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कोरोना पर स्पेशल: महामारी से बढ़ी लाचारी, महामंदी की ओर बढ़ती दुनिया

“कोरोना के आगे विकसित देश भी लाचार, भारत रोकथाम से चूका तो जिंदगियों और खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिए...
कोरोना पर स्पेशल: महामारी से बढ़ी लाचारी, महामंदी की ओर बढ़ती दुनिया

“कोरोना के आगे विकसित देश भी लाचार, भारत रोकथाम से चूका तो जिंदगियों और खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिए भारी खतरा”

महामारी का कहर कैसे बरपा होता है और एक झटके में हजारों जिंदगियां तथा देश-समाज कैसे तबाह हो जाते हैं, 21वीं शताब्दी में दुनिया के ज्यादातर लोगों ने इसका जिक्र कहानियों में ही सुना होगा। लेकिन कोरोना वायरस ने उन कहानियों और उसके खौफ को फिर से लोगों में बसा दिया है। खौफ का साया पूरी दुनिया में है और अत्याधुनिक स्वास्थ्य  तंत्र का दावा करने वाले विकसित यूरोपीय देशों के हाथों के तोते उड़ गए हैं। ऐसे में, भारत जैसे विकासशील देश का क्या हाल हो सकता है, यह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं। करीब ढाई महीने से दुनिया में तेजी से पैर पसारता कोरोना वायरस अब तक (17 मार्च) 7,529 से ज्यादा जान ले चुका है, 159 देशों के 1.84 लाख लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं। कोरोना से जान जा रही है, उद्योग-धंधे ठप हो रहे हैं। अंकटाड की रिपोर्ट के अनुसार "अगर कोरोना का कहर ऐसे ही जारी रहा तो 2020 में दुनिया की कमाई (ग्लोबल इनकम) में 2 लाख करोड़ डॉलर की कमी आ सकती है।" ऐसा अनुमान है कि भारत की जीडीपी में एक फीसदी कमी आएगी।। शुरुआती झटके से सिर्फ पर्यटन क्षेत्र में दुनिया भर में पांच करोड़ नौकरियां जा सकती हैं। तो, महामारी कोरोना अब दुनिया को महामंदी की ओर ले जा रही है।

चीन, अमेरिका, इटली, स्पेन, ईरान, फ्रांस, सऊदी अरब और भारत सहित दुनिया के 159 देश इसकी चपेट में हैं। और हर दिन नए देश तबाही की इस फेहरिश्त में शुमार होते जा रहे हैं। 26 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान में कोरोना वायरस का कहर शुरू हुआ और तेजी से दुनिया में फैला। यह आम आदमी और रसूखदारों और ताकतवरों को एक समान शिकार बना रहा है। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय को लंदन के बकिंघम पैलेस से शिफ्ट कर दिया गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी टेस्ट कराना पड़ा है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो की पत्नी सूफी जॉर्जया ट्रुडो और स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज की पत्नी बेगोना गोमेज और बिट्रेन के मशहूर एक्टर इदरिस एल्बा भी वायरस से पीड़ित हो गए। चीन के बाद कोरोना संक्रमण से इटली, ईरान, कोरिया और स्पेन सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। भारत में अभी यह स्टेज-2 में बताया जाता है। स्टेज-3 ज्यादा खतरनाक है जिसके महीने भर बाद फैलने की आशंका है। यानी चीन, इटली, ईरान, स्पेन जैसे देशों के मुकाबले भारत अभी सुरक्षित स्थिति में है। आइसीएमआर के अनुसार भारत के पास अगले 30 दिनों में कोरोना को नियंत्रित करने का अच्छा मौका है क्योंकि यह अभी बड़े पैमाने पर नहीं फैल रहा है। लिहाजा, चाक-चौबंद तैयारी से इसे रोका जा सकता है। भारत में अब तक (18 मार्च) 148 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और तीन लोगों की मौत हो गई है। 13 लोग संक्रमण से बाहर हो चुके हैं। देश में सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले महाराष्‍ट्र और केरल में हैं। महाराष्‍ट्र में 41 लोग संक्रमित हैं तो केरल में 27 लोग संक्रमित हैं। इसका खौफ राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में दिखने लगा है। दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव की सड़कें, बसें, मेट्रो खाली-खाली दिखने लगी हैं। मुंबई में भी यही हालात हैं। मॉल, स्कूल-कॉलेज, विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए हैं। कंपनियां अपने कर्मचारियों को घर से काम करने की छूट और इंतजाम मुहैया करा रही हैं। देश के प्रमुख तीर्थस्थल महाकाल से लेकर, तिरुपति, शिर्डी, सिद्धिविनायक, वैष्णो देवी हर जगह दर्शन पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए हैं।

