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ये दिल मांगे न्याय

करगिल की चोटी से 'ये दिल मांगे मोर’ का नारा देने वाले शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का परिवार आज न्याय के लिए सरकारी तंत्र का चक्कर लगा रहा है। कैप्टन विक्रम बत्रा ने देश की जमीन को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी लेकिन आज उनका परिवार अपनी ही जमीन पाने के लिए भू-माफिया से जूझ रहा है। कैप्टन विक्रम बत्रा के परिवार के संघर्ष में न तो सरकार का सहयोग मिल रहा है और न प्रशासन का। रोचक तथ्य तो यह है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर रक्षामंत्री तक गुहार लगाने वाले इस परिवार की सुध लेने से भी मध्य प्रदेश सरकार गुरेज कर रही है।
ये दिल मांगे न्याय

मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर का है जहां विक्रम बत्रा के पिता जीएल बत्रा ने अपने भाई अशोक बत्रा के नाम 6.34 एकड़ खेती योग्य जमीन 1974 में खरीदी थी। इकतालीस साल पहले खरीदी गई इस जमीन की कीमत उस समय कम थी लेकिन जब कीमत बढऩे लगी तो भू-माफिया की नजर भी उस पर पडऩे लगी। जीएल बत्रा ने आउटलुक को बताया कि साल 2010 में एक स्थानीय अखबार के मालिक की नजर उस जमीन पर गई और उसने जमीन हथिया ली।

जमीन के बारे में तर्क यह दिया गया कि जो जमीन बत्रा ने खरीदी है वह उनकी नहीं है। इसके लिए फर्जी कागजात भी तैयार करा लिए गए जिनमें यह कहा गया कि अशोक बत्रा की जमीन का मालिकाना हक किसी और का है और उस मालिक ने इस जमीन को अखबार के मालिक के नाम कर दिया है। जब यह मामला तहसीलदार के संज्ञान में लाया गया तो वहां से भी भू-माफिया के खिलाफ फैसला आया। इसके बाद एसडीओ अदालत में भी भू-माफिया के खिलाफ फैसला आया। लेकिन इसके बावजूद भू-माफिया के लोग बत्रा परिवार को प्रताडि़त करने में लगे हुए हैं।

जीएल बत्रा के भाई अशोक बत्रा बताते हैं कि स्थानीय भूमाफिया इतना ताकतवर है कि प्रशासन से लेकर राजनीतिक लोगों तक उनके परिवार को परेशान करते रहे हैं। इतना ही नहीं उसकी तरफ से उनके परिवार के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज करा दिया गया ताकि बत्रा परिवार हार मानकर जमीन पाने की जिद छोड़ दें। पुलिस ने भी बिना जांच-पड़ताल किए बत्रा परिवार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया।उच्च न्यायालय में बत्रा की जीत हुई फिर भी भू-माफिया अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा है। बत्रा के मुताबिक एक स्थानीय विधायक ने भी पहले उनका साथ दिया लेकिन भू-माफिया की ताकत के आगे उन्होने भी साथ छोड़ दिया।

बत्रा बताते हैं कि हार मानकर प्रदेश के मुख्य‍मंत्री तक से मामले की शिकायत की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उसके बाद राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री से गुहार की गई। राष्ट्रपति भवन की ओर से मध्य प्रदेश के मुख्य‍ सचिव को भी पूरे मामले से अवगत कराया गया। लेकिन मुख्य‍ सचिव की ओर से भी कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। मामला तो और भी गंभीर तब हो गया जब रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने निजी तौर पर मुख्य‍मंत्री शिवराज सिंह चौहान से बात की और मामले को जल्द निपटाने के लिए कहा। इसके लिए रक्षा मंत्री ने पत्र लिखकर अवगत भी कराया (जिसकी कापी आउटलुक के पास उपलध है)।

इकतीस जनवरी 2015 को लिखे इस पत्र में रक्षा मंत्री ने साफ तौर पर लिखा है कि जो दस्तावेज उनको मुहैया कराए गए हैं उनसे जाहिर होता है कि जीएल बत्रा के साथ न्याय नहीं हो रहा है। उसके बावजूद मध्य प्रदेश सरकार ने कोई जहमत नहीं उठाई। इससे पहले 25 दिसंबर 2014 को रक्षा मंत्रालय के एक्स‍ सर्विसमैन वेलफेयर डिपार्टमेंट के अंडर सेकेट्री की ओर से भी प्रदेश के मुख्य‍ सचिव को पत्र लिखा गया। प्रदेश के मुख्य‍ सचिव एंटनी डिसा से जब इस बारे में जानकारी मांगी गई तो उन्होने सिर्फ इतना ही कहा कि पूरा मामला उनके संज्ञान में नहीं है। वह मामले की जानकारी हासिल करके ही कुछ जवाब दे सकते है। वहीं मुख्य‍मंत्री कार्यालय ने भी मामले की किसी प्रकार की जानकारी से इनकार कर दिया। सवाल यह है कि देश की खातिर अपनी जान गंवाने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा के परिवार को अगर न्याय नहीं मिल रहा है तो आम आदमी को कहां से मिलेगा।

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