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बाबरी विध्वंस देखने वाला फोटोग्राफर, जिसकी भेजी तस्वीर एक नेक वजह से नहीं छापी गई

पी मुस्तफा कोझिकोड (केरल) में फोटोजर्नलिस्ट हैं। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के दिन वह अयोध्या में...
बाबरी विध्वंस देखने वाला फोटोग्राफर, जिसकी भेजी तस्वीर एक नेक वजह से नहीं छापी गई

पी मुस्तफा कोझिकोड (केरल) में फोटोजर्नलिस्ट हैं। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के दिन वह अयोध्या में मौजूद थे। उन्होंने 'आउटलुक' के लिए अपना संस्मरण लिखा है। उसके कुछ अंश यहां पेश हैं। मूल लेख यहां पढ़ा जा सकता है।

यह एक बेचैनी भरी रात थी। फ़ैज़ाबाद में एक छोटे से होटल के कमरे में मैं रात भर करवटें लेता रहा। नींद ने मेरा साथ छोड़ दिया था। मेरा दिमाग पिछले दिन, 6 दिसंबर 1992 के विचारों से भरा हुआ था जिसकी वजह से मेरा दिल टूट गया था।

मुझे महसूस हुआ कि मध्ययुगीन मस्जिद के विध्वंस ने स्वतंत्र भारत की आत्मा को चोट पहुंचाई थी और इसे हमेशा के लिए बदल दिया। पूजा के किसी भी स्थान के विध्वंस से, चाहे वह मंदिर हो, चर्च हो या मस्जिद हो, मुझ पर ऐसा ही प्रभाव पड़ता।

मैंने नफरत से भरे माहौल में एक मस्जिद को जमींदोज होते देखा था। हमने बाद की चीजें भी देखीं-  आस-पास जलते टायर, बढ़ता धुआं और फोटोग्राफरों को पीटने वाले उग्र कारसेवक।

जैसे ही मैं अपने बिस्तर पर लेटा, मैंने अजान सुनी। उस अंधेरे में यह एक चौंकाने वाली बात थी कि एक साहसी मुसलमान ख़ुदा को आवाज दे रहा था।

यह अयोध्या की मेरी पहली यात्रा नहीं थी। 1990 और 1991 में कार सेवा (मंदिर निर्माण के लिए स्वैच्छिक सेवा) की तस्वीर के लिए मैं वहां दो बार गया था। अक्टूबर 1990 में, भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा बिहार में रोक दी गई थी और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन कार सेवकों ने अयोध्या तक यात्रा की। उनमें से कुछ ने भारी सुरक्षा वाले घेरे को तोड़ दिया और विवादित बाबरी मस्जिद पर चढ़ने लगे और मस्जिद के ऊपर एक भगवा ध्वज फहरा दिया।

मैं उस समय 'मलयाला मनोरमा' और 'द वीक' के लिए फोटोग्राफर के रूप में काम कर रहा था और एक फोटोग्राफर के रूप में, 42 साल में, मुझे कभी चोट नहीं आई सिवाय उस दिन के। कुछ कार सेवक वहां तैनात पीएसी पर पत्थर-ईंट फेंक रहे थे और एक ईंट मेरी पीठ पर पड़ी और कई महीनों तक काफी दर्द हुआ। पुलिस की गोलीबारी में कुछ लोगों की मौत हुई।

1991 में अयोध्या शांत था क्योंकि कार सेवकों ने तब तक कोई प्रयास नहीं किया था। पत्रकार एन विजय मोहन और मैं अयोध्या के गलियारों को एक्सप्लोर करने गए थे। हमें सुखद आश्चर्य था कि शहर में हिंदू मुस्लिमों के साथ सद्भाव के साथ रहते थे। हालांकि मैं उनके नामों को नहीं याद कर सकता लेकिन हमने पाया कि दोनों धर्मों के गरीब लोग मिलकर फूलों का काम करते थे जो मंदिरों में पूजा के लिए बेचे जाते थे या वे लोग वहां भक्ति गीतों के कैसेट बेचते थे। मुसलमानों ने पीले कपड़े पर राम नाम की प्रिंटिग की थी, वही जो कार सेवक पहनते थे। हमने राम के भक्तों के लिए पादुका बनाते मुसलमानों को देखा।

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6 दिसंबर की सुबह जल्दी हम मस्जिद पहुंचे और मैं उन लोगों के साथ अंदर गया जो पहली बार इसे देख रहे थे। यह उन कुछ लोगों के लिए जल्दबाजी का मामला था, जिन्हें अंदर आने की अनुमति दी गई थी। हममें से कोई नहीं जानता था कि यह कुछ घंटों में मलबे में तब्दील हो जाएगी।

छत के ऊपर हमारी जगह लेते ही जल्द ही आडवाणी, तब भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी, महाराष्ट्र भाजपा नेता प्रमोद महाजन और विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल पहुंचे और सीधे मस्जिद में चले गए। यह शायद साधु थे जो मस्जिद के भीतर से रामलला की मूर्तियां और अन्य कलाकृतियां लेकर आए। जल्द ही वहां कारसेवक रेंगने लगे जिन्होंने सीआरपीएफ और पीएसी जवानों का पीछा किया। 1.5 लाख कार सेवक भारी संख्या में अयोध्या में इकट्ठा हुए थे।

हम कार सेवकों की बॉडी लैंग्वेज में बदलाव देख सकते थे। कई फोटोग्राफरों को पीटा गया और उनके कैमरों को नष्ट कर दिया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, 30-50 फोटोग्राफरों को घायल किया गया। कारसेवकों ने मस्जिद के गुंबदों पर चढ़ाई की। चारों तरफ शोरगुल और धूल थी क्योंकि हथौड़े निकल आए थे और चारों तरफ से मस्जिद पर प्रहार शुरू हो गया।

मैं शायद ही तस्वीरें ले सकता था क्योंकि मैं डर और पीड़ा से कांप रहा था। मुसलमानों और फोटोग्राफरों के लिए घृणा स्पष्ट थी और मैं दोनों था। मैं उस प्रेस में शायद एकमात्र मुस्लिम था, उस दिन। मैंने फिल्म रोल और मेरे पहचान पत्र को मेरे मोजे में भर दिया। 

हमारे वाहन को कई बार रोका गया था, लेकिन हमें छोड़ दिया गया था। उस रात गुप्त रूप से मैंने एक स्टूडियो में फोटो तैयार की और मैंने कोट्टयम में 'मलयाला मनोरमा' को विध्वंस की पहली तस्वीर भेजने के लिए ट्रांसमीटर का इस्तेमाल किया।

शायद यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी स्टोरी थी लेकिन 'मलयाला मनोरमा' ने इसे एक अच्छी वजह से नहीं छापा। केरल में दंगों को रोकने के लिए। आज तक उन्होंने ऐसा नहीं किया है। मैं इस बारे में सोचता हूं तो मुझे बुरा नहीं लगता।

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