सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि वह 10 दिन के भीतर यह बताए कि लोकपाल सलेक्शन कमिटी की बैठक कब होने जा रही है। साथ ही कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण की उस अर्जी को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने कमिटी द्वारा पैनल के लिए भेजे गए नामों को सार्वजनिक करने की मांग की थी।
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि सर्च कमेटी ने चेयरमैन, ज्यूडिशियल और नॉन ज्यूडिशियल सदस्यों के चयन के लिए नामों के पैनल, सलेक्शन कमिटी को भेजे हैं। नियम के मुताबिक, पीएम की अध्यक्षता वाली सलेक्शन कमिटी इन पर फैसला लेगी। एजी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि लोकपाल और उनके सदस्यों को लेकर तीन लिस्ट सलेक्शन कमिटी को सर्च कमिटी ने बनाकर भेज दी है।
नाम सार्वजनिक करने की मांग ठुकराई
याचिकाकर्ता कॉमन कॉज की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण चाहते थे कि इन सुझाए गए नामों को सार्वजनिक किया जाए, लेकिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने उनकी मांग को ठुकरा दिया।
सलेक्शन कमिटी में पीएम, चीफ जस्टिस या उनके द्वारा नामित जज, नेता विपक्ष, लोकसभा अध्यक्ष और एक जूरिस्ट होता है। चीफ जस्टिस ने पूछा कि कमिटी में नेता-विपक्ष अगर नहीं है तो का क्या होगा? अटॉर्नी जनरल ने कहा कि नेता विपक्ष के ना होने की वजह से सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को विशेष सदस्य के तौर पर आमंत्रित करते हैं।
अन्ना हजारे ने छेड़ा था आंदोलन
लोकपाल के मुद्दे पर समाजसेवी अन्ना हजारे मोदी सरकार निशाना साध चुके हैं। उन्होंने कहा था कि लोकपाल और लोकायुक्त कानून-2013 के संबंध में सरकार संवैधानिक संस्थानों के निर्णय पर ध्यान नहीं दे रही है। यह एक तरह से देश को तानाशाही की तरफ ले जाने का संकेत है।
अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में पूरा देश केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए उठ खड़ा हुआ था, जिसके बाद लोकपाल बिल पास हुआ था।