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कोयला निगल सकता है भारत के जल स्रोतः ग्रीनपीस इंडिया

एक तरफ भारत में लगातार सूखे की खबर सूर्खियों में है तो दूसरी तरफ ग्रीनपीस को मिली जानकारी के अनुसार भारत सरकार उन नीतियों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है, जिन्हें देश के प्राचीन जंगलों, वन्यजीव और जल स्रोतों को बचाने के लिये बनाया गया है।
कोयला निगल सकता है भारत के जल स्रोतः ग्रीनपीस इंडिया

हाइड्रोलॉजिकल मापदंडों के आधार पर वर्तमान और भविष्य में नीलामी के लिये चिन्हित 825 कोयला ब्लॉकों में 417 ब्लॉक अक्षत श्रेणी में आते हैं। ग्रीनपीस इंडिया को यह चौंकाने वाली जानकारी पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से आरटीआई के जवाब में मिला है। पिछले साल, भारतीय वन सर्वेक्षण ने अक्षत वन क्षेत्रों की पहचान के लिये बने मापदंडों के आधार पर825 कोयला ब्लॉक का मूल्यांकन किया था। हाइड्रोलॉजिकल मानदंडों को अपनाने के लिये पर्यावरण मंत्रालय ने सुझाव दिया था कि  कोयला ब्लॉक की सीमा चिन्हित करते वक्त नदियों या धाराओं के दोनों तरफ 250 मीटर के दायरे को इसमें शामिल किया जाये। इस मानदंड के आधार पर, आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार लगभग 50.5 प्रतिशत कोयला ब्लॉक आंशिक रूप से अक्षत श्रेणी में आता है।

ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेनर नंदिकेश शिवालिंगम कहते हैं, “अक्षत श्रेणी को चिन्हित करने की योजना पर लगभग चार वर्षों से काम चल रहा है लेकिन पर्यावरण मंत्रालय इस नीति से लगातार अपना पैर खींच रही है जबकि कोयला मंत्रालय महत्वपूर्ण वन-क्षेत्रों में कोयला ब्लॉक का आंवटन करती जा रही है। पर्यावरण मंत्रालय की चुप्पी से सरकार की कोयला आधारित ऊर्जी नीति को हरी झंडी मिल गयी है। वस्तुतः, यह एक तरह से कोयला के लिये लालच ने हर चीज को पीछे छोड़ दिया है, जिसमें कोयला खनन से खत्म होने वाले संवेदनशील वन क्षेत्र और देश के सूखा प्रभावित भूभाग का महत्वपूर्ण जल-स्रोत भी शामिल हैं।

नंदिकेश का कहना है, “यहां तक कि नदी के किनारे के 250 मीटर के आगे भी जंगल में खनन होने से जलग्रहण पर बुरा प्रभाव पड़ता है और जल प्रदूषण, कटाव और शुष्क मौसम में पानी की कमी जैसी समस्याएँ पैदा होने लगती है।” नंदिकेश आगे बताते हैं कि अगर नदी घाटियों की सभी धाराओं पर विचार किया जायेगा तो मध्य भारत में जल स्रोत पर इसका बहुत असर होगा। 

आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार, हाइड्रोलॉजिकल मानदंडों के अलावा फिलहाल 49 कोयला ब्लॉक को अक्षत सूची में रखा गया है, जो लगभग 1271.43 वर्ग किमी क्षेत्र को आच्छादित करते हैं। इन्हें चार मानदंडों वन क्षेत्र, वन प्रकार, जैवविविधता और परिदृश्य अखंडता के आधार पर तय किया गया है।

हांलाकि रिपोर्ट बताते हैं कि सरकार ने आंशिक रूप से अक्षत नीति पर काम करना शुरू कर दिया है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे कैसे सूची में कोयला ब्लॉक को शामिल कर रहे हैं या फिर कैसे सूची से बाहर निकाल रहे हैं। दूसरी तरफ सरकार अक्षत सूची में शामिल कोयला ब्लॉक को नीलाम भी कर चुकी है। नंदिकेश कहते हैं, “यह सिर्फ जंगल का मामला नहीं है, यह स्पष्ट है कि इससे मध्य भारत में जल स्रोतों पर गंभीर असर होगा। सबसे चिंता की बात यह है कि पर्यावरण मंत्रालय देश के सबसे प्राचीन प्राकृतिक वन क्षेत्र को बचाने के लिये गंभीर नहीं है।”

वर्तमान अक्षत क्षेत्र के बारे में सार्वजनिक रूप से सूचना नहीं होने की वजह से जंगल और जल स्रोत पर खतरा मंडरा रहा है। जैवविविधता से भरे जमीन और जंगल जिन्हें बचाना जाना चाहिए था, उसे भी खनन के लिये आवंटित कर दिया गया। ग्रीनपीस इंडिया मांग करता है कि पर्यावरण मंत्रालय संबंधित पक्षों के लिये अक्षत कोयला ब्लॉकों की सूची को सार्वजनिक करे, जिससे वे इसे अंतिम रूप देने से पहले अपनी राय रख सकें। साथ ही, अक्षत मानदंडों को समय सीमा तय करके अंतिम रूप दिया जाये।

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