सिन्हा छात्रों को भारत व्यापार के कितना अनुकूल है, विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा, जर्मनी के मशहूर समाजशास्त्री मैक्स वेबर ने इस संबंध में विश्लेषण कर पाया कि हमारी वर्ण व्यवस्था व्यापार के खिलाफ है। इसीलिए उद्यमिता हमारे देश में कभी नहीं पनप सकती। उन्होंने कहा कि उनके अनुसार इस विश्लेषण में वेबर ने एक बड़ी भूल की। उन्होंने मुनाफे की शक्ति (पावर ऑफ प्रॉफिट) को कम करके आंका। लेकिन मुनाफे की शक्ति हमारे यहां इतनी महत्वपूर्ण है कि आज हमने जो भी विकास किया है, उसने वेबर को गलत साबित किया है।
भारत में व्यापार की स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भी हमने उद्यमिता को बढ़ावा न देकर लॉबीइंग को बढ़ावा दिया जिससे हम व्यापार के क्षेत्र में कोई महान मापदंड स्थापित नहीं कर पाए। उन्होंने कहा, आज भी कितना बदलाव आया है, हम व्यापार पर कितना विश्वास करते हैं? सरकारें पहले सत्यापन, फिर विश्वास (व्यापार पर) की नीति अपनाती रही हैं जबकि यह पहले विश्वास, फिर सत्यापन होना चाहिए। यह उन मूलभूत विभेदों में से एक है जो अन्य बाजार समर्थक देशों में नहीं है।
सिन्हा ने कहा कि हम आज 2015 में भी भारत में व्यापार करने की अनुकूलता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सिर्फ 98 वस्तुएं ऐसी हैं जिनमें हम आसानी से व्यापार कर सकते हैं। भारत में व्यापार के विकास के लिए अकेले केंद्र सरकार कुछ नहीं कर सकती, बहुत कुछ राज्य सरकारों पर भी निर्भर करता है।
उद्यमिता के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, मेरी नजर में उद्यमी वह है जो बाजार में उपलब्ध अवसरों को पहचानता है और फिर उन अवसरों का लाभ उठाने का प्रयास करता है। वह यह क्यों करता है, क्योंकि वह भी उद्यम में मुनाफा देखता है। उन्होंने कहा, उद्यमिता में जोखिम पहले से विद्यमान रहता है। यह सरकार का जोखिम नहीं होता बल्कि उद्यमी का अपना निजी जोखिम होता है। लेकिन यहां भारत में यह सरकार की जिम्मेदारी है कि एेसी नुकसान वाली कंपनियों को सहायता राशि प्रदान करे। उन्होंने कहा कि यदि कोई एयरलाइन या टेलीकॉम कंपनी मार्केट में काम नहीं कर सकती तो उसे जाने दें। जब मुनाफा उनका है तो जोखिम भी उनका ही होगा।
इसके अतिरिक्त उन्होंने बाजार में नियामकों की जरूरत को भी महत्वपूर्ण बताया ताकि जंगलराज से बचा जा सके और बाजार में स्वस्थ प्रतियोगिता बनी रहे। कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने देश में प्राथमिक शिक्षा में बड़े सुधारों की जरूरत के साथ शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत बताई। शोध पर उन्होंने कहा कि हमारे यहां औद्योगिक शोध तो हो रहा है, लेकिन जरूरत है मौलिक शोध की। इसके अलावा शोध को आम जनता तक पहुंचाने की भी। उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि वे नौकरी पाने की लालसा को छोड़ नौकरी देने वाले बनें और नव उद्यमिता को अपनाएं।