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'सरकार की आलोचना पर देशद्रोह या मानहानि का आरोप नहीं लगाया जा सकता'

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि सरकार की आलोचना करने पर किसी पर देशद्रोह या मानहानि के मामले नहीं लगाए जा सकते। जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने कहा, 'यदि कोई सरकार की आलोचना करने के लिए बयान दे रहा है तो वह देशद्रोह या मानहानि के कानून के तहत अपराध नहीं लाया जा सकता। हमने स्पष्ट किया है कि आईपीसी की धारा 124 (ए) को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पहले के एक फैसले के अनुसार कुछ दिशानिर्देशों का पालन करना होगा।'
'सरकार की आलोचना पर देशद्रोह या मानहानि का आरोप नहीं लगाया जा सकता'

एक गैर सरकारी संगठन की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि देशद्रोह एक गंभीर अपराध है और असहमति को दबाने के लिए इससे संबंधित कानून का काफी दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने इस संबंध में कुछ उदाहरण दिये। जिनमें कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों, कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी और कुछ अन्य लोगों पर देशद्रोह के आरोप लगाये जाने के मामले गिनाये गये।

इस पर पीठ ने कहा, 'हमें देशद्रोह कानून की व्याख्या नहीं करनी। 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले में पहले ही स्पष्ट है।' न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन 'कॉमन कॉज' की याचिका का निस्तारण करते हुए इस अपील पर यह निर्देश देने से इनकार कर दिया कि इस आदेश की प्रति सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों को भेजी जाए।

इस संगठन ने देशद्रोह कानून के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। पीठ ने कहा, 'आपको अलग से याचिका दाखिल करनी होगी जिसमें यह उल्लेख हो कि देशद्रोह के कानून का कोई दुरुपयोग तो नहीं हो रहा। आपराधिक न्यायशास्त्र में आरोप और संज्ञान मामला केंद्रित होने चाहिए, अन्यथा ये बेकार होंगे। इसमें कोई सामान्यीकरण नहीं हो सकता।'

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