छत्तीसगढ़ में आरक्षण की सीमा आसमान तक पहुंच गई है। 15 अगस्त को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य में अनुसूचित जाति को 13 फीसदी और अन्य पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण का ऐलान कर नगरीय निकाय चुनावों से पहले राजनीतिक पासा फेंक दिया। 2018 के विधानसभा चुनाव में 68 सीटों के साथ सत्ता में आई कांग्रेस लोकसभा चुनाव में दो सीटों में सिमटकर रह गई। छह माह बाद स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं। ऐसे में उन्होंने आरक्षण की बिसात बिछाकर सबको उलझा दिया है। भूपेश बघेल की घोषणा से राज्य में आरक्षण 72 फीसदी तक जा पहुंचेगा, वहीँ आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण का प्रावधान लागू होने पर यह 82 फीसदी हो जाएगा। दूसरी ओर, इसके खिलाफ आवाज भी उठनी शुरू हो गई है। कुछ लोग छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ में अभी अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 14 फीसदी आरक्षण है, जिसे बढ़ाकर 27 फीसदी करने का ऐलान किया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 27 फीसदी आरक्षण को ओबीसी का जायज हक माना है। पूर्व मुख्यमंत्री और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के संस्थापक अजीत जोगी ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की मांग काफी पहले से कर रहे थे। उन्होंने घोषणा के बाद भूपेश बघेल को धन्यवाद दिया।
कोर्ट में उलझेगा मामला: नेता प्रतिपक्ष
मुख्यमंत्री का कहना है कि अन्य राज्यों में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू है, इसलिए राज्य की 50 फीसदी आबादी को उनका हक मिलना चाहिए। पिछली सरकार ने एससी का आरक्षण कम कर दिया था, उसे 13 फीसदी किया गया है। इसके जवाब में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक कहते हैं कि राज्य सरकार पहले केंद्र सरकार द्वारा तय आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण को लागू करे। नई घोषणाएं लागू करने के उपाय नहीं बताए गए हैं, यह कोर्ट में उलझा जाएगा।
समर्थन के लिए मजबूर विपक्षी नेता
रमन सिंह और अजीत जोगी की राजनीतिक धारा भले भूपेश बघेल से अलग हो, दोनों का उनके साथ आना उनकी राजनीतिक मजबूरी है। ओबीसी वर्ग राज्य में अपनी आबादी 50 फीसदी मानते हैं, इसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी स्वीकार करते हैं। यहां ओबीसी से 21 विधायक हैं, जिनमें 16 कांग्रेस के हैं। राज्य में ओबीसी कितना महत्व रखते हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ने इस वर्ग के भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया, तो भाजपा को संतुलन बनाने के लिए इसी वर्ग से धरमलाल कौशिक को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष बनाना पड़ा। दोनों लंबे समय तक अपनी-अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे।
जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण की मांग
सतनामी समाज की प्रमुख रहीं स्व. मिनीमाता की पुण्यतिथि पर रायपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अनुसूचित जाति को उनकी आबादी के अनुपात में 13 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा कर दी, जिससे राज्य में आरक्षण का जिन्न जाग गया। कार्यक्रम में गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति समिति के अध्यक्ष केपी खाण्डे ने जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति (एससी) आरक्षण की मांग उठाई। भाजपा नेता और पूर्व विधायक नवीन मार्कण्डेय का कहना है कि एससी को 16 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए। भाजपा सरकार ने 2012 में अनुसूचित जाति का आरक्षण 16 से घटाकर 12 फीसदी और अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) का 20 से बढ़ाकर 32 फीसदी कर दिया था। विरोध के बावजूद भाजपा सरकार ने फैसला नहीं पलटा और 2013 के विधानसभा चुनाव में एससी के लिए रिजर्व दस में से नौ सीटों पर जीत दर्ज की। लेकिन आरक्षण बढ़ने के बाद भी उसे आदिवासी सीटें ज्यादा नहीं मिलीं। यहां एसटी के लिए 29 रिजर्व सीटें हैं।
ओबीसी के भीतर अति पिछड़ों को 14 फीसदी आरक्षण की मांग
कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में सभी वर्गों के वोट मिले। लोकसभा चुनाव में आदिवासी कांग्रेस के साथ रहे और पार्टी ने बस्तर और कोरबा सीट जीत ली, लेकिन मैदानी इलाकों में वह गच्चा खा गई। अब नगरीय निकायों के चुनाव में पार्टी ने आरक्षण का दांव चला है, क्योंकि ज्यादातर नगरीय निकाय गैर-आदिवासी इलाकों में हैं और ओबीसी और एससी वोटर ज्यादा हैं। 13 नगर निगम, 44 नगर परिषद और 113 नगर पंचायतों के चुनाव में आरक्षण तीर से कांग्रेस को कितनी सीटों पर जीत हासिल होगी, यह अलग बात है, लेकिन जोगी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने ओबीसी के भीतर अति पिछड़ों को 14 फीसदी आरक्षण का नया राग अलापना शुरू कर दिया है।
हाइकोर्ट जाएगा एंटी रिजर्वेशन मूवमेंट
एंटी रिजर्वेशन मूवमेंट के संयोजक कुणाल शुक्ला का कहना है कि राज्य में 72 फीसदी आरक्षण संविधान के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी के भीतर आरक्षण सीमित रखने की व्यवस्था दी है। वे सरकार की घोषणा के खिलाफ हाइकोर्ट जाएंगे। भाजपा नेता केदार गुप्ता कहते हैं- सरकार बेरोजगारों को नौकरी नहीं दे पा रही है, ऐसे में आरक्षण की सीमा बढ़ने का औचित्य क्या है? कांग्रेस के प्रदेश महासचिव शैलेश नीतिन त्रिवेदी का कहना है कि जब यहां रमन सिंह की सरकार ने और केंद्र की मोदी सरकार ने आरक्षण की सीमा को लांघा, तब सामान्य वर्ग के पैरोकारों ने विरोध नहीं किया। अब कांग्रेस की घोषणा का विरोध कर रहे हैं।
आरक्षण की घोषणा में कई पेंच हैं। यह सरकारी नौकरियों और स्कूल-कॉलेजों तक सीमित रहेगा या इसका असर नगरीय चुनाव में पदों के आरक्षण पर भी होगा, यह साफ़ नहीं है। पर एक बात साफ़ है अब छत्तीसगढ़ में आरक्षण के नाम पर राजनीति के नए दरवाजे खुल गए हैं। आने वाले दिनों में समर्थन और विरोध के कई स्वर गूंजेंगे।