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सुस्त इंटरनेट या डाटा में डकैती

3जी या 4जी के शिगूफे अपनी जगह, हकीकत में देश में इंटरनेट की रक्रतार और सेवा में अनियमितता का मसला एक बड़ी समस्या है
सुस्त इंटरनेट या डाटा में डकैती

देश में आजकल सुस्त और अनियमित इंटरनेट सेवा लोगों के लिए नई परेशानी बन गई है। और तो और, कभी-कभी बिना सूचना के ही इंटरनेट ठप हो जाता है तो कभी निर्धारित अवधि के पहले ही अचानक डाटा खत्म हो जाता है। ऐसी सुस्त इंटरनेट सेवा को एक तरह डाटा में डकैती कह सकते हैं। उपभोक्ता जमाने से कदमताल के लिए कंपनियों को फटाफट सेवा की हसरत लिए भारी बिल चुकाते हैं। हसरत लिए भारी बिल चुकाते हैं। पर उन्हें खुद नहीं पता होता है कि वह किन-किन सुविधाओं के लिए पैसे दे रहे हैं। इसके अलावा उपभोक्ताओं को नेट की स्पीड और डाटा खपत की कोई सही जानकारी भी नहीं मिलती है। मेट्रो, टायर टू या थ्री शहर हो, हाईटेक गुडग़ांव या कश्मीर की वादियां हों या सुदूर पूर्वोत्तर का कोई कोना, सभी जगह कमोबेश स्थिति एक समान है। कंपनियां प्रचार में जरूर देश के हर इलाके में फटाफट सेवा का चमकीला प्रदर्शन करती हैं पर स्थिति इससे उलट है।

करीब तीन साल पहले 3जी सेवा के आने के बाद लोगों को लगा कि अब फटाफट इंटरनेट मिलेगा लेकिन इंटरनेट की स्पीड में उनको इजाफा नहीं मिला। कोच्चि निवासी तथा बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत एंथनी और बेंगलुरु निवासी और प्रतिष्ठित कंपनी में प्रबंधक सुनील कुमार दो-दो कंपनियों के कनेक्‍शन लेकर हर माह तीन हजार रुपये तक खर्च करने के बाद भी बेहतर सेवा नहीं ले पा रहे हैं। कंपनियां अपने भारी-भरकम विज्ञापन में तामझाम के साथ सेवा का बखान करती हैं लेकिन वादे के मुताबिक सेवा देने में कोई भी कंपनी कामयाब नहीं है। अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले अगर इंटरनेट सेवा अपने देश में धीमी है तो उसकी मुख्य वजह मोबाइल इंटरनेट है जो पूरी तरह स्पेक्ट्रम आधारित है। देश में करीब 35 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं। इनमें 33 करोड़ के पास मोबाइल कनेक्‍शन है। महज दो करोड़ इंटरनेट के लिए फिक्‍स्ड लाइन का उपयोग करते हैं। इस पर भी हमारे यहां फिक्‍स्ड लाइन के उपभोक्ताओं में लगातार कमी आ रही है। यूरोप और अमेरिका में 60 फीसदी इंटरनेट सेवा फिक्‍स्ड लाइन के जरिये दी जाती है। ट्राई के चेयरमैन रामसेवक शर्मा कहते हैं कि वायरलेस से आपको बेहतरीन इंटरनेट नहीं मिल सकता। फटाफट सेवा के लिए सरकार को केबल टीवी आपरेटरों के जरिये हाईस्पीड सेवा देने की जुगत करनी चाहिए। इंटरनेट सेवा संबंधी आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि मोबाइल डाटा प्रदर्शन में भारत की रैंकिंग बेहतर नहीं है। 130 देशों में अपना 91वां स्थान है। डाटा ट्रांसफर स्पीड में विश्व के प्रमुख 20 देशों की सूची में भारत के शहर 60 फीसदी रिजल्ट के साथ काफी पीछे हैं। महानगरों में दिल्ली में 3.4 एमबीपीएस और मुंबई, कोलकाता तथा बेंगलुरु में 3.1 एमबीपीएस की गति के इंटरनेट हैं। वहीं कुआलालंपुर में 11, दुबई में 14 और पेरिस में इंटरनेट की गति 20 एमबीपीएस है। अपने देश में 3जी को बेहतर और फटाफट सेवा के लिए जाना जाता है। लेकिन यह एक सही ब्रॉडबैंड नहीं है। 3जी के लिए न्यूनतम 256 केबीपीएस की स्पीड होनी चाहिए पर हमारे यहां इसकी स्पीड 128 केबीपीएस है। 3जी के मापदंड की 256 केबीपीएस की गति पांच वर्ष पहले निर्धारित की गई है। अभी तो यह बढक़र 2 एमबीपीएस हो गई है। लिहाजा हम काफी पीछे हैं। देश में कई कंपनियां 2 एमबीपीएस का वादा करती हैं लेकिन उनका डोंगल लोगों को ऐसी सेवा देने में असमर्थ हैं।

3जी के बाद 4जी का शिगूफा हमारे यहां लाया गया। इससे भी स्थिति में सुधार नहीं आया है। सुस्ती की एक और वजह है कि हमारे यहां इंटरनेट सेवा सस्ती भी है। कोई भी यहां महज ढाई सौ रुपये में सेवा पा सकता है। इसके अलावा विकिरण के डर से अधिकांश जगहों से टावरों को हटा लिया गया है जिसका असर सेवा पर पड़ा है। हमारे यहां जब कंपनियों से कोई जानकार इस सुस्ती की वजह जानना चाहता है तो उसे स्पेक्ट्रम में कमी का हवाला दे दिया जाता है। सरकार कहती है कि स्पेक्ट्रम में कमी नहीं है लेकिन कंपनियों का कहना है कि मांग ज्यादा है और उसकी आपूर्ति करने में वह समर्थ नहीं हैं। इसकी सीधी वजह यह है कि यहां की कंपनियां अन्य विकसित देशों के मुकाबले प्रति मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम में अधिक उपभोक्ताओं को सेवा देती है। स्पेक्ट्रम छोटा और उससे सेवा लेने वाले उपभोक्ता अधिक, इसका सीधा नतीजा धीमी सेवा। इंटरनेट एक्सपर्ट प्रशांतो राय मानते हैं कि मोबाइल इंटरनेट से आपको बेहतर सेवा नहीं मिल सकती। स्पेक्ट्रम लाइन बेस्ट सेवा देगा। परंतु इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निवेश जरूरी है। यूरोप सहित सिंगापुर और कोरिया में इंटरनेट सेवा दुनिया में सबसे बेहतर है। राय कहते हैं कि हमारे यहां कंपनियां फिक्‍स्ड लाइन के लिए निवेश नहीं करतीं।

कंपनियां वायरलेस इंटरनेट पर ही ज्यादा ध्यान देती हैं। वैसे भी भारत में अभी वर्तमान की फिक्‍स्ड लाइन से बेहतर सेवा मिलनी संभव नहीं हैं, क्योंकि यहां की लाइन कॉपर की है। देश भर में अभी लगभग 150 कंपनियां सेवा प्रदान कर रही हैं। इस पर भी 85 फीसदी सेवा महज 10 से 15 फीसदी कंपनियां प्रदान कर रही हैं। यानी कि इनमें से किसी एक कंपनी के पास बहुत सारे उपभोक्ता हैं। ऐसे में कंपनियों के स्पेक्ट्रम में ग्राहकों का बोझ पडऩा स्वाभाविक है। स्पेक्ट्रम आधारित इंटरनेट सेवा में यूरोप और अन्य देशों में 3 से 5 कंपनियों को स्पेक्ट्रम मिलता है। वहीं हमारे यहां 10 से 15 कंपनियों के बीच स्पेक्ट्रम का बंटवारा होता है। इस पर भी हर कंपनी मोटी कमाई के लिए स्पेक्ट्रम की मात्रा अधिक चाहती है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सुभो राय कहते हैं कि कंपनियों के पास उपभोञ्चता के मुकाबले स्पेक्ट्रम कम है नतीजन उपयोग के समय स्पेक्ट्रम जाम हो जाता है और सेवा धीमी हो जाती है।

पूर्व केंद्रीय दूरसंचार राज्य मंत्री सचिन पायलट की राय है कि देश में इंटरनेट की न्यूनतम गति कितनी होनी चाहिए, इसका अब तक कोई निर्धारण नहीं किया गया। कंपनियों की इंटरनेट स्पीड को जांचने और परखने के लिए सरकार के पास कोई पुख्ता इंतजामात नहीं हैं। इंटरनेट संबंधित नियम पुराने हो गए हैं। 2002-03 में इनका निर्धारण हुआ था। ट्राई को इन्हें बदलते हुए नए नियम बनाने चाहिए। आज मांग ज्यादा बढ़ गई है। उपभोक्ता अधिक हो गए हैं। इनमें बदलाव होना चाहिए। ब्रॉडबैंड को सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है। पायलट के अनुसार जब तक 3 जी और 4 जी के बारे में विस्तार से नहीं बताया जाएगा, जब तक ट्राई और अन्य संबंधित संस्थाएं इंटरनेट की क्वालिटी पर कार्रवाई नहीं करेंगी तब तक कंपनियों की मनमर्जी चलती रहेगी।

ट्राई चेयरमैन रामसेवक शर्मा  के अनुसार इंटरनेट में तेजी लाने के लिए सरकार को केबल टीवी ऑपरेटरों को हाईस्पीड इंटरनेट सेवा देने की अनुमति देनी चाहिए। हमने इसके लिए दो बार अनुशंसा की है। हम चाहते हैं कि देश में विकसित देशों की तरह केबल टीवी इंटरनेट उपलब्‍ध हो। हमने राजस्व मसले को भी सुलझाने को कहा है। लेकिन अभी तक यह नहीं हो पाया है। इसकी वजह यह है कि ब्रॉडबैंड सेवा के लिए इंटरनेट सेवा प्रोवाइडर लाइसेंस लेना होगा। इसके अलावा कंपनियों को 7 फीसदी का एजीआर यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू देना होगा जिससे कंपनियों को गुरेज है। बकौल राय हमने वायर इंटरनेट की अनुशंसा की है क्योंकि इसमें स्पेक्ट्रम का बोझ नहीं होगा। कंपनियों की मनमानी के बीच सुस्त इंटरनेट सिरदर्द बना हुआ है लेकिन सबसे अहम तथ्य यह है कि उपभोक्ताओं के बीच से इसके खिलाफ कोई आवाज भी नहीं उठा रहा है। नवंबर 2015 तक टेलीकॉम से संबंधित शिकायतें कोर्ट में मंजूर नहीं की जाती थीं। हालत यह है कि अब भी अधिकांश लोगों को यह जानकारी नहीं है कि मनमानी कर रही कंपनियों को इस मसले पर कोर्ट में घसीटा जा सकता है।

 

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