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1984 दंगा: टाइटलर मामले की सुनवाई टली

दिल्ली की एक अदालत ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के सिलसिले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ मामले में दायर सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पर सुनवाई के लिए 22 अप्रैल की तारीख निर्धारित की।
1984 दंगा: टाइटलर मामले की सुनवाई टली

अदालत में शुक्रवार को सुनवाई नहीं हो सकी है क्योंकि अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) सौरभ प्रताप सिंह लालेर उपस्थित नहीं थे। मजिस्ट्रेट प्रशिक्षण उद्देश्य के लिए 20 मार्च से 28 मार्च तक लखनऊ में हैं। अदालत ने इससे पहले क्लोजर रिपोर्ट पर शिकायतकर्ता और पीडि़त लखविंदर कौर को शुक्रवार के लिए नोटिस जारी किया था। कौर के पति बादल सिंह की दंगों के दौरान हत्या कर दी गई थी।

कौर की ओर से उपस्थित अधिवक्ता कामना वोहरा ने दावा किया कि पीडि़त को अब तक नोटिस नहीं दिया गया है। अदालत ने इससे पहले कहा था, रिपोर्ट को देखने से यह खुलासा होता है कि आरोपी जगदीश टाइटलर के संबंध में रद्द करने को लेकर रिपोर्ट को पहले भी दाखिल किया गया था।

यह तीसरा मौका है जब जांच एजेंसी ने टाइटलर को क्लीन चिट दी है। सीबीआई ने कहा था कि उसने सत्र अदालत के निर्देश के अनुसार मामले में आगे की जांच की है और इस मामले में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की। अप्रैल 2013 में सत्र अदालत ने सीबीआई को मामले की आगे जांच का निर्देश दिया था। अदालत ने इससे पहले मामले में दायर क्लोजर रिपोर्ट को निरस्त कर दिया था।

क्लोजर रिपोर्ट दायर करने के सीबीआई के कदम पर नाखुशी जाहिर करते हुए दंगा पीडि़तों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एच एस फुल्का ने कहा था, ऐसे गुप-चुप तरीके से क्यों किया जा रहा है। यहां तक कि शिकायतकर्ता को भी इस बारे में जानकारी नहीं दी गई है। इसे गुप-चुप तरीके से दाखिल किया गया।

उन्होंने कहा था,  यह दर्शाता है कि अदालत गोपनीय तरीके से क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार कर ले इस बात का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा था कि क्लोजर रिपोर्ट 24 दिसंबर 2014 को दायर की गई थी और उन्हें अब जानकारी मिली है और वह भी अनधिकृत तौर पर किसी और वकील से, जबकि पीडि़त को तब तक कोई सूचना नहीं दी गई।

सत्रा अदालत ने 10 अप्रैल 2013 को टाइटलर को क्लीन चिट देने वाली सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को निरस्त कर दिया था और तीन लोगों की हत्या के मामले को दोबारा खोलने का आदेश दिया था। सीबीआई ने इससे पहले आगे की जांच के लिए याचिका का विरोध किया था। अदालत ने एजेंसी द्वारा की गई जांच में खामी पाई थी, जिसने उपलब्ध गवाहों का परीक्षण नहीं किया था।

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