कोरोना वायरस का प्रसार भी भयानक है। पहले तो यह इक्का-दुक्का लोगों में दिखता है लेकिन फिर दो से तीन हफ्ते में यह जंगल की आग की तरफ फैलता है। इसकी गवाही दुनिया भर में हर रोज बढ़ते आंकड़े खुद-ब-खुद दे रहे हैं। चीन में अब तक 81,000, इटली में 21,157 , ईरान में 22,000 कोरिया में 8,162, स्पेन में 5,753 और अमेरिका में 1,657 लोग संक्रमित हैं। इससे साफ है कि कई देशों ने समय रहते इसकी आहट को नजरअंदाज कर दिया। इस कारण मौत का आंकड़ा बड़ी तेजी से बढ़ा है। अकेले इटली में 15 मार्च को 368 लोगों की मौत हो गई। डर का आलम यह है कि इटली, कोरिया, चीन में तो पूरी तरह से लॉकडाउन है। अमेरिका में हेल्थ इमरजेंसी लगा दी गई है। बढ़ते मामलों को देखते हुए 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे महामारी घोषित कर दिया है। भारत में इसे 14 मार्च को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर दक्षेस देशों के प्रमुखों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए साझा रणनीति बनाने की पहल की है। भारत ने इसके लिए आपातकालीन फंड बनाने का प्रस्ताव पेश किया है। इसके तहत भारत ने शुरुआती तौर पर एक करोड़ डॉलर की रकम देने की बात भी कही है। निमोनिया की तरह दिखने वाली इस बीमारी के लिए हम कितने तैयार हैं? इस पर मेदांता हार्ट इंस्टीट्‍यूट के चेयरमैन डॉ. नरेश त्रेहन का कहना है, “भारत जैसे देश के लिए एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस एक गंभीर समस्या है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक देश में केवल 23,582 सरकारी अस्पताल हैं जिनमें 7,10,761 बेड हैं। इसके अलावा महज 2,900 ब्लड बैंक हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत की 70 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। लिहाजा आबादी और कोरोना वायरस की गंभीरता को देखें तो इन क्षेत्रों मे यदि यह फैलता है तो नियंत्रण करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।”

महामारी से निपटने के मामले में भारत का पिछला रिकॉर्ड बहुत उम्मीद नहीं जगाता। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक एक्यूट रेस्पिरेटरी इंफेक्शन (एआरआइ) की वजह से 2018 में कुल 3,740 लोगों की मौत हो गई। इन्फ्लूएंजा  एच1एन1 यानी स्वाइन फ्लू की वजह से 2012 से 2018 के बीच करीब 7,950 लोगों की मौत हुई। इन परि‌िस्थतियों के मद्देनजर हम कितने तैयार हैं? स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, “13 मार्च तक 11,71,061 यात्रियों की स्क्रीनिंग देश के 30 एयरपोर्ट्स से की गई है। इसमें 3,062 यात्रियों और 583 दूसरे संबंधित लोगों में कोविड-19 के लक्षणों को देखते हुए अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती किया गया है। जबकि 42,296 यात्रियों को सामुदायिक निगरानी में रखा गया। इसके अलावा 25,504 यात्रियों की बंदरगाहों पर स्क्रीनिंग की गई है। इसी तरह करीब 14 लाख लोगों की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्क्रीनिंग की गई है। कोरोना वायरस की जांच के लिए इस समय एक लाख किट का इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि 10 लाख किट्स का ऑर्डर दिया गया है।” आबादी के अनुपात में जांच सुविधाओं की कमी पर स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है, “सरकार पूरी तरह तैयार है। किसी भी स्थिति में घबराने की जरूरत नहीं है। संसाधनों की कमी नहीं आएगी। सरकार ने इस समय देश भर में 52 टेस्टिंग लैब कोरोना जांच के लिए बनाई हैं। जबकि 57 लैब सैंपल कलेक्शन का काम कर रही हैं।” बढ़ते मामलों को देखते हुए आइसीएमआर 52 टेस्टिंग लैब की संख्या बढ़ाकर 71 करने जा रहा है। 

