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4 लाख करोड़ रुपये से 2 करोड़ रोजगार की उम्मीद

आम बजट में विकास के सुहावने सपने अच्छे लगते हैं। मोदी सरकार के नये वित्तीय वर्ष 2017-18 के बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में लगभग 4 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
4 लाख करोड़ रुपये से 2 करोड़ रोजगार की उम्मीद

निश्चित रूप से सड़क, रेल से लेकर बिजली या संचार जैसे क्षेत्रों में विपुल धनराशि खर्च होने पर बड़ी संख्या में रोजगार मिल सकता है। रोजगार भारत में ही नहीं ब्रिटेन, अमेरिका जैसे विकसित संपन्न देशों में भी सबसे बड़ा मुद्दा एवं चुनौती है। मोदी सरकार ने भी सत्ता में आने के बाद हर साल लगभग दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का विश्वास दिलाया था। लेकिन 40 लाख को रोजगार मिला और 80 लाख से अधिक बेरोजगार भी हो गए। फिर इंफ्रास्‍क्ट्रक्चर कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में विभिन्न राज्य सरकारें, सार्वजनिक क्षेत्र के संस्‍थान, स्‍थानीय स्वायत्त संस्‍थाओं की सक्रियता एवं संकल्प की जरूरत होती है। संघीय ढांचे में केंद्र सरकार को अधिकांश विकास एवं कल्याण कार्यक्रमों के लिए राज्य सरकारों के साथ बेहतर समन्वय करना होगा। बजट में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कानून, बिजली, पानी, पंचायत, किसानों के कर्ज और फसल बीमा योजना, डिजिटल बैंकिंग भुगतान, स्वच्छ भारत अभियान में शौचालयों के निर्माण जैसे काम के लिए भी पर्याप्त धनराशि रखी गई है। इसका लाभ भी दूरदराज के गांवों तक पहुंचाना जरूरी होगा। नोटबंदी के दौरान शहरों से पलायन कर चुके ग्रामीण मजदूरों के हितों की रक्षा करनी है। कॉरपोरेट क्षेत्र ने इस बजट को संतुलित और संतोषजनक करार दिया है। मतलब उनकी आमदनी बढ़ाने के रास्ते खोले गए हैं। टेलीकॉम और रक्षा के क्षेत्र में देशी-विदेशी पूंजी बड़े पैमाने पर लगाने के ‌लिए राजनीतिक-सामाजिक सौहार्द के माहौल की जिम्मेदारी सरकार के साथ अन्य राजनीतिक दलों और संगठनों की भी होगी। पंजाब से गोवा तक या मणिपुर से केरल तक सांप्रदायिक अथवा अतिवादी संस्‍थाओं की गतिविधियों से विकास के सपने अधूरे रह जाते हैं। डिजिटल क्रांति के लिए शिक्षा और स्वास्‍थ्य के क्षेत्र में नये बजट में अधिक प्रावधानों की उम्मीद थी, लेकिन वित्त मंत्री खजाने की सीमा में अधिक नहीं कर सके। हां, कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार और स्टार्ट-अप लाने वाले युवा उद्यमियों के ‌लिए कुछ उचित व्यवस्‍था हुई है। आयकर की रियायतें ऊंट के मुंह में जीरे की तरह और निम्न मध्यम वर्ग को दिल बहलाने लायक कही जाएंगी। नोटबंदी सहने वाली आत्मनिर्भर महिलाओं को आयकर में विशेष रियायत एवं बहुत सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज का प्रावधान लाभदायक हो सकता था। बहरहाल, राजनीतिक दलों को बिना हिसाब-किताब के 20 हजार नगद लेने के ढर्रे को लगभग लगाम लगाकर केवल दो हजार रुपये की सीमा लगाना अच्छा कदम है। जनता नेताओं को भी ‘नोटबंदी’ का स्वाद दिलाना चाहती रही है। देर-सबेर पूरा हिसाब सार्वजनिक करने का कदम उठाने की अपेक्षा रहेगी।

 

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