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तीन तलाक गैरकानूनी करार, सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से किया फैसला

अब कोई मुस्लिम मर्द तुरंत तीन बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी से रिश्ता नहीं तोड़ पाएगा।
तीन तलाक गैरकानूनी करार, सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से किया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने ऐतिहासिक फैसले में करीब 1400 साल पुरानी तुरंत तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक और अमान्य करार देते हुए खारिज कर दिया है। सर्वोच्च अदालत के 5 जजों की संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत से दिए फैसले में तीन तलाक को पवित्र कुरान के सिद्धांतों और इस्लामिक शरिया कानून के भी खिलाफ बताया।  कोर्ट ने तीन तलाक को बराबरी के अधिकार वाले संविधान के अनुच्छेद 14, 15 के तहत असंवैधानिक घोषित कर दिया।

हालांकि, प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर इस फैसले के अल्पमत में थे। उन्होंने एक पंक्ति के आदेश में कहा, ‘‘3-2 के बहुमत में दर्ज की गई अलग अलग राय के मद्देनजर तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक) की प्रथा निरस्त की जाती है।’’ संविधान पीठ के 395 पेज के फैसले में तीन अलग अलग निर्णय आये। इनमें से बहुमत के लिये लिखने वाले न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन, प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर के अल्पमत के इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे कि तीन तलाक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है और सरकार को इसमें दखल देते हुये एक कानून बनाना चाहिए। तीनों जजों ने कहा कि 1937 के मुस्लिम शरीयत कानून के तहत तलाक की धारा 2 में मान्यता दी गई है और उसकी विधि बताई गई है।संविधान के सिद्धांतों को देखते हुए तीन तलाक स्पष्ट रूप से मनमाना और और संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है। इसलिए इसे सिरे से रद्द किया जाता है।

सरकार, राजनीतिक दलों, कार्यकर्ताओं और याचिकाकर्ताओं ने तत्काल ही इस निर्णय का स्वागत किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे ‘ऐतिहासिक’ बताते हुए कहा कि इसने मुस्लिम महिलाओं को बराबर का हक प्रदान किया है। विधिवेत्ता सोली सोराबजी ने कहा, ‘‘यह प्रगतिशील फैसला है जिसने महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण दिया है और अब कोई भी मुस्लिम व्यक्ति इस तरीके से अपनी पत्नी को तलाक नहीं दे सकेगा।’’ तीन तलाक की प्रथा निरस्त होने के बाद अब सुन्नी मुस्लिम, जिनमें तीन तलाक की प्रथा प्रचलित थी, इस तरीके का इस्तेमाल नहीं कर सकेगे क्योंकि ऐसा करना गैरकानूनी होगा।

शीर्ष अदालत द्वारा तलाक-ए-बिद्दत या एकबारगी तीन तलाक कह कर तलाक देने की प्रथा निरस्त किये जाने के बाद अब इनके पास तलाक लेने के दो ही तरीके - तलाक हसन और तलाक अहसान ही बचे हैं। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले को मुस्लिम महिलाओं के लिए बड़ी जीत माना जा रहा है। इसके लिए शायरा बानो जैसी कई महिलाओं ने लंबी संघर्ष किया है। 

 

सुप्रीम कोर्ट ने इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किये जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे छुटकारा क्यों नहीं पा सकता।

 

सुप्रीम कोर्ट के अलपमत वाले फैसले में राजनीतिक दलों से अपने मतभेदों को दरकिनार रखने और तीन तलाक के संबंध में कानून बनाने में केन्द्र की मदद करने को कहा गया है।

 

देशभर में तीन तलाक को लेकर काफी समय से बहस चल रही है। पांच जजों की बेंच इस मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी। इस सुनवाई के दौरान कुल 30 पक्ष अपनी दलीलें अदालत के सामने रख चुके हैं।

- पांच जजों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की जिसमें बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने की थी। बेंच के बाकी सदस्य जस्टिस कुरियन जोसफ, रोहिंटन नरीमन, यू यू ललित और एस अब्दुल नजीर थे।

- तीन तलाक को लेकर 11 मई से सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई थी। और 18 मई को सुनवाई खत्म हुई थी और कोर्ट ने अपने आदेश को सुरक्षित रखा लिया था।

- इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे में कहा था कि वह इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है, और तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानती। वहीं अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील थी कि अगर सऊदी अरब, ईरान, इराक, लीबिया, मिस्र और सूडान जैसे देश तीन तलाक जैसे कानून को खत्म कर चुके हैं, तो हम क्यों नहीं कर सकते। 

- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि तीन तलाक पिछले 1400 साल से जारी है। अगर राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक का मुद्दा क्यों नहीं।

- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक याचिकाकर्ता फरहा फैज का कहना है, ‘’हम 70 साल से शिकंजे में फंसे हैं। औरतों ने हिम्मत दिखाई है।कुरान में तीन तलाक नहीं है। कोर्ट से जो फैसला आएगा वो औरतों के हक में आएगा।’’

 

 

 

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