लेकिन सस्ते फोन की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है रायल्टी का है। मोबाइल हैंडसेट में लगने वाली चिप पर दी जाने वाली भारी भरकम रायल्टी से इस क्षेत्र की विकास दर पर असर पडऩे का खतरा पैदा हो गया है। जब मेक इन इंडिया की तर्ज पर घरेलू कंपनियां बाजार में आएगी तो उसे भी बड़ा खतरा रायल्टी को लेकर है। रायल्टी की कहानी दरअसल स्वीडन की कंपनी एरिक्सन से जुड़ी हुई है। एरिक्सन ने मोबाइल हैंडसेट और इससे जुड़ी तकनीकी पर करीब 30 हजार से अधिक पेंटेट करा रखा है। इस पेटेंट के कारण मोबाइल उत्पादक कंपनियों को हैंडसेट के मुताबिक रायल्टी देनी पड़ रही है।
आउटलुक के पास उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि भारत में माइक्रोमेक्स, कार्बन, जियोनी, आइबाल और इंटेक्स जैसी कंपनियां सस्ते दर पर उपभोक्ताओं को मोबाइल हैंडसेट उपलब्ध करा रही हैं लेकिन ये कंपनियां और भी सस्ते उत्पाद दे सकती हैं अगर रायल्टी नहीं चुकानी पड़े तो। आंकड़ों के मुताबिक माइक्रोमेक्स ने 180 करोड़ रुपये रायल्टी के तौर पर दे चुकी है जबकि साल 2020 तक 100 करोड़ रुपये और दिए जाने हैं। वहीं कार्बन ने 100 करोड़ का भुगतान कर दिया है और 2020 तक 60 करोड़ का भुगतान किया जाना है। इसी तरह अन्य कंपनियों को भी भारी-भरकम रकम रायल्टी के तौर पर चुकानी हैं। इनमें कुछ कंपनियों ने इस संबंध में मुकदमा भी दायर किया हुआ है।
भारत में मोबाइल हैंडसेट का बाजार करीब एक लाख करोड़ रुपये का है। उदाहरण के तौर पर हैंडसेट औसतन चार हजार रुपये का पड़ता है और करीब 25 करोड़ हैंडसेट की बिक्री भारत में हर साल हो रही है। प्रत्येक हैंडसेट से पेटेंट कराने वाली कंपनी को फायदा हो रहा है। मोबाइल मार्केट के जानकार अनूप सोनी बताते हैं कि आज कई घरेलू कंपनियां भारतीय बाजार में अपने उत्पाद बेचना चाहती हैं लेकिन हैंडसेट के कई तकनीकी पहलुओं पर जो पेटेंट का मुद्दा है उससे कंपनियां पीछे हट जाती हैं। मोबाइल हैंडसेट उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि भारत सरकार की जो मेक इन इंडिया की पहल है उसमें यह पेटेंट का मुद्दा असर डाल सकता है। क्योंकि पेटेंट नियमों के तहत अगर कंपनियों ने कीमत नहीं चुकाई तो उसे कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
वहीं संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि अगर कोई कंपनी सस्ता मोबाइल देने का वादा करती है तो इससे सरकार को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन नियम से बाहर जाकर काम करने की इजाजत नहीं होगी। लेकिन सवाल यह है कि अगर पेटेंट जैसे मसले से सरकार नहीं निपटेगी तो मेक इन इंडिया का अभियान कमजोर हो जाएगा। वैसे भी भारत में सस्ते मोबाइल के उपभोक्ताओं की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। सस्ते मोबाइल के कारण ही आज समाज के हर वर्ग तक मोबाइल हैंडसेट की पहुंच हो गई है।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    