ईमानदार हो या अपराधी उसे न्यायाधीश से सही न्याय मिलने का विश्वास रहता है। लाखों लोग डॉक्टर की तरह जज को भी भगवान का रूप या देवता ही मानते हैं। ब्रिटेन में जजों पर कार्टून बनाने और व्यंग्य करने की छूट है। लेकिन भारत में इसे अवमानना माना जाएगा। एक दशक पहले तक सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला स्तर तक के जज सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने से बचते थे। वे नेताओं की तरह किसी समारोह के अतिथि या अध्यक्ष नहीं बनते थे। कई आदर्शवादी जज परिजनों से जुड़े बड़े समारोह और पार्टी में नहीं जाते थे या कुछ मिनटों की औपचारिकता निभाकर चले जाते थे। इस दूरी का कारण यह रहा कि अदालत के समक्ष विचाराधीन मामलों और उनसे जुड़े लोगों से आमना-सामना न हो। निरपेक्ष भाव से मामलों की सुनवाई और न्यायिक फैसला हो।
लेकिन हाल के वर्षों में जज कुछ उदार रवैया अपनाने लगे हैं। वे चुने हुए सार्वजनिक कार्यक्रमों में जा रहे हैं। कानून से जुड़े विषयों पर सार्वजनिक भाषण देने लगे हैं। अदालतों में भी पुरानी लीक से हटकर कुछ मामलों में सरकारों को फटकार लगाते हुए निर्देश दे रहे हैं। इस समय भाजपा सरकार के कई मंत्री-नेता न्यायाधीशों की ‘अति सक्रियता’ से विचलित है और संभलकर विरोध भी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्तियों के मुद्दे पर सरकार के नए प्रस्तावों का विरोध कर रखा है। निश्चित रूप से न्यायमूर्तियों की नियुक्तियों और कामकाज में राजनीतिक पूर्वाग्रहों से हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
लेकिन दो दिन पहले इलाहाबाद में हुई घटना का विवरण चौंकाने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक एवं बड़ी राजनीतिक सभा के लिए इलाहाबाद पहुंचे। उसी दिन इलाहाबाद बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में पहुंचे। इलाहाबाद में उच्च न्यायालय है। रिपोर्ट यह है कि इस कार्यक्रम में अन्य वकीलों की तरह कुछ माननीय जजों में भी मोदीजी के साथ खड़े होकर ‘सेल्फी’ फोटो खिंचवाने की होड़ लग गई और कुछ भावुक विनम्र जज पैर छूते हुए भी दिखाई दिए। यदि यह रिपोर्ट सही है तो इस नमन पर आश्चर्य के साथ प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय वही ऐतिहासक स्थान है, जहां प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किए जाने वाला ऐतिहासिक फैसला आया था। इसी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सामने कई राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांप्रदायिक आधार वाले मुकदमे विचाराधीन रहते हैं। यदि जज पार्टी विशेष के नेताओं के प्रति नमन के साथ जुड़े हुए माने जाएंगे तो उनके फैसलों पर भी कहीं विशेष आग्रह के आरोप न लग जाएं। न्यायाधीशों की भी क्या कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है?