कोरोना वायरस को रोकने के लिए उसका टीका विकसित करने में कितना समय लगेगा? इस पर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के एपिडेमियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. आर.आर. गंगाखेडकर कहते हैं, “कोरोना वायरस की सबसे बड़ी समस्या उसका आइसोलेशन करना है। अच्छी बात यह है कि पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्‍यूट ऑफ वायरोलॉजी ने 11 कोरोना वायरस को आइसोलेट करने में सफलता प्राप्‍त कर ली है। रिसर्च को बढ़ाने के लिए यह चरण सबसे अहम है। हम कितनी भी तेजी से काम करें, टीका विकसित होने में डेढ़ से दो साल का समय लगेगा।”

भारत के लिए अच्छी बात यह है कि चीन, इटली और अमेरिका की तुलना में संक्रमण और मृत्यु दर के मामले यहां बेहद कम हैं। अभी तक भारत में प्रति 10 लाख आबादी में 0.1 लोग संक्रमित हैं। जबकि इटली में यह आंकड़ा 250, चीन में 50 और अमेरिका में पांच है। भारत में अभी तक जहां तीन लोगों की मौत हुई है, वहीं चीन में 3237, इटली में 2503, ईरान में 958 मौतें हुई हैं।

सरकार की तैयारियां पूरी होने पर सवाल उठाते हुए सर गंगा राम अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. धीरेन गुप्‍ता कहते हैं, “चीन जैसी क्षमता वाला देश भी कोरोना की वजह से परेशान हो गया। उसने 10 दिन में हॉस्पिटल तैयार कर लिया। लेकिन, हमारे यहां 10 साल में कोई इस तरह का प्रोजेक्ट तैयार नहीं हो पाता। अगर देश में मामला चीन जैसा होता है तो हम उसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। वायरस की फितरत को देखते हुए सरकार को हर जिले में हजार बेड का आइसोलेशन केयर तुरंत बनाना चाहिए।”

संकट से निपटने की क्या है तैयारी

पूरी दुनिया को गिरफ्त में ले चुके कोरोना वायरस से निपटने के लिए शहरों में पूरी तरह से लॉक डाउन के साथ-साथ सड़कों, रिहाइशी इलाकों, इमारतों, मेट्रो, ट्रेनों में फॉगिंग का काम शुरू हो गया है। भारत में इसके अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित दूसरे प्रमुख राज्यों में स्कूल से लेकर मॉल, मल्टी प्लेक्स आदि को 2 अप्रैल तक शहरों के आधार पर बंद कर दिया गया है। इसके साथ ही दुनिया में यात्राओं पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। मसलन भारत ने 15 अप्रैल तक विदेश से आने वाले यात्रियों के ट्रैवल वीजा निलंबित कर दिए हैं। इसी तरह अमेरिका ने यूरोप के 26 देशों में यात्रा को प्रतिबंधित कर दिया है। इसके अलावा अमेरिका ने 50 अरब डॉलर, चीन ने 16 अरब डॉलर, ब्रिटेन ने 15 अरब डॉलर, यूरोपियन यूनियन ने 25 अरब डॉलर का कोष बनाया है।

चीन का अनुभव कितना कारगर

कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा कहर चीन पर बरपा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 23 जनवरी को वहां पर 574 लोगों की मौत हुई थी, जो कि 13 फरवरी को बढ़कर 1520 पर पहुंच गई। लेकिन उसके बाद से चीन में यह आंकड़ा कम होने लगा। 7 मार्च के बाद (खबर लिखे जाने तक) मौत के मामले कम हो गए हैं। ऐसा कैसे हुआ, इस पर चीन की सख्ती सबसे बड़ा कदम है। उसने संक्रमण रोकने के लिए पूरी तरह से शहरों को लॉक डाउन कर दिया। कंपनियों को बंद कर दिया। इस मामले में नवीन हॉस्पिटल के पल्मोलॉजिस्ट डॉ प्रशांत राज गुप्‍ता का कहना है, “कोरोना एक संक्रमणकारी बीमारी है। ऐसे में इसका विस्तार बहुत तेजी से होता है। लेकिन एक समय के बाद प्रतिरोधक क्षमता भी विक‌सित होती है। भारत में अभी हम स्टेज-2 में हैं, तो इसे रोकना संभव है।” हालांकि चीन की यह सख्ती अर्थव्यवस्था पर नया सकंट खड़ा कर रही है। न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख के अनुसार चीन ने जो तरीका अपनाया है, उसका खामियाजा पूरी दुनिया को उठाना पड़ेगा।

