सावधान, मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार,
तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार।
हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी अज्ञान;
फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान ।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार
स्कूली दिनों में हम जब राष्ट्रकवि दिनकर की जब यह पंक्तियां पढ़ रहे थे, तब ये विज्ञान-तकनीक के दुरुपयोग पर एक तंज मात्र लगीं। तब इसका आभास न था कि आने वाले समय में मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा बनने जा रहे इंटरनेट और उसके विभिन्न आयामों पर ये इतना सटीक बैठेंगी कि मानो उसी कालखंड में लिखी गई हो।
जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को आज तकनीक की दुनिया में हर समस्या का समाधान माना जा रहा है। वहीं क्लाइमेट चेंज फ़िलहाल दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरा है। देश- दुनिया के विद्वान उस पर मंथन कर रहे हैं। भारत सरकार से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक तमाम तरह की योजनाएं और अभियान इसे लेकर शुरू किए गए हैं। और आखिर हो भी क्यों ना! क्लाइमेट चेंज वह वैश्विक समस्या है जिसके कारण दुनिया के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा हो गया है। और इसकी गवाही दे रही है दुनिया भर में जंगलों में लग रही आग, पड़ रहा सूखा, पिघल रहे ग्लेशियर, आ रही बाढ़ और विलुप्त हो रहीं पशु-पक्षियों, जंतुओं और वनस्पतियों की प्रजातियां।
सबसे पहले समझना जरूरी है आखिरी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है क्या? अगर आप अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी से समझना चाहते हैं तो ऐसे समझिए कि आजकल स्मार्ट फोन हर हाथ में है। जब आप अपने स्मार्टफोन में बोलकर कोई मनपसंद चीज ढूंढते हैं; चाहे वो गाना हो, कोई आर्टिकल हो या फिर अमेजॉन- फ्लिपकार्ट जैसे किसी शॉपिंग प्लेटफार्म पर आपकी कोई मनपसंद चीज। एलेक्सा, गूगल असिस्टेंट, और सीरी... यह सभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ही उदाहरण है। फेसबुक हर किसी के स्मार्टफोन में है। आप जिस तरह की पोस्ट पढ़ते हैं या वीडियो देखते हैं, धीरे-धीरे आपको उसी तरह की पोस्ट या वीडियोज़ दिखाई देने लगते हैं। मसलन आप अगर राजनीतिक खबरें पढ़ना या उसके वीडियोज़ देखना पसंद करते हैं, तो फेसबुक लॉगिन करने पर आपको इसी तरह किए वीडियोज़ दिखाई पड़ेंगे। यह सब भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ही कमाल है। इसे कोई मैनुअली बैठकर नहीं कर रहा होता।
अब आते हैं कि आखिर क्लाइमेट चेंज से लड़ने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दम पर दुनिया में वह कौन से चार-पांच महत्वपूर्ण काम हो रहे हैं, जिनके बारे में आपको पता होना जरूरी है।
सबसे पहला प्रोजेक्ट है- डीपमाइंड एआई। डीपमाइंड एआई गूगल की एक कंपनी डीपमाइंड टेक्नोलॉजी का प्रोडक्ट है। दुनिया भर में ई-मेल, फोटो, और वीडियो के रूप में लाखों पेटाबाइट डाटा रोजाना इधर से उधर ट्रांसफर किया जाता है। उस डाटा को सुरक्षित रखने के लिए गूगल ने अपने भारी-भरकम डाटा सेंटर्स बनाए हुए हैं। अब तक इन डाटा सेंटर्स में अच्छी खासी ऊर्जा व्यय होती थी। लेकिन अब डीपमाइंड एआई, मशीन लर्निंग तकनीक से गूगल के हैवी डाटा को ऑडिट करके गूगल के सर्वर को ठंडा रखने में मदद कर रहा है। गूगल सर्वर को ठंडा रखने से ऊर्जा की खपत भी लगातार कम हो रही है। डीपमाइंड एआई तकनीक इस बात को सुनिश्चित करती है कि न्यूनतम और सबसे आवश्यक समय पर ही इन सर्वर्स को ठंडा किया जाए, जिससे यह टेक फ्रेंडली होने के साथ एनवायरमेंट फ्रेंडली भी बने।
