वह बताती है कि जब वह अपने गुप्तांगों में पत्थर डाल देने वाली दर्द के बारे में सोचती है तो गुस्से से पागल हो जाती है। मासूमियत से पूछती है ‘आप बताएं क्या आसान है गुप्तांगों में पत्थर डाल देना, सोचो कितना दर्द हुआ होगा मुझे, मैं कितना चिल्लाई, किसी ने नहीं सुनी। महीनों मैं जेल में टांगे फैला कर चलती रही।‘ सोनी हर उस ग्रामीण की आवाज बनना चाहती है जिसके साथ अन्याय हुआ है। उसके अनुसार यही उसका खाकी और सरकार से इंतकाम होगा।
कौन है सोनी सोरी
सोनी सोरी को पांच अक्तूबर 2011 को क्राइम ब्रांच और छत्तीसगढ़ पुलिस के संयुक्त अभियान में दिल्ली से गिरफ्तार किया था। वह छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका थीं। सोरी पर माओवादियों को मदद पहुंचाने का आरोप था। वर्ष 2014 में वह रिहा हुई। थाने में सोनी के साथ गुप्तांगों में पत्थर डाल देने वाली घटना घटी थी।
बस्तर छोड़ने को मजबूर किया जा रहा है।
बीते लोकसभा चुनावों में सोनी सोरी ने आम आदमी पार्टी की टिकट से चुनाव भी लड़ा। उसे 19,000 वोट मिले। इन दिनों वह गांव-गांव में सभाएं कर रही है। फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए लोगों को परिवारों के घरों में जाती है। लोग उसे सुन रहे हैं। उसकी सभाओं में बढ़ रही भीड़ से सरकार के माथे चिंता की लकीरें हैं। यही वजह है कि इन दिनों गीदम में रह रही सोनी सोरी को सरकार ने नोटिस देकर बोल दिया है कि वह वहां नहीं रह सकती। सोनी बताती है कि उसे मिले सरकारी नोटिस में लिखा है कि मकान के जिस हिस्से में वह रहती है उसका कोई चालान जमा करवाना है। यही नहीं सोनी के अनुसार ‘वह मकान मेरे नाम नहीं है। मेरे ससुर का है। उसी मकान में ससुराल के और लोग भी रहते हैं लेकिन उन्हें नोटिस नहीं आया है।’ दरअसल, हाल ही में गीदम में कुछ व्यापारियों की पुलिस से झड़प हुई। पुलिस ने स्थानीय व्यापारियों को भड़काया कि सोनी सोरी नक्सलियों को व्यापारियों की जानकारी और फोन नंबर मुहैया करवाती है। इससे भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता और कुछ व्यापारियों ने सोनी सोरी के घर के सामने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। अब सरकार का कहना है कि सोनी सोरी के बस्तर में रहते शांति बहाल नहीं हो सकती।
नक्सली होने के आरोप में एनकाउंटर
सोनी सोरी के अनुसार सरकार का आरोप है कि वह गांवों में नक्सलियों से मिलने जाती है। जबकि वह उन परिवारों से मिलने जाती है जिनके घर के लोगों को पुलिस फर्जी मुठभेड़ों में मारा है। सोनी सोरी कहती हैं, ‘मैं वहां इसलिए भी जाती हूं कि उनके घरों में न तो कांग्रेसी आते हैं और न ही भाजपा के नेता। सरकार सीधे तौर पर यह चाहती है कि मैं गांवों में न जाऊं।‘ सोनी का कहना है कि मैं चाहती हूं कि नक्सली इलाकों के बंद पड़े स्कूल खुलें। बच्चे स्कूल जाएं। लोग आराम से खेती करें। अभी लोग छुप-छुप कर रहते हैं। बाजार नहीं जाते, अस्पताल नहीं जाते ताकि उन्हें गिरफ्तार न कर लिया जाए। सोनी के अनुसार अब भी दंतेवाड़ा में नक्सली होने के आरोप में ग्रामीणों को फर्जी मुठभेड़ों में मारा जा रहा है।
जमीन की लड़ाई है
सोनी सोरी का कहना है कि वह अपनी लड़ाई नहीं छोड़ेंगीं। लड़ना छोड़ देंगी तो सरकार सब कुछ ले लेगी। उनके अनुसार यह लड़ाई नक्सल विचारधारा की नहीं है, नक्सली विचारधारा होती तो अब तक खत्म हो चुकी होती लड़ाई तो यह जमीन की है। जबकि आदिवासी अपनी जमीन, भोजन और पानी के बिना नहीं रह सकता है, जो अब उससे छीनी जा रही है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ की जेलें आदिवासियों से भरी हुई हैं।