आर्थिक मंदी का साया

द आर्गेनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओइसीडी) ने मंदी के संकट की ओर इशारा कर दिया है। उसके अनुसार 2020-21 में कोरोना वायरस के असर की वजह से ग्रोथ रेट 2.9 फीसदी से कम होकर 2.4 फीसदी रहेगी।

असल में जिस तरह से कोरोना वायरस के आउटब्रेक से दुनिया भर में शट डाउन किया गया है, उसका असर आर्थिक गतिविधियों पर पड़ा है। फरवरी में अमेरिका, चीन, जापान में मैन्युफैक्चरिंग घटी है। चीन की मैन्युफैक्चरिंग फरवरी में 40.3 की रिकॉर्ड गिरावट स्तर पर आ गई है। इसी तरह सर्विस सेक्टर गतिविधियों में भी बड़ी गिरावट देखी गई है। चीन में तो यह 26.5 के स्तर पर आ चुकी है। इस गहराते संकट का इशारा अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टालीना जार्जिएवा ने भी यह कह कर, कर दिया है कि गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर कौशिक बसु का कहना है “यह संकट सामान्य नहीं है। अगर कोई यह सोचता है कि 2008 जैसी परिस्थितियां हैं तो बिल्कुल भी वैसा नहीं है। कोविड-19 के संकट ने पूरी दुनिया में बिजनेस के माहौल को बिगाड़ दिया है। अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत व्यापक असर पड़ेगा।”

अर्थशा‌िस्‍त्रयों के डर को अंकटाड की रिपोर्ट बयां करती है। उसके अनुसार चीन की वैश्विक अर्थव्यवस्था में भागीदारी बढ़ती गई है। इस समय मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में 20 फीसदी इंटरमीडिएट प्रोडक्ट चीन में बनते हैं। ऐसे में अगर कोरोना का खतरा लंबा खिंचता है तो यूरोपीय यूनियन की मशीनरी, ऑटोमेटिव, केमिकल इंडस्ट्री पर असर होगा। इसी तरह अमेरिका, जापान, ताइवान, विएतनाम, दक्षिण कोरिया, भारत, यूनाइटेड किंगडम सहित दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर भी नकारात्मक असर होगा।

5 करोड़ नौकरियों पर खतरा

कोरोना वायरस का सबसे पहला असर पर्यटन इंडस्ट्री पर हुआ है। क्योंकि दुनिया भर के देशों में यात्राओं पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। इसकी वजह से दुनिया भर में 5 करोड़ नौकरियों पर खतरा मंडराने लगा है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज्म काउंसिल ग्रुप ने कहा है “सैकड़ों प्लेन और दर्जनों क्रूज इस समय खड़े हुए हैं। इसकी वजह से 2020 में 25 फीसदी यात्राओं पर असर होगा। इस वजह से 16 फीसदी नौकरियों पर खतरा है।” अकेले भारत में टूरिज्म इंडस्ट्री के बिजनेस में 60-65 फीसदी कमी आने की आशंका है। सीआइआइ की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 तक 28 अरब डॉलर रेवेन्यू की उम्मीद थी। लेकिन अब इसमें बड़ी गिरावट की आशंका है। करीब 80 फीसदी बुकिंग के कैंसिल होने की आशंका है।

