भारत की अंतरिक्ष क्षमताएं अब केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि वे राष्ट्रीय रक्षा और रणनीतिक संचालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। हाल ही में हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' में इसरो (ISRO) के उपग्रहों ने भारतीय सशस्त्र बलों को रीयल-टाइम खुफिया जानकारी, निगरानी और संचार सहायता प्रदान की, जिससे सीमित समय में सटीक और प्रभावी कार्रवाई संभव हो सकी।
उपग्रहों की रणनीतिक भूमिका
भारत के पास वर्तमान में 9 से 11 समर्पित सैन्य उपग्रह हैं, जिनमें कार्टोसैट (Cartosat), रिसैट (RISAT), जीसैट-7 और जीसैट-7ए (GSAT-7/7A) शामिल हैं।
कार्टोसैट श्रृंखला: उच्च-रिज़ॉल्यूशन ऑप्टिकल इमेजिंग प्रदान करती है, जो लक्ष्य पहचान और हमले के बाद के मूल्यांकन में सहायक होती है।
रिसैट श्रृंखला: सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक के माध्यम से दिन-रात और सभी मौसमों में निगरानी संभव बनाती है।
जीसैट-7 और 7ए: नौसेना और वायुसेना के लिए सुरक्षित संचार सुनिश्चित करते हैं।
नवआईसी (NavIC): सटीक नेविगेशन और लक्ष्य निर्धारण में सहायता करता है।
इन उपग्रहों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुश्मन की गतिविधियों की निगरानी, लक्ष्यों की पहचान और हमलों के प्रभाव का मूल्यांकन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भविष्य की योजनाएं
भारत सरकार ने अंतरिक्ष आधारित निगरानी को और मजबूत करने के लिए अगले पांच वर्षों में 100 से अधिक नए उपग्रहों के प्रक्षेपण की योजना बनाई है, जिनमें से 52 विशेष रूप से खुफिया और निगरानी के लिए समर्पित होंगे। इनमें से कई उपग्रह निजी क्षेत्र के सहयोग से विकसित किए जाएंगे, जिससे स्वदेशीकरण और त्वरित तैनाती को बढ़ावा मिलेगा।
नागरिक उपयोग
इन सैन्य उपग्रहों के अलावा, इसरो के उपग्रह कृषि, मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन और टेलीमेडिसिन जैसे नागरिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इससे भारत की अंतरिक्ष क्षमताएं न केवल रक्षा बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास में भी सहायक बन रही हैं।
गौरतलब है कि भारत की उपग्रह प्रणाली अब राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़ बन चुकी है। ऑपरेशन सिंदूर ने यह सिद्ध कर दिया है कि अंतरिक्ष से प्राप्त जानकारी और संचार क्षमताएं आधुनिक युद्ध की सफलता में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। इसरो और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच समन्वय ने भारत को एक सशक्त अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित किया है, जो भविष्य के खतरों का सामना करने में सक्षम है।