पर्रिकर के मुताबिक दस सालों में रक्षा मंत्रालय में अविश्वास का माहौल बन गया है और खरीद से अधिक महत्वपूर्ण प्रक्रिया हो गई है। डीपीपी में हुए बदलाव से माना जा रहा है कि केवल बड़ी कंपनियों को ही फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से प्रक्रिया में देरी हो रही है। पहले कहा जा रहा था कि 15 दिसंबर तक नई नीति की घोषणा हो जाएगी। लेकिन देरी की वजहों पर सरकार चुप्पी साधे हुए है। रक्षा मामलों से जुड़े जानकार बताते हैं कि धीरेंद्र सिंह समिति की सिफारिशों को यदि ध्यान से पढ़ा जाए तो पता चलता है कि इसमें रणनीति भागीदारी के लिए सिर्फ शीर्ष भारतीय कंपनियों को ही चुना गया है और देरी के पीछे यही प्रमुख वजह है।
इसमें पहले की नीति के तहत सभी को समान अवसर दिए जाने और सबसे कम बोली लगाने वाले विनिर्माताओं को ठेके दिए जाने का प्रावधान खत्म किया जा रहा है यानी छोटे निजी रक्षा विनिर्माता के लिए दरवाजे बंद किए जा रहे हैं। सरकार की बुनियादी खरीद नीति यही रही है कि खुली स्पर्धा में उचित मूल्य की पेशकश की जाए। निजी रक्षा विनिर्माता समान अवसर चाहते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि नई नीति में उच्च स्तरीय नामांकन प्रक्रिया के जरिये कुछ चुनिंदा कंपनियों के समूहों या ओईएम का दबदबा बनाए रखने की ही प्रतिबद्धता जताई गई है।
छोटे विनिर्माताओं का दावा है कि रक्षा शोध एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के पूर्व प्रमुख डॉ. वी. के. अत्रे ने नेतृत्व में गठित टास्क फोर्स ने सिंह समिति की सिफारिशें लागू करने के तौर-तरीके बताते हुए इन सिफारिशों को सिर्फ बढ़ा-चढ़ाकर ही पेश करने का काम किया है। प्रस्तावित चयन प्रक्रिया के सात मूलभूत मानक तय किए गए हैं और इसमें रणनीतिक भागीदारी के छह क्षेत्रों की पहचान की गई है जिनमें विमान, युद्धपोत, पनडुब्बी, बख्तरबंद, दिशा-निर्देश प्रणाली से संचालित जटिल हथियार, सी4आईएसटीआर तथा महत्वपूर्ण सामग्री शामिल हैं। समझा जाता है कि डॉ. अत्रे के टास्क फोर्स ने इन छह क्षेत्रों को भी 15 उप-समूहों में बांट दिया है और प्रत्येक उप-समूह में एक सामरिक भागीदार रखा गया है। इसमें कहा गया है कि एक मूल्यांकन समिति और एक स्थानीय समिति निजी कंपनियों की योग्यता का मूल्यांकन करेगी। यह मूल्य निर्धारण 50 प्रतिशत तकनीकी मानदंड, 30 प्रतिशत वित्तीय मानदंड तथा 20 प्रतिशत प्लेटफॉर्म विशेष मानदंड पर किया जाएगा।
निष्कर्ष यह है कि सिर्फ बड़े पूंजी आधार वाली बड़ी कंपनियां ही बड़े ठेके प्राप्त कर सकती हैं। अयोग्य करार दी गईं ज्यादातर छोटी रक्षा विनिर्माण कंपनियों का कहना है कि रक्षा मंत्रालय मौजूदा तथा स्थापित पीएसयू मॉडल का विकल्प तलाशने के लिए धीरेंद्र सिंह समिति तथा डॉ. अत्रे के नेतृत्व वाले टास्क फोर्स की सिफारिशों का इस्तेमाल कर रहा है। इसका वित्तीय मानक सबसे विवादास्पद है क्योंकि इसमें सिफारिश की गई है कि सूचीबद्ध विदेशी हिस्सेदारी वाली कंपनियां पांच प्रतिशत से कम होनी चाहिए जबकि गैर-सूचीबद्ध कंपनियों की कोई विदेशी हिस्सेदारी नहीं है।