एसबीआइ के चीफ इकोनॉमिस्ट सौम्यकांति घोष द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार सार्स-2003 की वजह से दुनिया भर में 40 अरब डॉलर का बिजनेस प्रभावित हुआ था। लेकिन कोविड-19 इससे कहीं ज्यादा प्रभाव डालने वाला है। अकेले इसको रोकने के लिए करीब 46 अरब डॉलर खर्च किए जा रहे हैं। समझा जा सकता है कि दुनिया को इससे कितना बड़ा नुकसान होने वाला है। इसका भारत के रबर, प्लास्टिक, कोक, पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, एयरलाइन इंडस्ट्री, मेटल सेक्टर, कंस्ट्रक्शन पर नकारात्मक असर होने वाला है। जबकि टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग गुड्स, सिरेमिक्स, फर्नीचर इंडस्ट्री के लिए मौका भुनाने का अवसर है।

अमेरिका, यूरोप, चीन भारत के निर्यातकों के लिए सबसे बड़े बाजार हैं। लेकिन अनिश्चितता की वजह से निर्यातकों के बिजनेस पर काफी बुरा असर हुआ है। इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन, रवि सहगल के अनुसार मार्केट में बिजनेस ठप हो गया है। सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हुई है। जो सामान कार्गो में है, वह भी नहीं पहुंच रहा है। वेयर हाउसेज पर दबाव बढ़ गया है। इन परिस्थतियों में छोटे और मझोले उद्योगों को वित्तीय सपोर्ट की जरूरत है।

दवाओं के दाम बढ़े

चीन से एक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडिएंट (एपीआई) आपूर्ति के कोरोना वायरस के चलते ठप होने से कई दवाओं के उत्पादन के लिए एपीआई का संकट खड़ा हो गया है। घरेलू बाजार में कई एपीआई के दाम 40 फीसदी तक बढ़ने से ब्लड प्रेशर, मधुमेह जैसी बीमारियों के इलाज की दवाओं के दाम न केवल 25 फीसदी तक बढ़ गए हैं बल्कि इन दवाओं की किल्लत होने की आशंका है। हिमाचल प्रदेश करीब 45 फीसदी दवाओं के उत्पादन में हिस्सेदारी रखने वाला राज्य है। वहां के दवा निर्माता संघ के सलाहकार एवं दवा निर्माता एस.एल सिंगला के मुताबिक फार्मा इंडस्ट्री के लिए जरूरी कई एपीआई में से पैरासिटामॉल की कीमत ही करीब 300 रुपए प्रति किलो बढ़ गई है जबकि निमेसुलाइड की कीमत दोगुने से भी अधिक हो गई है। जनवरी के पहले हफ्ते पैरासिटामॉल की कीमत 270 रु. किलो थे जो मार्च में 600 रुपये के पार है।

डायरक्टरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (डीजीएफटी) के मुताबिक, पेरासिटामॉल, टिनिडैजॉल, मेट्रोनिडेक्जॉल, विटामिन बी1, बी12, हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन और क्रोमाफेनिकॉल से बने फॉर्मुलेशंस आदि के निर्यात पर रोक लगा दी गई है और उन महत्वपूर्ण और जरूरी दवाओं की पहचान भी की गई है, जिनका स्टॉक खत्म हो सकता है।

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मंदी का साया

. अंकटाड के अनुसार 2 लाख करोड़ डॉलर घटेगी दुनिया की इनकम

. यूरोपीय यूनियन को 15.6 अरब डॉलर, अमेरिका को 5.8 अरब डॉलर, जापान को 5.2 अरब डॉलर,  दक्षिण कोरिया को 3.8 अरब डॉलर, ताइवान को 2.6 अरब डॉलर, तो विएतनाम को 2.3 अरब डॉलर का नुकसान होने की आशंका है।

. सबसे ज्यादा असर, ट्रैवल, मशीनरी, ऑटोमोटिव, टूल्स, कम्युनिकेशन उपकरण, मेटल इंडस्ट्री पर होगा।

. ओइसीडी के अनुसार दुनिया के ग्रोथ रेट में 0.5 फीसदी की कमी आएगी। 2020 में ग्रोथ रेट घटकर 2.4 फीसदी रह जाएगी। इसी तरह अमेरिका की ग्रोथ रेट 2 फीसदी के नीचे आ जाएगी। चीन की ग्रोथ रेट 0.9 फीसदी गिरेगी।

