सामान्यतः मंत्रिमंडल की संयुक्त जिम्मेदारी होती है। सरकार के निर्णय किसी एक मंत्रालय के नहीं संयुक्त फैसले की तरह होते हैं। वित्त मंत्रालय ने भविष्य निधि डिपाजिट पर 8.7 प्रतिशत ब्याज दर की अनुमति दी है जबकि भविष्य निधि विभाग को गरीबों की पूंजी लगाने पर गत वित्तीय वर्ष में 8.95 प्रतिशत रिटर्न मिलने का अनुमान है। मजेदार बात यह है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने भी सरकारी फैसले का विरोध किया है। श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय की पृष्ठभूमि भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की है। इसके बावजूद वित्त मंत्रालय में उनकी सुनवाई नहीं हो रही है।
सरकार ने राष्ट्रीयकृत बैंकों के अलावा छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरें पहले से ही कम कर दी हैं। सरकार दस करोड़ नए बैंक खाते खुलवाकर सरकारी खजाने को भर चुकी है और इसमें लगातार बढ़ोतरी होगी, क्योंकि गरीब खाताधारकों को तो हर साल पैसा जमा ही करना है। बीस वर्ष बाद उसको कुछ राशि वापस मिलेगी। सरकार की अधिकांश नई योजनाएं सामान्य जनता की जेब से कुछ निकालने वाली हैं। सर्विस टैक्स हर क्षेत्र में बढ़ा दिया गया है। पेशेवर लोगों के लिए सर्विस टैक्स के बाद फिर आयकर नियमों के तहत आमदनी का 50 प्रतिशत सरकार वसूलना चाहती है।
रेल किराये में बढ़ोतरी नहीं की गई, लेकिन हर छोटी सुविधा के नाम पर रेल यात्रियों से चार गुना अधिक कमाई का इंतजाम कर लिया गया है। गंदगी के अंबार बढ़ रहे हैं, लेकिन स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर भी सामान्य जनता से कुछ वसूली हो रही है। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के बजाय लाखों लोगों को स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में पैसा जमा कराने के लिए कहा जा रहा है। डिजिटल इंडिया के नारे के बाद डाकघरों की जिम्मेदारी बढ़ गई है, लेकिन दिल्ली से चेन्नई तक तीन-तीन दिन सर्वर खराब पड़े रहते हैं। डाक घर से पेंशन लाने वाले भी भटकते रहते हैं। मतलब सरकार को शायद पता नहीं है कि जो दावा किया जाता है, निर्णय और परिणाम उसके विपरीत हैं।