवाबों के लिए उस पर जुर्माना लगाया जाए। उन्होंने कहा कि यह उल्लेख करना दुखद है कि 77 वर्षीय सिंह को अधिकारियों के उदासीन रवैये के चलते 1978 से मुआवजे के लिए लड़ना पड़ रहा है।
सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू के सामने मामला तब आया जब 77 वर्षीय बुजुर्ग लाजिंदर सिंह अपनी आरटीआई का जवाब नहीं मिलने की शिकायत लेकर आयोग के पास आए। करीब 37 साल पहले 1977-78 में उनकी जमीनअधिग्रहीत की गई थी, जिसके मुआवजे की स्थिति जानने के लिए भी उन्हें दर-दर की ठोंकर खानी पड़ रही है। इस मामले पर टिप्पणी करते हुए आचार्युलू ने कहा, पूरा देश भूमि अधिग्रहण की समस्याओं से पीडि़त है। लाजिंदर सिंह सरकार के उदासीन रवैये के पीडि़त होने का उदाहरण है। आयोग ने इन तीनों विभागों को जवाब देने में काफी अकर्मण्य भी पाया है। उन्हें इन पीडि़तों की मानवीय चिंता होनी चाहिए।
गौरतलब है कि लाजिंदर के परिवार की यह दूसरी पीढ़ी हैं जो अपने पिता की मृत्यु के बाद मुआवजे के लिए संघर्ष कर रही है। तीनों विभागों में से किसी ने भी उनके सवालों का उचित जवाब नहीं दिया है।आचार्युलू ने कहा कि डीडीए, भूमि अधिग्रहण कलेक्टर और भूमि एवं भवन विभाग आवेदकों के साथ मजाक कर रहे हैं। भूमि एवं भवन विभाग केा कारण बताओ नोटिस में सूचना आयुक्त ने पूछा कि क्यों न विभाग का प्रतिनिधित्व कर रहे सुरेंद्र बोरा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।