. भारत की ग्रोथ रेट 1.1 फीसदी गिरेगी। अब यह 5.1 फीसदी पर रहने की आशंका

. दुनिया की ट्रैवल इंडस्ट्री में 5 करोड़ नौकरियों पर खतरा

. चीन में शटडाउन से सप्लाई चेन हुई ठप, वह दुनिया की मैन्युफैक्चरिंग में इस्तेमाल होने वाला 20 फीसदी इंटरमीडिएट प्रोडक्ट बनाता है।

. भारत में केमिकल सेक्टर को 12.9 करोड़ डॉलर, टेक्सटाइल और अपैरल सेक्टर को 6.4 करोड़ डॉलर, ऑटोमोटिव सेक्टर को 3.4 करोड़ डॉलर, इलेक्ट्रिकल मशीनरी को 1.2 करोड़ डॉलर और चमड़ा उत्पादों को 1.3 करोड़ डॉलर का नुकसान होने की आशंका है।

. चीन से दवाओं के इस्तेमाल में होने वाले एपीआइ की आपूर्ति ठप हो गई है। इसकी वजह से ब्लड प्रेशर, मधुमेह, हृदय रोग से संबंधित दवाओं के दाम 25 फीसदी तक बढ़ गए हैं। यहीं नहीं, अगर संकट लंबा ख‌िंचता है तो दवाओं की आपूर्ति भी रुक सकती है।

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इंटरव्यू/ प्रो. रणदीप गुलेरिया

घबराएं नहीं, सतर्क रहें

कोरोना वायरस अब भारत में भी पैर पसार चुका है। करीब 130 करोड़ आबादी को इस खतरे से बचाने के लिए क्या तैयारियां हो रही हैं, इससे बचने के लिए क्या करना जरूरी है, साथ ही आगे की क्या रणनीति होनी चाहिए, इस पूरे मसले पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के डायरेक्टर प्रो. रणदीप गुलेरिया से नीरज कुमार ने बात की। मुख्य अंश...

कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं, यह कितनी गंभीर स्थिति है?

कोरोना को लेकर ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। अगर हम कुछ सावधानियां अपनाएं तो इससे बच सकते हैं। हमें अपने खान-पान के साथ-साथ खुद को साफ-सुथरा रखने की जरूरत है। लोगों को ज्यादा भीड़ वाली जगहों पर जाने से परहेज करना चाहिए। अभी तक भारत में बहुत गंभीर मामले नहीं आए हैं। बुजुर्गों में इम्युनिटी कम होती है। ऐसे में जिनको डायबिटीज, हाइपर-टेंशन, दिल और फेफड़े की बीमारी जैसी समस्या है, उनमें इस वायरस के फैलने की संभावना ज्यादा है। एक मीटर से कम दूरी हो जाने पर इस वायरस के बढ़ने का खतरा ज्यादा है। ऐसे में किसी भी तरह की सर्दी, खांसी, जुकाम या नजला होने पर तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए।

चीन, ईरान और इटली में बहुत बुरा हाल है, भारत उनकी तुलना में कितना तैयार है?

अभी जो स्थिति भारत में है, हम उससे पूरी तरह से निपटने में सक्षम हैं। हमने 50 से ज्यादा टेस्टिंग लैब बना लिए हैं। कई सारे अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड की व्यवस्था हो चुकी है। ऐसे में हम काफी हद तक तैयार हैं। जरूरत पड़ने पर इसमें प्राइवेट सेक्टर को भी शामिल किया जा सकता है। एम्स में हमने ट्रामा सेंटर में एक जगह बनाई है। झज्जर में 100 बेड का एक स्पेशल वार्ड बनाया गया है जिसमें 25 बेड आईसीयू के हैं। जरूरत पड़ने पर हम इसमें 100 बेड और बढ़ा सकते हैं। इसके साथ ही इसमें वेंटीलेटर की भी व्यवस्था की गई है।

होमियोपैथी और आयुर्वेद में इसके इलाज के दावे किए जा रहे हैं, क्या ऐसा संभव है?

यदि  इस तरह का दावा किया जा रहा है तो वह सही नहीं है। क्योंकि यह वायरस नया है। अभी एलोपैथी में जो उपचार किया जा रहा है वे एमईआरएस कोरोना वायरस की दवाएं हैं जिसे एक तरह से हम इस वायरस की छोटी बहन कह सकते है। जब तक किसी दवा का ट्रायल नहीं हो जाता तब तक हम नहीं कह सकते कि यह दवा काम करेगी या नहीं। अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

कोरोना और स्वाइन फ्लू के लक्षण एक जैसे होते हैं। फिर इसमें फर्क कैसे किया जाए?

