केंद्र के साथ कुछ अन्य राज्यों में सत्तारूढ़ होने के कारण भाजपा अपने को सर्वशक्तिमान मानने लगी है। देश में 65 वर्षों में हुई तरक्की भी उसके लिए शून्य और दो वर्षों के कार्यकाल की उपलब्धि महान रिकार्ड तोड़ है। इसलिए बिहार के मुख्यमंत्री के साथ 8 वर्ष सत्ता में रहते हुए जो काम वह नहीं कर सकी, प्रतिपक्ष की तलवार बनकर नीतीश से करवा लिया। जनता दल (यू) और कांग्रेस के नेता भाजपा के दावे को हास्यास्पद बताते हैं। उनका तर्क यही है कि नीतीश कुमार ने चुनाव में जनता के बीच किए वायदे को दृढ़तापूर्वक निभाया है। इस कदम से प्रदेश के राजस्व में भारी कमी आएगी, क्योंकि शराब की एक्साइज ड्यूटी तथा कर आदि से सरकारी खजाने में अच्छी खासी धनराशि आती रही है। अब भाजपा और केंद्र सरकार को याद दिलाया जाएगा कि उसने तो बिहार को विशेष दर्जा और हजारों करोड़ रुपया देने का वायदा किया था, उसे क्यों नहीं पूरा करती? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि बिहार से लगे झारखंड और छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश के अलावा भाजपा शासित महाराष्ट्र, हरियाणा-राजस्थान में भी शराब के विरुद्ध महिलाएं तथा कुछ स्वयंसेवी संगठन वर्षों से आंदोलन करते रहे हैं, भाजपाई अपने स्वयंसेवकों की सरकारों को पूर्ण मद्य निषेध के लिए क्यों नहीं झुकाती? गुजरात एकमात्र राज्य है, जहां दशकों से मद्य निषेध कानून लागू है। इसमें कोई शक नहीं कि पूर्ण शराबबंदी कानून का पालन बहुत कठिन है। इसके साथ अवैध और नकली शराब का धंधा पनपता है। लेकिन विभिन्न राज्यों में शराब के कारखानों और खपत को नियंत्रित करने के अलावा राजनीतिक दल अपने नेताओं और पूर्णकालिक सदस्यों को शराब न पीने और न पिलाने की आचार संहिता क्यों नहीं लागू कर सकते? नैतिक मानदंडों की बात करने वाले नेता पांच सितारा संस्कृति में खुद कहां झुकने को तैयार हैं?