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विवादित कॉलेजियम एवं न्यायिक नियुक्ति आयोग पर राष्ट्रपति हस्तक्षेप करेंः बार एसो

अखिल भारतीय बार संघ (एआईबीए) ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से शिकायत की है कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में कम से कम 125 जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में देरी पूर्ववर्ती कॉलेजियम प्रणाली खत्म करने से उत्पन्न हुई संवैधानिक शून्यता के कारण हो रही है। इसके अलावा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के गठन में भी देर की जा रही है।
विवादित कॉलेजियम एवं न्यायिक नियुक्ति आयोग पर राष्ट्रपति हस्तक्षेप करेंः बार एसो

राष्ट्रपति के समक्ष बतौर प्रतिनिधि एआईबीए के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. आदिश सी. अग्रवाल ने यह सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एनजेएसी मामले की सुनवाई  11 जजों की खंडपीठ करे ताकि उग्र होते इस विवाद का समग्र निपटारा किया जा सके।

इस मुद्दे पर चल रही बहस की ओर राष्ट्रपति का ध्यान आकृष्ट करते हुए डॉ. अग्रवाल ने कहा कि सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने नियुक्त‌ि की कॉलेजियम प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करने वाले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए 1993 और 1998 के फैसलों पर पुनर्विचार करने के लिए ठोस दलील पेश की थी।

अटॉर्नी जनरल ने खंडपीठ से इस मामले को 11 जजों वाली बड़ी खंडपीठ के हवाले करने का अनुरोध किया है ताकि यह मामला एक बार में ही पूरी तरह से सुलझा लिया जाए। इस मसले पर खंडपीठ अभी तक अंतिम फैसला नहीं कर पाई है।

डॉ. अग्रवाल ने कहा, ‘एनजेएसी की अधिसूचना के मुताबिक, अब कॉलेजियम प्रणाली का अस्तित्व नहीं रह गया है। सरकार जजों की नियुक्ति के लिए 125 नामों की विभिन्न उच्च न्यायालयों की सिफारिशों पर विचार करना पहले ही त्याग चुकी है। इसके अलावा दो वर्षों की अवधि के लिए नियुक्त शुरुआती दौर के कुछ अतिरिक्त जजाें को भी जल्द ही स्‍थायी जजों के रूप में नियुक्त करना बाकी है। न्याय‌िक प्रणाली में मौजूदा गतिरोध देश के हित में अच्छा संकेत नहीं है।’

एआईबीए का दृढ़विश्वास है कि मुख्य न्यायाधीश और कॉलेजियम को हमेशा के लिए नियुक्ति मामले के सभी अधिकार सौंप देन पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए ताकि संविधान में समानता का भाव बना रहे। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड जैसे देशों का अनुभव बताता है कि जजों की नियुक्ति के लिए गठित न्यायिक नियुक्ति आयोग बहुत अच्छी तरह काम कर रहा है।

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