एनआईए ने 13 मई 2016 को अपने पहले के रुख से पलटते हुए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और पांच अन्य आरोपियों के खिलाफ मामले में सभी आरोप हटा लिए। एनआईए ने विशेष कोर्ट में पूरक आरोप पत्र दायर किया था, जिसमें जांच एजेंसी ने लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित समेत 10 अन्य आरोपियों के खिलाफ मकोका भी हटा लिया था। जांच एजेंसी ने 26/11 आतंकी हमले में शहीद हेमंत करकरे की जांच पर भी सवाल उठाए थे।
प्रज्ञा के अलावा शिव नारायण कलसांगड़ा, श्याम भवरलाल साहू, प्रवीण टक्कलकी, लोकेश शर्मा और धान सिंह चौधरी के खिलाफ दर्ज आरोप हटा लिए गए। एनआईए ने यह भी कहा कि जांच के दौरान यह पाया गया कि मकोका यानी महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून के तहत इस मामले में आरोप नहीं बनते। मकोका के प्रावधानों के मुताबिक, पुलिस अधीक्षक रैंक के किसी अधिकारी के सामने दिया गया बयान कोर्ट में साक्ष्य माना जाता है। एजेंसी ने आरोप पत्र में कहा कि एनआईए ने मौजूदा अंतिम रिपोर्ट सौंपने में एटीएस मुंबई की ओर से मकोका के प्रावधानों के तहत दर्ज किए गए इकबालिया बयानों को आधार नहीं बनाया है। प्रज्ञा और पुरोहित ने बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल कर आरोप पत्र और मकोका के तहत आरोप लगाए जाने को चुनौती दी थी।
एनआईए ने कोर्ट में दाखिल किए गए पूरक आरोप पत्र में कहा है कि आरोपियों को मालेगांव धमाकों की साजिश की जानकारी नहीं थी। जांच एजेंसी ने दावा किया कि जांच के दौरान प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पांच अन्य के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं पाए गए। एजेंसी ने अपने आरोप पत्र में कहा कि उनके खिलाफ दर्ज मुकदमा चलाने लायक नहीं है। इस आरोप पत्र के बाद साध्वी प्रज्ञा के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया। धमाके में इस्तेमाल हुई बाइक के साध्वी की होने की बात कही गई थी। 24 अक्तूबर 2008 को प्रज्ञा गिरफ्तार की गई थीं।