2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी का निर्वाचन क्षेत्र बनने से इसका राजनीतिक महत्व और बढ़ गया। अब 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अशोक की राजधानी पाटलीपुत्र से राजनीतिक रथ लेकर नीतीश कुमार आज काशी के मैदान में अपना झंडा गाड़ने पहुंच गए हैं। वाराणसी आजादी के बाद कांग्रेस के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, समाजवादी पार्टियों और वामपंथी विचारों से जुड़े युवाओं की राजनीतिक जागरुकता का बड़ा केंद्र रहा है। विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से विभिन्न दलों के नेता इसी क्षेत्र में मैदानी लड़ाई लड़ते हुए शीर्ष पदों पर पहुंचे। इलाहाबाद-वाराणसी से निकलने वाली राजनीतिक लहर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को केंद्र में सत्ता दिलाती रही है। देश के सबसे बड़े चुनावी इलाके उत्तर प्रदेश और बिहार हैं। दो राज्यों में किसी पक्ष में लहर चलने पर शीर्ष नेता को भारत के सिंहासन की दावेदारी करने वाली शक्ति मिल जाती है। इस दृष्टि से बिहार में सफलता के बाद नीतीश कुमार ने स्वयं किसी दावेदारी के बिना वाराणसी क्षेत्र में राजनीतिक रैली आयोजित की। बिहार में मद्य निषेध कानून लागू करने के बाद वह उ.प्र. में भी महिलाओं के व्यापक समर्थन के लिए इस नीति को चुनौती के रूप में सामने रख सकते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में पहले मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी ने जनता दल (यू) का साथ देने की घोषणा की और कुछ दिन बाद पलट गई। इसलिए समान विचारों के बावजूद फिलहाल नीतीश उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन समतल करने पहुंच गए हैं। यों जद (यू) के प्रमुख नेता शरद यादव बिहार से पहले उत्तर प्रदेश में एक चुनाव जीत चुके थे। शरद यादव मूलतः 1974 में म.प्र. से चुनावी विजय के बाद राष्ट्रीय राजनीति में आए थे। कांग्रेस पार्टी फिलहाल मजबूरी में नीतीश के साथ है, लेकिन 2019 के चुनाव में इस गठबंधन का रूप तय होने में थोड़ा समय लगेगा।
चर्चाः कुरुक्षेत्र नहीं काशी के रास्ते रथ | आलोक मेहता
युग बदल गया है। अब कुरुक्षेत्र में सत्ता के लिए आमने-सामने संघर्ष नहीं होता। सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा ने भारतीय जनता पार्टी को पहली बार सत्ता दिलाई। सोमनाथ की तरह काशी (बनारस-वाराणसी) भी आजादी के बाद राजनीतिक सत्ता संघर्ष का एक बड़ा केंद्र रहा है।
अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप
गूगल प्ले स्टोर या
एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement