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इलाज के लिए न डाॅक्टर हैं और न दवा

पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिले गाजीपुर में स्वास्थ्य सेवाओं का इतना बुरा हाल है कि यहां के अस्पतालों को ही इलाज की जरुरत महसूस होने लगी है। डाॅक्टर और दवा दोनों ही जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की समस्या है।
इलाज के लिए न डाॅक्टर हैं और न दवा

आउटलुक संवाददाता ने नेशनल फांउडेशन फाॅर इंडिया और सेव द चिल्ड्रेन के तहत किए गए शोध के दौरान पाया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर न तो डाॅक्टर उपलब्ध हैं और न ही दवा है। ऐसे में इन स्वास्थ्य केद्रों पर आने वाले मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र डेढ़गांवा में स्वास्थ्यकर्मियों के कुल सात पद हैं। जिनमें एक प्रभारी चिकित्सक, एक एएनएम, एक फार्मासिस्ट, एक नान मेडिकल असिस्टेंट, एक वार्ड ब्वाय, एक प्रयोगशाला सहायक, एक स्वीपर का पद है। लेकिन मौके पर जाने पर केवल नान मेडिकल असिस्टेंट ही मिलेगा। अगर डाॅक्टर के बारे में पूछा जाए तो पता चलेगा कि आज वह छुट्टी पर है। अन्य लोगों के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहा जाता है। कोई अवकाश पर है तो कोई जिला मुख्यालय पर मीटिंग के लिए गया हुआ है।

स्थानीय निवासी रामप्रताप राय बताते हैं कि कभी ऐसा नहीं हुआ है कि इस स्वास्थ्य केंद्र पर सभी कर्मचारी एक साथ मौजूद हों। डा. शहीद शिवपूजन राय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मुहम्दाबाद का जब हाल जाना गया तो पता चला कि यहां मानक के हिसाब से डाॅक्टर, फार्मासिस्ट, एएनएम, प्रयोगशाला सहायक, स्वीपर, गार्ड की मौजूदगी तो रहती है लेकिन दवाओं का अभाव रहता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक सर्दी, जुकाम, बुखार की सामान्य दवाएं तो मिल जाती हैं लेकिन कोई गंभीर बीमारी हो तो साफ तौर पर डाॅक्टर मना कर देते हैं कि आप जिला अस्पताल जाइए।

जबकि यह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तहसील पर स्थित है और इसके आसपास के गांव के लोगों को इलाज के लिए गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जब दवा नहीं मिलती तो यहां आने के लिए कहा जाता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जमानियां का भी हाल कुछ ऐसा ही है जहां कि मानक के अनुसार सभी पदों पर नियुक्तियां हुई हैं लेकिन दवा के नाम पर वही सर्दी, जुकाम, बुखार की दवा दे दी जाती है। कई बार यहां इलाज कराने आने वाले मरीजों को पर्ची लिखकर दे दी जाती है और यह कह दिया जाता है कि फला मेडिकल स्टोर से जाकर यह दवा खरीद लो।

समस्या तब आती है जब मेडिकल स्टोर वाला महंगे दाम वाली दवा मरीज को पकड़ा देता है। गांव से आने वाला मरीज निःशुल्क इलाज कराने का उद्देश्य लेकर सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर जाता है लेकिन जब उससे इस तरह का व्यवहार किया जाता है तो निराशा ही हाथ लगती है। जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. महेंद्र प्रताप सिंह इस बात को तो स्वीकारते हैं कि जिले में डाॅक्टरों की कमी है लेकिन वे कहते हैं कि जिन केंद्रों पर डाॅक्टरों की तैनाती है वहां डाॅक्टर मौजूद रहते है। अगर डाॅक्टर अवकाश पर चले जाते हैं तो इस तरह की शिकायतें सुनने को मिलती है। दवाओं के बारे में डा. सिंह कहते हैं कि जो जरुरी दवाएं हैं वह सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर मौजूद है अगर दवा नहीं मिल रही है तो इसकी शिकायत मरीज कर सकते हैं।

लेकिन रोचक वाकया जिले के मुख्य चिकित्सा केंद्र पर देखने को मिला जहां बच्चों को टीका लगाने के नाम पर हर बुधवार को बुलाया जाता है लेकिन टीका खत्म होने की बात कहकर अगले बुधवार तक के लिए टाल दिया जाता है। राबिया खातून नाम की एक महिला चार बुधवार से लगातार अपने बच्चे को टीका लगवाने के लिए मुख्य चिकित्सा केंद्र के चक्कर लगा रही थी। लेकिन उसके बच्चे को टीका नहीं लग पाया। राबिया ने थक हार कर बाहर से टीका लगवाया और इस बात की शिकायत भी चिकित्सा अधिकारियों से की। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

राबिया पर्चा दिखाते हुए कहती है कि हर बुधवार को पर्चा बना दिया जाता है लेकिन जब मौके पर टीका लगवाने के लिए जाती हूं तो कह दिया जाता है कि टीका खत्म हो गया। राबिया के मुताबिक कुछ ही बच्चों को टीका लगाकर यह कह दिया जाता है कि टीका खत्म हो गया है। जिले के सबसे बड़े अस्पताल का जब यह हाल है तो अन्य चिकित्सा केंद्रों का क्या होगा इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। स्वास्थ्य अधिकारी इस बात को लेकर मरीजों को आश्वस्त तो कर देते हैं कि शिकायत कर दो सुनवाई होगी। लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस जिले के लोग भी कहते हैं कि यहां के मरीजों को नहीं बल्कि अस्पतालों को इलाज की जरुरत है।

(यह आलेख नेशनल फांउडेशन फाॅर इंडिया और सेव द चिल्ड्रेन के लिए किए गए शोध पर आधारित है)

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