सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अलगाववादियों के आहवान पर पिछले 100 दिनों से चल रहे बंद का सबसे बुरा असर टूर-टैक्सी आपरेटरों पर पड़ा है। घाटी में पर्यटकों का आना-जाना बंद है। ऐसे में टैक्सी चालकों के लिए घर चलाना तो दूर बैंक की किस्त भरना तक दूभर हो रहा है।
उन्होंने कहा कि अधिकांश टैक्सी मालिकों ने बैंक से लेकर टैक्सी ली थी और हर महीने उन्हें किस्त की रकम जमा कराना होता है। लेकिन वे पिछले तीन महीने से बैंक का किस्त नहीं भर पाए हैं। कर्जे और बेरोजगारी से बेहाल टूर-टैक्सी आपरेटरों का गुस्सा अलगावादियों के खिलाफ फूटने लगा है और दो स्थानों पर छोटे-छोटे प्रदर्शन भी हुए हैं।
फिलहाल अलगाववादी नेता इन टूर-टैक्सी आपरेटरों को यह समझाने में जुटे हैं कि जल्द ही सरकार उनसे बातचीत के लिए मजबूर हो जाएगी और तब वे सरकार से उनके तीन महीने की किस्त देने की शर्त रखेंगे। लेकिन समस्या यह है कि इस बार सरकार अलगाववादियों को जरा भी तवज्जो देने के लिए तैयार नहीं है।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अलगाववादी नेता अब बंद का ऐलान वापस लेने का मौका ढूंढ रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें कोई मौका ही नहीं दे रही है। ऐसे में उनके पास बंद की मियाद बढ़ाते रहने के अलावा कोई चारा है।
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार बाहर से घाटी की सारी दुकाने भले ही बंद दिखती हों, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले दरवाजे से सारी खरीद-फरोख्त हो रही हैै। मजबूरवश अलगावादियों को इसकी अनुमति देनी पड़ी है। यही कारण है कि अभी तक कश्मीर के ट्रेडर्स अलगाववादियों के खिलाफ टूर-टैक्सी आपरेटरों की तरह मुखर नहीं हुए है।
वैसे शुरूआत में अलगावादियों के बंद का सबसे बुरा असर ट्रक आपरेटरों पर पड़ा था और वे बंद को जल्द से जल्द खत्म कराने का दबाव बना रहे थे। हालात को समझते हुए अलगाववादियों ने जरूरी सामानों की आपूर्ति के नाम पर ट्रकों की आवाजाही की छूट दे दी। इसके बाद कश्मीर का सारा सेव इन्हीं ट्रकों पर लदकर दिल्ली और अन्य मंडियों में पहुंच रहा है।