आज कल के मौसम में स्वाइन फ्लू के मामले आम हैं और यह अब मौसमी वायरस हो गया है। कोरोना और स्वाइन फ्लू के लक्षण एक जैसे हैं। सिर्फ लक्षण के आधार पर यह कह देना मुश्किल है कि ये स्वाइन फ्लू के मामले हैं या कोरोना के हैं, इसलिए जिनमें भी इस तरह के लक्षण मिल रहे हैं उनकी स्क्रीनिंग के साथ-साथ ट्रैवल हिस्ट्री खंगाली जा रही है।

क्या मास्क और सेनेटाइजर की हर किसी को जरूरत है और दवाओं की क्या स्थिति है?

जिन्हें सर्दी, खांसी और जुकाम के लक्षण हैं, वे सर्जरी वाले मास्क लगा सकते हैं। अहम बात यह है कि हमें अपने हाथों को साफ रखने की जरूरत है। इसके लिए अपने दोनों हाथों को साबुन से धोना है। उसके बाद सेनेटाइजर यदि हो तो उंगलियों को एक-दूसरे में फंसाते हुए लगाना है। देखा जाए तो सेनेटाइजर से बेहतर साबुन है। जो भी दवाएं कोरोना वायरस को लेकर इस्तेमाल की जा रही हैं, वे हमारे पास पर्याप्‍त मात्रा में हैं। अगर कमी आती है तो हम दक्षिण एशियाई देशों से दवाएं आयात कर अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। 

 

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परीक्षण के तरीके पर सवाल

जनवरी 30 को कोरोना से संक्रमित पहले व्यक्ति का मामला आने के बाद 17 मार्च (खबर लिखे जाने के वक्त तक ) तक देश में कुल 129 मामले सामने आए हैं। ऐसे में अब यह भी सवाल उठने लगा है कि जिस तरह से भारत का दुनिया से संपर्क है और भारत की 130 करोड़ की आबादी है उसे देखते हुए ये मामले बेहद कम हैं। सवाल उठने की वजह भारत में परीक्षण का तरीका है। आईसीएमआर की गाइडलाइन के तहत अभी तक केवल उन्हीं लोगों का परीक्षण किया जा रहा है, जिन्होंने विदेश यात्रा की है या फिर जो लोग विदेश यात्रा करने वाले लोगों के संपर्क में आए हैं। विशेषज्ञ इसी पर सवाल उठा रहे हैं। क्योंकि दुनिया के दूसरे देशों में केवल यात्रा के आधार पर परीक्षण नहीं किया जा रहा है। उनकी रणनीति यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों का पता कर वायरस के संक्रमण को खत्म किया जाए।

एशिया और ओसेनिया में चिकित्सा संघों की संस्था (सीएमएएओ) के अध्यक्ष और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसिडेंट डॉक्टर के.के.अग्रवाल इस तरीके पर सवाल उठाते हुए कहते हैं “कोरोना वायरस को लेकर अभी भी सरकार ज्यादा सख्ती नहीं बरत रही है। अभी केवल उनका परीक्षण किया जा रहा है जो विदेशी दौरे से आ रहे हैं या उनके संपर्क में रहे हैं। सरकार को चाहिए कि जिस किसी भी व्यक्ति को खांसी और बुखार हो, उसका परीक्षण कराया जाए।”

अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है। इस आधार पर देश में 300 लोगों को संक्रमित होना चाहिए था। लेकिन उसके अनुपात में संख्या बेहद कम है। यह परीक्षण में ढिलाई के कारण है। कोई भी देश अब तक इस घातक वायरस पर काबू नहीं पा सका है। ऐसे में भारत में भी नियंत्रण कर पाना आसान नहीं है। लिहाजा सरकार को निजी संस्थानों के साथ मिलकर फौरन कार्रवाई करने की जरूरत है। नहीं तो काफी देर हो जाएगी। उस स्थिति में चीजों को संभालना आसान नहीं होगा।

 

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