दूसरा है - दुनिया की दिग्गज कंप्यूटर सॉफ्टवेयर एंड हार्डवेयर अमेरिकन कंपनी आईबीएम का 'ग्रीन हॉरिजोन प्रोजेक्ट"। इसे चीन में वायु प्रदूषण की भयंकर समस्या से एडवांस टेक्नोलॉजी के दम पर लड़ने के लिए लॉन्च किया गया है। चीन दुनिया के सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों में से है। इस साल मार्च के महीने में वहां एक्यूआई 1093 दर्ज किया गया था। आईबीएम का यह प्रोजेक्ट बिग डाटा एनालिटिक्स, सेंसर नेटवर्क्स और मशीन लर्निंग के जरिए एयर क्वालिटी को लेकर रियल टाइम भविष्यवाणी भी करता है और वायु प्रदूषण पर नजर भी रखता है। भारत के संदर्भ में अगर इसे एक उदाहरण से समझें तो कहा जा सकता है कि ये प्रोजेक्ट बताने में सक्षम है कि दिवाली से 15 दिन पहले और बाद के 15 दिन बाद तक वायु प्रदूषण की स्थिति क्या रहेगी, ये एडवांस में बता सकता है।
मौसम के पैटर्न और हानिकारक गैस उत्सर्जित करने वाले स्रोतों के डेटा का विश्लेषण करके प्रदूषण को कम करने उपाय बताता है। इसकी खास बात यह है कि किसी गर्म स्थान पर, किसी ठंडे स्थान पर या किसी रेतीले स्थान पर प्रदूषण नियंत्रण के क्या अलग-अलग उपाय होंगे, ये भी बताने में सक्षम है। ये सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा ही संभव हो सका है। आंकड़ों के मुताबिक 2013 से 2021 के बीच में चीन में वायु प्रदूषण लगातार कम भी हुआ है।
तीसरा है- कनाडा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा कार्बन प्राइसिंग। इसकी शुरुआत कनाडा के 'ब्रिटिश कोलंबिया' नामक राज्य से की गई। मोटे तौर पर कार्बन प्राइसिंग एक तरीके की नीति है, जिसके द्वारा एआई एल्गोरिदम के जरिए बड़े-बड़े डाटा सेट का विश्लेषण किया जाता है। जिसके बाद कार्बन प्राइसिंग का स्तर तय किया जाता है। फैक्ट्रियों, कल कारखानों, तरह-तरह के प्रोजेक्ट्स के बारे में कार्बन उत्सर्जन को लेकर एक सीमा तय कर दी जाती है। आसान शब्दों में कहें तो सरकार कार्बन उत्सर्जन को लेकर इससे बेहतर निर्णय ले पाती है। पहले से तय इस तकनीक के चलते किसी उद्योग या उद्योगपति विशेष को पर्यावरणीय फैसलों में छूट देने या उस पर कड़े फैसले लेने का दवाब भी नहीं रहता।
चौथा है - आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा नीदरलैंड में स्मार्ट पावर ग्रिड का प्रबंधन। नीदरलैंड ने एआई-संचालित स्मार्ट ग्रिड सिस्टम बनाया है। ये ऊर्जा वितरण को बैलेंस करता है और इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को कम करता है। ये सिस्टम एआई एल्गोरिदम का इस्तेमाल करके बिजली की डिमांड और सप्लाई को भी बैलेंस करता है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी का एक स्थान पर प्रबंधन करता है और इन सब के द्वारा देश की समग्र ऊर्जा उत्पादन बेहतर और एक समान वितरण करता है। देशा देखा जाए तो ये सिस्टम भारत जैसे देश के लिए काफी महत्वपूर्ण है। जहां उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य हैं, तो पूर्वोत्तर के छोटे राज्य भी। जहां ऊर्जा का अक्सर असमान वितरण देखा जाता है।
अतः हम कह सकते हैं कि जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर कंप्यूटर दक्षता से किए जाने वाले बहुततेरे काम, जैसे- लेखन, मीडिया, डाटा एंट्री,और बैंकिंग-फाइनेंस आदि में नौकरियों को खत्म करने के आरोप लग रहे हैं, वहीं ये तकनीक दूसरी ओर मानव अस्तित्व से जुड़े सबसे बड़े मौजूदा प्रश्न यानि 'क्लाइमेट चेंज' से निपटने में भी लगी हुई है।
(लेखक लखनऊ स्थित पत्रकार हैं। पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं। यहां व्यक्त विचार निजी हैं। )