मंगलवार को भारत और मॉरीशस सरकार के बीच संशोधित टैक्स संधि हुई। यों नए नियम लगभग एक वर्ष बाद यानी अप्रैल 2017 से लागू होंगे, लेकिन इससे गड़बड़ करने वालों के सिर तलवार लटक जाएगी। इस बदलाव से मॉरीशस निवासियों के लिए चले आ रहे विवादों को समाप्त किया जा सकेगा। इस तरह कैपिटल गेंस टैक्स के मामले में विदेशी और घरेलू पूंजी निवेश पर एक समान कर लागू हो जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कानूनी तरीकों से बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश अधिक आसान हो जाएगा। मॉरीशस के अलावा सिंगापुर भी इस नियम से जुड़ जाएगा। पनामा पेपर्स उजागर होने के बाद यह तो पता चल ही रहा था कि काले धन के लिए दशकों से बनी ‘स्विस बैंक खातों’ की रहस्यमय गलतफहमी रही है। चालाक लोग सेशल्स सहित दुनिया भर के चुनिंदा स्थानों पर गुपचुप धन जमा कर टैक्स चोरी करते रहे हैं। छोटे-छोटे देशों में धंधा करने पर जांच एजेंसियों की नजर भी नहीं पड़ती थी। 2014 के चुनाव में काला धन बड़ा मुद्दा रहा और भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काले धन को वापस लाने का संकल्प व्यक्त किया था। पहले स्विस बैंकों की भी कुछ जानकारियां सार्वजनिक हुई थीं। लेकिन कानूनी प्रक्रिया में विलंब तथा जांच एजेंसियों के पास कार्मिक एवं अन्य साधनों की सीमाओं के कारण जांच तथा कार्रवाई लंबे समय तक चलती रहती है। हसन अली जैसे मामले में वर्षों पहले बैंक खातों का ब्योरा मिल जाने के बावजूद काला धन वापस नहीं आ सका। कुछ मामलों में लोगों ने बैंक खातों से पैसा ही निकाल लिया। एक बड़े मामले में संबंधित व्यक्ति की मृत्यु हो गई। वर्षों तक मामले लटके रहने पर काले धन को वापस लाना मुश्किल हो जाता है। सी.बी.आई. और प्रवर्तन निदेशालय के पास पड़ताल के लिए सैकड़ों नाम पहुंच रहे हैं। नाम-पते-ठिकाने के साथ भारत से बाहर ले गए अथवा लाए गए धन का आकलन नियमानुसार किया जाता है। इस दृष्टि से निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करना कठिन है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ बेहतर तालमेल के साथ मादक पदार्थों की तस्करी एवं आतंकवादी गतिविधियों के लिए काले धन के दुरुपयोग पर भी कड़ा अंकुश सकेगा।
चर्चाः काले धन के एक रास्ते पर पहरा | आलोक मेहता
भारत में काला धन आने-जाने के एक बड़े रास्ते पर अब पहरे की पहल हुई है। वर्षों से मॉरीशस के साथ ऐतिहासिक संबंधों के कारण करों में बड़ी रियायत की एक टैक्स संधि के प्रावधान का दुरुपयोग कई कंपनियों द्वारा किया जा रहा था। व्यापारी ही नहीं बड़े अफसर और नेता भी अपने रिश्तेदारों के नाम पर करोड़ों रुपयों का लेन-देन कर रहे थे।
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