Advertisement

चर्चाः राजधानी में दादागिरी | आलोक मेहता

दिल्ली सचमुच निराली है। दुनिया के किसी देश की राजधानी में नेता, अधिकारी, पुलिस, टैक्सी-ऑटो-बस चालक और ढाबा चलाने वाले ऐसी दादागिरी नहीं करते। यहां मुख्यमंत्री केजरीवाल स्वयं मनमाने ढंग से आदेश जारी करते हैं और डेढ़ करोड़ जनता की इच्छा बता देते हैं। सीधे प्रधानमंत्री को चुनौती देते रहते हैं और प्रचार पर पांच सौ करोड़ रुपये खर्च कर देते हैं।
चर्चाः राजधानी में दादागिरी | आलोक मेहता

अधिकांश अधिकारी-बाबू दिल्ली या केंद्र की सरकार में फाइलें अपनी मर्जी से आगे बढ़ाते या लटकाते हैं। केंद्र में किसी की सरकार हो, पुलिस का रवैया नियम-कानून से अधिक अपनी मर्जी से चलने का रहता है। अपराधियों से निपटने में पुलिस संसाधनों की कमी बता सकती है, लेकिन कनॉट प्लेस जैसे इलाके में ड्रग्स के धंधे से जुड़े भिखारियों पर कठोर कार्रवाई नहीं कर पाती। नाम मात्र के चलान होते हैं, लेकिन बड़ी संख्या में ऑटो, टैक्सी वाले लोगों से मनमाना किराया वसूलते हैं। ऑड ईवन फार्मूला हो या न हो, ऑटो-टैक्सी नियम-कानून तोड़ती रहती है।

ताजा मामला सुप्रीम कोर्ट के आदेश का है। सुप्रीम कोर्ट ने डीजल टैक्सियों पर रोक के लिए वर्षों की सुनवाई के बाद प्रतिबंध का आदेश दिया। फिर गाड़ियों को डीजल के बजाय सीएनजी से चलाने की व्यवस्‍था के लिए तीन-चार महीने छूट दी और अंतिम अवधि 30 अप्रैल खत्म हो गई। कोर्ट ने सबको फटकार लगा दी तो डीजल टैक्सी वाले आंदोलन-रास्ता बंद के साथ विरोध में खड़े हो गए। केजरीवाल सरकार यों प्रदूषण मुक्ति का राग अलापती रही, लेकिन इस मुद्दे पर दया भाव दिखा रही है। यदि इतनी ही दया है तो आधे सच्चे-झूठे प्रचार की राशि का बड़ा हिस्सा डीजल टैक्सियों को सीएनजी से चलाने में मदद कर देती।

सड़क हो या मकान- अवैध निर्माण कार्य और गंदगी में कोई कमी नहीं हुई। मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान को दिल्ली में सर्वाधिक विफल कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री निवास कार्यालय और संसद से सटे दस किलोमीटर के क्षेत्र में जगह-जगह गंदगी के अंबार देखे जा सकते हैं। दुनिया के पांच-सात बड़े देशों की श्रेणी में होने के दावे के बावजूद राजधानी कब तक अपराधों और गंदगी के लिए बदनाम होती रहेगी?

Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad