सभा का कहना है कि 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री ने फसल बीमा योजना को सरकार के प्रमुख कार्यक्रम के रूप में घोषित किया था। लेकिन आज यह भ्रष्ट्राचार का बड़ा जरिया बन गया है। इस योजना के तहत साल 2016-17 के लिए बीमा कंपनियों ने प्रीमियम के रूप मे 21,500 करोड़ रुएये इक्कठा किये लेकिन है लेकिन किसानों को क्लेम के रूप में दिये गये केवल 714.14 रुपए करोड़ रुपए। जबकि खरीफ फसल के लिए किसानों ने 4270.55 करोड़ रुपये के भुगतान के दावे किये थे। यानि निजी कॉरपोरेट हाउसों ने प्रीमियम राशि 21500 करोड़ का लगभग 97% हिस्सा अपने पास ही रख लिया। खरीफ फसल के प्रीमियम का केवल 20 फीसदी ही दावों के रूप में बांटा गया।
पिछले साल के मुकाबले 2016-17 में 400 फीसदी ज्यादा प्रीमियम आया है जबकि कवर किए गए किसानों की संख्या में केवल 38% की ही वृद्धि हुई है। अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था कि फसल बोते समय किसनों के मन में किसी तरह की कोई चिंता नहीं होनी चाहिए। इसलिए ऑल इंडिया किसान सभा ने मांग की है कि वित्त मंत्री को किसानों को बताना चाहिए कि उनके बयाका दावो को क्यों नहीं दिया गया। सभा का कहना है कि अरुण जेटली जानबूझकर दावों के निपटारे के नाम पर पूरे देश को गुमराह कर रहे हैं। यह सार्वजनिक धन की निजी कंपनियों द्वारा की गई खुली लूट है जिसको सहन नहीं किया जाएगा। ऑल इंडिया किसान महासभा का कहना है कि जब पीएम ने फसल बीमा योजना जारी की थी तभी हमने कहा था कि इसमें सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों को आगे लाना चाहिए क्योंकि निजी कंपनी सिर्फ प्रीमियम कमाना चाहती है क्लेम देना नहीं।