हालांकि, पूर्व महासचिव प्रकाश कारात के राजनीतिक रणकौशल की लाइन पर चलते हुए पार्टी अब धीरे-धीरे राज्यों में स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार ही फैसले कर रही है कि किससे गठबंधन करना है या किससे दूरी बनानी है। इसी रणकौशल के तहत बंगाल में कांग्रेस के साथ गठबंधन का फैसला किया गया था। यह फैसला कामयाब नहीं रहा, लेकिन माकपा की राज्य कमेटी गठबंधन जारी रखने के पक्ष में है।
पोलित ब्यूरो की दोनों ही बैठकों में राज्य कमेटी का मूड देखते हुए गठबंधन जारी रखने की इजाजत दे दी गई। इसके उदाहरण स्वरूप माकपा ने मंगलवार को बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर कांग्रेस के अब्दुल मन्नान के नाम पर सहमति दे दी है।
नई दिल्ली में पोलित ब्यूरो की सोमवार को हुई बैठक में बंगाल कमेटी की रिपोर्ट पर विशद चर्चा की गई। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के अनुसार, ‘बंगाल में विपक्ष के नेताओं- कार्यकर्ताओं पर राजनीतिक हमले बढ़ रहे हैं। सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता आतंक मचा रहे हैं। ऐसे में हम विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल, हमारा यही लक्ष्य है।` सीताराम येचुरी को बंगाल लाइन का करीबी नेता माना जाता रहा है।
दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव से ही माकपा में बंगाल लाइन और पार्टी नेतृत्व के बीच टकराव की नौबत रही है। उससे पहले तक केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को माकपा के नेतृत्व वाली वाममोर्चा समर्थन दे रही थी। अमेरिका के साथ भारत के परमाणु करार के सवाल पर माकपा के तत्कालीन महासचिव प्रकाश कारात ने समर्थन वापसी का फैसला लिया था। इसके विरोध में बंगाल के माकपा नेता थे। तब लोकसभा चुनाव में वाममोर्चा ने बंगाल में खराब प्रदर्शन किया था और बंगाल के नेताओं ने इसके लिए प्रकाश कारात के फैसले को जिम्मेदार ठहराया था।